गुड़िया
डॉ. मधु सन्धुगुड़िया ने अंदर आते ही अपने ड्रायर, अलमारियों के खाने, सारे शेल्फों, दबे ढके कोनों में अपनी चीज़ें ढूँढनी शुरू कर दीं। उसे सब याद रहता है। ज़िप वाले पेंसिल बॉक्स में उसने कुछ सिक्के सहेजे हुए हैं। हालाँकि उनकी अहमियत का उसे पता नहीं। उसके लिए अहमियत है उस रंगबिरंगी क्ले की, जिसके ठप्पों से वह भिन्न आकार बनाती है। एक ख़ूबसूरत फूल, उसकी टहनियाँ और सात रंगों का इन्द्रधनुष बनाती है। उसके लिए महत्व है उस तिपहिया वाहन का, जिसे वह लॉबी में झूम- झूम कर चलाती है और उल्टा करके पहिये को घुमाते हुए जूस बनाने का खेल भी खेलती है या उस वाहन के आगे-पीछे अपनी कुर्सियाँ वगैरह रख रेलगाड़ी बनाती है। दुपट्टे से खेलने का मज़ा ही कुछ और है। गुड़िया दुपट्टा गले डाल अपने ढंग सेसँ और बड़े अंदाज़ से मेरी ओर देख कर गरिमामय ढंग से कहेगी – "कहो न, अच्छी लग रही हो।"
गुड़िया की मीठी-मीठी बातें मन को गुदगुदाती हैं। उसकी खिलखिलाहट घर को जगमग कर देती है। उसकी उपस्थिति मात्र से सब भरा-भरा लगता है। इन्द्रधनुष के सातों रंग उसकी किलकारियों में दमकते रहते हैं। उसके आगमन की सूचना ही उत्सव सा उन्माद भर जाती है।
हर टेडी का अलग नाम है- मोटू, पिंकू, क्यूटी, भोलू। सब दोस्त हैं उसके। पर उसे मोटू पर कुछ ज़्यादा ही गुस्सा आता है। मॉम मोटू ने पिंकू को मारा है। फिर डाँटेगी, समझाएगी – "मोटू! पिंकू को नहीं मारना है।" अगले ही पल मोटू का हाथ पकड़ पिंकू को लगा देगी और कहेगी – "मॉम मोटू ने फिर पिंकू को तंग किया है। इसे दो ठोकनी ही पड़नी हैं।"
गुड़िया की ढेरों डिमांड्स रहती हैं। मुझे क्ले चाहिए., सौंफ चाहिए, ड्राइंग बुक चाहिए, वाटर कलर चाहिए, आईस क्रीम चाहिए, मोतीचूर का लड्डू चाहिए, मीठी-मीठी गोली चाहिए, गेम चाहिए, वह स्टिकर चाहिए, यह रंगदार पेंसिल बॉक्स चाहिए। पर जब स्कूल जाने का समय आता है, तो रोते -रोते बेहाल हो जाती है। तब उसे कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ मम्मा चाहिए।
अलादीन के जिन की तरह उसे हर समय काम चाहिए। नहीं होगा तो वह सब कुछ हिला देगी, तहस-नहस मचा देगी।
गुड़िया के नहाने के लिए गुलाब जल खोलते-खोलते चाक़ू ज़रा सा मेरी अँगुली को लग गया। खून की लाल बून्द देख नन्ही जान ठिठक गई, घबरा गई और तब तक निश्चल, भौंचकी सी बैठी रही, जब तक मैंने बेन्डेड नहीं लगा ली।
अढ़ाई साल की गुड़िया की आवाज़ काफी साफ है। वैसे तो वह मुझे यानी नानी को मॉम कहती है, पर कभी शरारत या प्यार से "अनु की मम्मा" कह कर ज़ोर से आवाज़ देने लगती है। (अनु उसकी मम्मा का नाम है) मानो मन का रहस्य साँझा कर रही हो कि सब जानती है। वह जब भी आती है, उसकी मुस्कान से अंदर की खुशी छलका करती है. उस दिन मैंने पूछा -
"नन्ही ! आप दादी जी को बाय करके आए हो।"
"हाँ ! दादी जी कहते थे हमारे पास रुक जाओ।"
"तो आपने क्या कहा?"
