थर्ड जेंडर - समाज और साहित्य
डॉ. मधु सन्धुथर्ड जेंडर यानी ट्रांसजेंडर यानी टी.जी. समुदाय। हिन्दी में इनके लिए किन्नर, पंजाबी में खुसरा, तेलगु में नपुंसकुड़ू, उर्दू में हिजड़ा, अँग्रेज़ी में Eunuch, गुजराती में पवैय्या, कन्नड़ में जोगप्पा आदि शब्द प्रचलित हैं। इन्हें वृहन्नला, शिखंडी, मौगा, छक्का और खोजा भी कहा गया है। आज सरकार और सामाजिक संगठनों ने इन्हें ट्रांसजेंडर यानी तीसरा लिंग सम्बोधन दिया है। थर्ड जेंडर अर्थात न नर, न नारी या फिर दोनों के गुणों का समुच्चय। लेकिन अर्ध-नारीश्वर के इस देश में इनकी न कोई पहचान है, न मान-सम्मान, न शिक्षा, न रोज़गार। मात्र पुत्र-विवाह या पुत्र-जन्म के अवसर पर तालियाँ पीट-पीटकर या नाच-गाकर दुआएँ देना और जिजीविषा अर्जित करने तक ही इनका अस्तित्व सीमित है। समाज इन्हें हेय मानता है, सौतेला व्यवहार करता है, घृणा की दृष्टि से देखता है। मानों वे किसी और दुनिया के लोग हों। इनके हिस्से में मात्र अपमान, अवहेलना और शून्य है। आज भारत में किन्नरों की अनुमानित संख्या दस लाख के आसपास है और यह छोटा सा तबका सामान्य जीवन के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है।
थर्ड जेंडर का अस्तित्व उतना ही पुराना है, जितना मानव जाति का, नर और नारी का। संस्कृत व्याकरण में तीसरा लिंग नपुंसक लिंग है। इसके अंतर्गत ऐसे पदार्थ आते हैं, जिन्हें पुल्लिंग या स्त्रीलिंग के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता। संस्कृत के इलावा मराठी और अँग्रेज़ी भाषाओं में भी तीसरा लिंग है, अँग्रेज़ी में इसे न्यूटर जेंडर कहा गया है। कहते हैं कि परमेश्वर, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरु ने सिर्फ़ ढाई जात बनाई थी- औरत, मर्द और किन्नर। औरत और मर्द सृष्टि में संवर्द्धन करेंगे और किन्नर ईश्वर से उनके लिए शुभकामनायें माँगेंगे।
पुरा ग्रन्थों में किन्नरों का उल्लेख मिलता है। रामायण के अयोध्या कांड में वनवास जा रहे भगवान राम ने सब नर-नारी को वापिस कर दिया पर यह वर्ग चौदह वर्ष उनके साथ या उनकी प्रतीक्षा में रहा। महाभारत में भी अर्जुन और शिखंडी के प्रसंग मिलते हैं। जैन साहित्य में भी किन्नरों का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य ने इनकी उपयोगिता का ज़िक्र किया है। किन्नर राज दरबारों में काम करते थे। इन्हें हरम में सुरक्षाकर्मी के रूप में रखा जाता था। अलाउद्दीन और जहांगीर के यहाँ सेना और प्रशासन में उच्चाधिकारी ही नहीं, जागीरदार भी थे। स्त्री-पुरुष दोनों बनने की क्षमता के कारण उन्हें जासूस का पद दिया जाता था। स्वतन्त्रता संग्राम में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। परिणामत: ब्रिटिश सरकार ने हिजड़ा समुदाय को अपराधी घोषित कर दिया था। जबकि 1949 में इस क़ानून को निरस्त कर दिया गया।1
