अम्मा
डॉ. वेदित कुमार धीरज
माँ तुझपे क्या लिखूँ,
समुन्दर तुझको कैसे पियूँ।
अल्फ़ाज़ में बयाँ कैसे कर पाऊँ, “अम्मा” मैं तुझे
सर्वस्व तेरा है मुझमें, माँ कैसे बतलाऊँ तुम्हें।
माँ मेंरे नयनों से अब भी तेरे आँसू बहते हैं
जीवन की इस कठिन डगर पर, तेरी उँगली थामें चलते हैं।
कही प्यार से तेरी बातें याद मुझे अक़्सर आती है
राजा बेटा मेरा बेटा, आँखें मेरी नम कर जाते।
माँ अब मैं ग़ुस्सा नहीं करता, ताने भी अब सुन लेता हूँ
इस कंटक कतरीली राह पर, कड़ी धूप में भी चल लेता हूँ।
भूख की क़ीमत, माँ की ममता, क़ीमत दोनों को जान लिया है
क़िस्मत को अब कोसना छोड़ के, मेहनत को पहचान लिया है।
माँ अब मैं ज़िद नहीं करता, तुझे याद मैं कर लेता हूँ
आँखें मेरी भर जाती हैं, जी-भरके मैं रो लेता हूँ।
1 टिप्पणियाँ
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पुत्र का जिद माँ के लिए गहना और खिलौना है --जिद करो ही.
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