"मैँने बोला नहीं, मै मॉम से मिलने जा रही हूँ।" और एक गर्वीला भाव नन्हे चेहरे पर जगमगाने लगा।
बेबी टी वी देखते देखते कई बार गुड़िया झूमने लगती है। कभी उससे बतियाने और कभी नृत्य करने लगती है और कभी प्ले पैन का ज्ञान दिखा आश्चर्य चकित कर देती है- "मॉम! लॉन्ग नेक वाला जिराफ, लॉन्ग ट्रन्क एलिफेंट।" प्ले पैन में उसे सबसे पहले रंग और आकार करवाये गये और सारे घर में रंग और आकार ही प्रमुख हो गये। एक-एक फूल को देख कर कहती- पिंक, वाइट, रेड, पर्पल। जो भी प्ले पैन में करवाया जाता है, उसके दिमाग में छाया रहता है। उस दिन बरसात में बरामदे में खेल रही थी। बगीचे से तीन-चार अर्थवार्म आकर कुछ इस आकार में थे कि झट से बोली- "मॉम फोर बन गया।"
उसे याद है मैम ने कहा था ड्राईंग करते समय अंदर-अंदर रंग भरने हैं। पर अंदर-अंदर बोलते-गुनगुनाते, रंग भरते-भरते पता नहीं क्या हो जाता है कि वह पूरे पृष्ठ पर मॉडर्न आर्ट सी रेखाएँ बना देती है।
गुड़िया को हिंदी-अंग्रेज़ी की, प्ले पैन और घर की अनगिनत कवितायेँ आती हैं। एक से बीस तक धाराप्रवाह बोलती है। ए बी सी पूरी आती है। कभी लय में बोलेगी, कभी फटाफट और कभी आँखें नीची करके शर्माना शुरू कर देगी।
हर कमरे में, बरामदे में, पोर्च में, लाबी में, लान में उसका दिल लग जाता है। कोई छात्रनुमा व्यक्ति, टेडी, खिलौना चाहिए। संडे-मंडे बोलते समय वह एक ख़ास ऊँची और भारी आवाज़ निकालती है। शायद स्कूल में ऐसा होता होगा।
खिलाना, पढ़ाना और सुलाना बहुत मुश्किल हैं। पहले पूछना पड़ता है - "बेबी क्या खाओगी।" उसके पसंद की चीज़ बनी तो ठीक, अन्यथा उस ओर देखती भी नहीं। जब पढ़ाने का मन बनाओ मैम बन जाती है। तब उसके ज्ञान के समक्ष परास्त होना ही पड़ता है।
"यह क्या लिखा है?" - जैसे वाक्यों के साथ डाँट खानी ही पड़ती है। और नींद के लिए मम्मा की प्यारी-प्यारी, गुदगुदी बातें और थपकियाँ उसे अच्छी और अनिवार्य लगाती हैं।
गुड़िया को बड़ा मेज़ चाहिए। मैम जैसा। छोटे -छोटे मेज उसे पसंद नहीं। उसे मालूम है कि वह पिंकू, मोटू, क्यूटी और भोलू की मैम है। वह क्यूटी के हाथ से पेन लगा उसे पकड़ेगी और डाँटेगी - "चलो लिखो। वन-टू, वन-टू, वन-टू। शरारतें नहीं करते। मैम गुस्सा करेगी। मैम सबसे पीछे बिठा देगी।"
गुड़िया के पास डांसिंग डॉल है। उस के हाथ में माइक है। नृत्य के साथ -साथ संगीतमय कविता बोलती है। हाथ ऊपर नीचे कराती है और गुड़िया भी वैसे ही नृत्य की मुद्रा में आ जाती है। गुड़िया के पास टॉकिंग टॉम है। ऑन ऑफ करना सीख गई है। उससे बतिया कर उसे खूब मज़ा आता है। रिमोट वाली कार का तो मज़ा ही अलग है। मोबाइल पकड़ गुड़िया घूम-घूम कर बतियाती रहती है और पास बैठे मौसेरे भाई को धमकाने का मौका भी नहीं गंवाती - "पापा ! आप कब आ रहे हो। पापा देवू शरारतें कर रहा है। पापा मोटू खाना नहीं खाता।"
गुड़िया को बुखार आ रहा है। पेट में दर्द भी है। डॉ. अंकल ने दूध तक बंद कर दिया है। ओ. आर. एस, दाल का पानी, पनीर का पानी -पता नहीं कैसी-कैसी बेस्वाद चीज़ों के लिए कहा है। पर गुड़िया यह सब नहीं लेगी। वह बुदबुदाती रहती है - "डॉ. अंकल ने कहा है दूध पीना है। डॉ. अंकल ने कहा है आम खाना है। जिन-जिन चीज़ों पर गुड़िया का मन होता है, उनके साथ डॉ. अंकल जोड़ देती है।
"यह लो चॉकलेट।" - आगे आया हाथ गुड़िया पीछे कर लेगी।
"इससे दांत ख़राब होते हैं. "- यह वाक्य उसके दिमाग में ही नहीं। होंठों पर भी रचा-बसा है। पर थोड़ी देर बाद देखो तो उसका मुँह चॉकलेट से भरा होगा। वह स्वयं को इस आकर्षण से चाह कर भी मुक्त नहीं कर पाती।
यही छोटी- छोटी बातें हैं कि सप्ताह के छ्ह दिन उसकी प्रतीक्षा में ही निकल जाते हैं।
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