1994 में मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन ने इन्हें चुनाव का अधिकार दिया। पाँच वर्ष बाद 1999 में कोई ट्रांसजेंडर पहली बार एम.एल.ए. चुना गया। भारतीय संविधान में प्रयुक्त "व्यक्ति" या "नागरिक" शब्द थर्ड जेंडर के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। दस वर्ष की कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें बराबरी का दर्जा दे नई पहचान और सम्मान से जीने का हक दिया। 15 अप्रैल 2014 को हर सरकारी दस्तावेज़ में महिला और पुरुष के साथ-साथ थर्ड जेंडर के कॉलम का विधान किया गया। आज सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले के बाद थर्ड जेंडर को अन्य नागरिकों की तरह मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। इसे पिछड़ा वर्ग घोषित करके शैक्षिक संस्थानों और नौकरियों के लिए इनके आरक्षण का मुहिम भी चल रही है। चिकित्सा, बच्चा गोद लेने का अधिकार, अलग शौचालय, पासपोर्ट, राशन कार्ड, आधार कार्ड, स्कॉलरशिप, पेंशन, पैन, विल, बैंक खाता, लोन, यात्रा में सुविधाएँ भी बड़े मुद्दे हैं। 2016 में कैबिनेट में ट्रासजेंडर पर्सनल बिल को भी मंजूरी मिली।
संवैधानिक संरक्षण और संघर्ष के कारण कल और आज के किन्नर की स्थिति में काफ़ी अंतर आया है। किन्नर एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जैसों के आगे आने पर इनके अधिकारों की आवाज़ उभरने लगी। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ भरतनाट्यम नर्तिका, लेखिका और टी. वी. कलाकार हैं। उनकी आत्मकथा "मी हिजड़ा, मी लक्ष्मी,” मराठी, गुजराती और अँग्रेज़ी में मिलती है। टी.वी. के "बिग बॉस सीज़न-5”, "दस का दम", "सच का सामना", "राज पिछले जन्म का" में आ चुकी हैं। वह सयुक्त राष्ट्र संघ में एशिया पैसिफ़िक का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रथम ट्रांसपर्सन थी। वह किन्नर समाज का टोरंटो और अन्य देशों में प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। "अस्तित्व" नाम की संस्था द्वारा वे इस समुदाय के विकास के लिए लगातार प्रयासरत हैं। राजस्थान की गंगाकुमारी पूरे संघर्ष के बाद 2017 में पुलिस में भर्ती हुई। पृथिका याशिनी देश की प्रथम ट्रांसजेंडर सब इंस्पेक्टर बनी। कलकत्ता में जन्मी जोयिता मण्डल प्रथम जज बनी। शबनम मौसी प्रथम किन्नर विधायक हैं। दुखी मन से किन्नर की सामाजिक स्थिति पर कहती हैं कि किन्नर की सामाजिक स्थिति एक पालतू कुत्ते से भी बदत्तर है। प्रथम ट्रांसजेंदर प्रिन्सिपल के रूप में मानबी बंदोपाध्याय ने पश्चिम बंगाल के कृशन नगर विमेन कॉलेज में पदभार सँभाला। छतीसगढ़ के रायगढ़ में मधु किन्नर मेयर पद पर आसीन होने वाली प्रथम ट्रांसजेंडर हैं। क्लासिकल नर्तकी पद्मिनी प्रकाश पहली न्यूज़ एंकर हैं। वे ट्रांसजेंडर सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग भी लेती हैं। रोज़ वेंकटेश्वर प्रथम टी.वी. होस्ट बनी। उनके पास इंजीनियरिंग में स्नातक और बायो इंजीनियरिंग में मास्टर की डिग्री है। विद्या/स्माइली प्रथम पूर्णकालिक ट्रांसजेंडेर थिएटर कलाकार हैं। "आई एम सर्वानन विद्या" नाम से उनकी आत्मकथा भी प्रकाशित हो चुकी है। कल्कि सुब्रहमण्यम लेखक और कलाकार हैं और किन्नरों के उत्थान के लिए कार्यरत हैं। उनके पास जनसंचार में स्नातकोत्तर की डिग्री है। विजयंती वसंत मोगली भी ढेरों मुश्किलों का सामना करने के बाद सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में स्थापित हुई।
