सेमर के लाल फूल
डॉ. वेदित कुमार धीरज
एक पल आगे की है आस
ज़िन्दगी है
हर दिन फिर से दाव लगाने की प्यास
ज़िन्दगी है
मौसम हर पल बदलता है
उम्र बढ़ती रहती है
पकने लगे है अब बाल
सालों का वही घाटे वाला हिसाब
थोड़ी सी चिंताएँ और डर
फिर तुम्हारी याद
जो हर दिन के जिया साथ
उसी का हिसाब
ज़िन्दगी है।
मुस्कान बच जाये
हर दर्द के बाद
गुल्लक भर जाये
चप्पल घिसने के बाद
उलझन भरी रात
गुज़र जाये साथ
दिन में उसी का हिसाब
ज़िन्दगी है।
वक़्त के साथ
चल न पाये
हर डगर मुझे आज़माए
फूल जो कुछ चुने थे वो भी खोने लगे
मैं भी रोने लगूँ वो भी रोने लगें
बातें फिर पुरानी वो होने लगें
छोड़ जज़्बातों को वहीं
वो उठने लगे
अपनी ज़िम्मेदारी में मजबूर होने लगे
समय के हाल पर चुप हो
सँभल जाने का हुनर
टूटे हुए ख़्वाब भुला देने का अंदाज़
ज़िन्दगी है।
मौत आ जायेगी, ना जाने कब
बेख़बर सा मेहमान
फिर भी समेटता जा रहा
हर सामान
है पता, ख़ाली जाना है
यही भूल जाने
और अफ़सोस करने का काम
ज़िन्दगी है।
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