वेदिका
डॉ. वेदित कुमार धीरजआरण्य तुम्हारे
गीतांजलि पर
कुछ अवशेष हमारे भी
इन कर्मों की कंचनजंगा पर
कुछ पदचिन्ह तुम्हारे भी
इक दरिया सदा था पास मेरे
और प्यास अमिट ही रही सदा
वो गगन रहा कुछ ग़ैरों सा
कुछ अपने रहे बेगाने से
कड़वाहट से अपना नाता
जैसे साँसों की डोर हो गई
कुछ मित्र रहे लाचार रहे
कुछ ख़ास रहे अपने मेरे
और सत्ता के जासूस रहे।
अच्छे वक़्त की कहता हूँ
वक़्त वही जो साथ रहे
ख़ाली ही तुम्हारे बाद रहे
ख़ाली ही तुम्हारे बाद रहे॥
आरण्य-वास, तप साध रहा
जीवन भर ज़ख़्मों के साथ रहा
जग बैरी हो नौका खींची
उन मायावी आँखों का इतना प्रताप रहा
जीवन छंदों की कविता में
तुम दोहराती तुकांत रही
मेरे मन की 'जुहू' कली
तुम 'महादेवी' की 'गिल्लू' रही
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- नज़्म
- कहानी
- कविता
-
- अनवरत - क्रांति
- अम्मा
- कविता तुम मेरी राधा हो
- कैंपस छोड़ आया हूँ
- गंउआ
- द्वितीय सेमेस्टर
- नया सफ़र
- परितोषक-त्याग
- पलाश के पुष्प
- प्रथम सेमेस्टर
- मजबूरी के हाइवे
- युवा-दर्द के अपने सपने
- राहत
- लुढ़कती बूँदें
- वेदिका
- वेदी
- शब्द जो ख़रीदे नहीं जाते
- शहादत गीत
- शिवोहम
- सत्य को स्वीकार हार
- सहायक! चलना होगा
- सालगिरह
- सेमर के लाल फूल
- विडियो
-
- ऑडियो
-