जनसंचार के माध्यमों की बात करें तो फिल्मों में किन्नरों का थोड़ा बहुत हास्यास्पद रोल तो दिख ही जाता था, लेकिन 1974 में पहली बार किसी बड़े एक्टर यानी संजीव कुमार ने "नया दिन नई रात" में ट्रांसजेंडर का रोल किया। 1997 में आई महेश भट्ट की "तमन्ना" में किन्नर बने परेश रावल पराई बेटी के लिए अपनी बेटी जैसी संवेदनाएँ रखते दिखाये गए हैं। "दरमियाँ इन बिट्वीन" में माँ किरण खेर की बेटी किन्नर है और वह चाह कर भी बेटी को किन्नर समाज की अँधेरी बंद गलियों से बचा नहीं पाती, उसे सामान्य बच्चों सी परवरिश नहीं दे पाती। दिव्या माथुर अपनी कहानी "एक शाम भर की बातें"2 में ब्रिटेन के संदर्भ में लिखती है- "होमोसेक्सुयल, हैट्रोसेक्सुयल, लैस्बियंस और गे होना वहाँ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टी.वी. कार्यक्रमों में यही लोग छाए रहते हैं।"
निर्मला मुराड़िया के उपन्यास "गुलाम मंडी"3 में इसी तिरस्कृत वर्ग के किन्नरों को नायकत्व दिया गया है। महेंद्र भीष्म के "किन्नर कथा"4 में इस लिंग को पुरुष-स्त्री के इलावा एक सशक्त समुदाय माना गया है, जो इंसान समझा जाने पर देश-समाज के विकास में भी योगदान दे सकता है। राजघराने में जन्मी सोना किन्नर समुदाय में चंदा बन जीवन बिताने के लिए विवश है। उनका "मैं पायल"5 किन्नर गुरु पायल सिंह के जीवन संघर्ष पर आत्मकथात्मक उपन्यास है। परिवार में विकलांग बच्चा पैदा होने पर उस की परवरिश की जाती है, तो किन्नर के जन्म को कलंक मान उससे मुक्त होने के प्रयास क्यों? उसका कुसूर क्या है ? प्रदीप सौरभ का "तीसरी ताली"6, नीरजा माधव का "यमदीप"7, चित्रा मुद्दगल का "पोस्ट बॉक्स न. 203 नाला सोपारा"8, भगवंत अनमोल का "ज़िंदगी 50-50"9 उपन्यास किन्नर जीवन के अनन्य पहलू खोलते, दुश्वारियों से दो-चार कराते उन्हें मनुष्यत्व देते हैं।
मछेन्द्र मोरे के नाटक "जानेमन.... इधर"10 के अनुसार किन्नर प्राकृतिक रचना नहीं। यह वंशवृद्धि के लिए किन्नर गुरु द्वारा मर्द को किन्नर बनाने का परिणाम है। महेंद्र भीष्म के उपन्यास किन्नर कथा पर आधारित नाटक लखनऊ की हेल्प यू संस्था की सांस्कृतिक संध्या योजना के तहत संतगाडगे ऑडिटोरियम में मंचित किया गया। सुरेश मेहता के नाटक "किन्नर गाथा"11 के मंचन के समय दीनानगर के किन्नर सम्प्रदाय के प्रधान बाबा प्रवीण ने इसका आगाज़ करके इसे एकदम सजीव बना दिया।
कहानी में थर्ड जेंडर की व्यथा कथा की उम्र कहानी विधा के समान्तर ही है। 1920 के आसपास प्रकाशित पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र के कहानी संग्रह "चॉकलेट" और महाप्राण निराला के "चतुरी चमार" में ऐसी कहानियाँ मिलती हैं। शिव प्रसाद सिंह की "बिंदा महाराज"12 अधेड़ हो रहे किन्नर की बहुआयामी विडंबनाएँ लिए है। एक प्राकृतिक शाप के कारण बिंदा महाराज क्रूर समाज में उपेक्षित और शापित जीवन जीने के लिए विवश हैं। "बिंदा महाराज" नई कहानी के दौर की बहुचर्चित, बहुपठित, बहुसमीक्षित, लोकप्रिय कहानी रही है। कादंबरी मेहरा की "हिजड़ा"13 में नायिका की कॉलेज के दिनों की मर्दनुमा सहपाठिन रागिनी जिजीविषा के कारण हिजड़ों के समुदाय में शामिल हो जाती है। कहानी कहती है कि माँ की मौत बेटियों के सर से बाप का साया भी छीन लेती