कश्मकश

15-10-2023

कश्मकश

डॉ. वेदित कुमार धीरज (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

उधेड़बुन सी हालत मन की इस क़द्र दर-ब-दर है
मैं जहाँ जाता हूँ वहाँ ख़ुद को नहीं पाता। 
 
माँ तेरी सूरत के सिवा एक और चेहरा भी याद है 
मैं हर बार सम्हलता हूँ, लेकिन घर नहीं जाता। 
 
अपनी ही आदतों का अक़्सर बुरा मान जाता हूँ 
मैं दफ़्तर से निकलता हूँ, लेकिन घर नहीं जाता। 
 
न जाने क्यूँ एक अजीब सी कश्मकश में हूँ आजकल
अपनों के पास जाता हूँ या दुश्मनों के पास जाता हूँ 
 
बंदिशें ऐसी रहीं कि अब आदत में हैं शामिल
तुम्हें कहना था कुछ, अब बता नहीं पाता हूँ। 
 
हमने जितने भी वादे किये, रह गये अधूरे
सिवाय इसके के तुम्हारे बिन रह नहीं पाता। 

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