विपाशा
डॉ. मधु सन्धुमैं हूँ ब्यास
देव भूमि की संतति
पुरा ग्रंथों की विपाशा, अर्जिकिया
ग्रीक लेखकों की हाईफेसिस।
शिवालिक की पहाड़ियों
रोहतांग दर्रे के
ब्यास कुंड से चलकर
हिमाचल की यात्रा करती
पंजाब तक आती
पंच आब- पंच नद को
सार्थक कर जाती हूँ ।
चिर युवा थी मैं
ऋग्वेद, बृहद्देवता, महाभारत काल
को भी जिया है मैंने
और आज
हिमाचल -पंजाब के विभाजन को भी
देखा, समझा, झेला है।
जीवनदात्री हूँ मैं
पुत्र शोक संतप्त
विशिष्ट ऋषि को
पाश मुक्त कर
मैं विपाशा बनी
और
फिर महर्षि ब्यास का
नाम ले
ब्यास हो गई।
मेरी अल्हड़ मस्ती
खेतों की प्यास बुझाती है
सिंचाई में रंग जमाती है,
पौंग और पंडोह बाँधों द्वारा
हर घर जगमगाती है।
मेरे तटों पर बसे हैं
मनाली से पर्यटन स्थल,
पहाड़ों की वाराणसी
संत मांडव की धरती
मंदिरों का शहर-मंडी,
सुजानों के धर्म, कला, संस्कृति
से सुसज्जित- सुजानपुर।
सरसराती शीत लहर
कलकलाता शुद्ध जल
जलजीवों पर्यटकों को
बाँध-बाँध लेता है
जीवन शक्ति देता है।
मत करो मुझे दूषित
मत बहाओ मुझ में गंदे नाले
सोडा, साबुन, चीनी मिल का शीरा
शवों की अस्थियाँ
रहने दो मेरा जल निर्मल
देखो तो
मेरा गात श्याम,
दुर्गन्धित और दुर्बल हो रहा है
रुग्ण हूँ
मर रही हूँ मैं।
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