है। उन्हें तो सिर्फ़ बेटियों से छुटकारा चाहिए। फिर वे किसी जीजे की रखैल बनें या हिजड़ा बन घर-घर नाचे? उन्हें कोई सरोकार नहीं। किरण सिंह की कहानी "संज्ञा"14 उस समाज का मनोविज्ञान लिए है, जो बच्चे के किन्नर रूप को स्वीकारने की क्षमता ही नहीं रखता। किन्नर कलंक का पर्यायवाची है। कहानीकार कहती है "इस धरती के बासिंदों ने तुम्हारी जाति के लिए नरक की व्यवस्था की है। उस नरक के लोग पहाड़ी पर तुम्हारे जन्म के सात साल बाद आकर बस गए हैं। वे लोग कपड़ा उठाकर नाचते हैं और भीख माँगते हैं। लोग उन्हें गालियाँ देते हैं और थूकते हैं। उनके मुंह पर दरवाजा बंद कर लेते हैं। उन्हें घेरकर मारते हैं। ....तुम्हारे बारे में पता लग गया तो वे लोग तुम्हें भी छीनने आ जायेंगे।"15 बलजीत सैली की "अभी और कितने नरक"16 का नायक भी ज़िंदगी के इस मज़ाक को, ग्रहण को भोग रहा है। उसके पास पुरुष का शरीर तो है, पर उसकी हरकतें औरतों वाली हैं। नियाति की इस क्रूरता/त्रासदी का पता उसे तब चला, जब वह पाँचवीं में पढ़ता था और उसे स्कूल से निकाल दिया गया। एक ओर स्कूल के लड़के, पंचर वाला और दूसरे लोग उससे अश्लील हरकतें करते हैं, दूसरी ओर हिजड़े उसे अपने दल में मिलाना चाहते हैं, माँ-बाप की परेशानियाँ अलग हैं। वह जानता है कि मसखरा बने रहने की विवशता सीने में छिपाकर ही उसे दिन-कटी करनी है। वेब दुनिया पोर्टल में भी कई कहानियाँ पढ़ने को मिल रही हैं। जैसे गरिमा संजय दूबे की "पन्ना बा" आदि।
काव्य जगत भी थर्ड जेंडर के दर्द से अछूता नहीं है। निशा माथुर की "छोटी-सी खोली में, तन्हा जीवन की तन्हाइयां17 तथा "नीरजा मेहता की "मैं हूँ किन्नर" में किन्नर विलाप और इंसानियत की गुहार मन छू लेती है।
"हाँ, मैं हूँ किन्नर,…….. पहन लेता हूँ
चूड़ी, बिन्दी, गजरा, पायल
ओढ़ लेता हूँ चुनरी
किन्तु खुद की देह देख
समझ नहीं
मैं पुरुष हूँ या स्त्री।"
स्त्री-पुरुषेतर व्यक्तित्व के कारण थर्ड जेंडर न कभी समाज की मुख्य धारा का अंग बन सके हैं और न साहित्य का। लेकिन संघर्ष जारी है। संवैधानिक लड़ाई में कुछ जीत लिया है कुछ पाना बाक़ी है, लेकिन सामाजिक सोच से लड़ाई जारी है।
सन्दर्भ:
www. kulhaiya.com
दिव्या माथुर, एक शाम भर बातें, हिन्दी बुक सेंटर, दिल्ली, 2000
निर्मला मुराड़िया, गुलाम मंडी, सामयिक दिल्ली, 2016
महेंद्र भीष्म, किन्नर कथा, सामयिक, दिल्ली, 2011
वही, मैं पायल, अमन प्रकाशन, कानपुर, 2016
प्रदीप सौरभ, तीसरी ताली, वाणी, दिल्ली, 2011
नीरजा माधव, यमदीप, सामयिक, दिल्ली, 2009
चित्रा मुद्दगल,"पोस्ट बॉक्स न0 203 नाला सोपारा"
भगवंत अनमोल, ज़िंदगी 50-50, राजकमल, नई दिल्ली
मछिंदर मोरे, जानेमन... इधर, भारतेन्दु नाट्य आकेडेमी रंगमंडल, लखनऊ, मई 2017 में खेला गया
सुरेश मेहता, किन्नर गाथा,भगत नामदेव थिएटर सोसाइटी, घुमान, जनवरी 2017 को मंचित हुआ
डॉ एम. फ़ीरोज खान, थर्ड जेंडर: हिन्दी कहानियाँ
अभिव्यक्ति, 9 जून 2015, teamabhi@abhivyakti-hindi.org
डॉ एम. फ़ीरोज खान, थर्ड जेंडर: हिन्दी कहानियाँ
वही, पृष्ठ 75
आधारशिला, जनवरी 2018
http://hindi.webdunia.com/hindi-poems/hindi-poem-on-third-gender
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