मन के चौहट्टे पर बोनसाई

15-08-2025

मन के चौहट्टे पर बोनसाई

डॉ. मधु सन्धु (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)


समीक्षित पुस्तक: मन के चौहट्टे पर बोनसाई (उपन्यास)
लेखक: सुधा जुगरान
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन
मूल्य: ₹329
पृष्ठ संख्या: 232

सुधा जुगरान विगत तीन दशक से कथा साहित्य को समृद्ध कर रही हैं। ‘मन के चौहट्टे पर बोनसाई’ सुधा जुगरान का 2025 में ‘शिवना’ प्रकाशन, मध्यप्रदेश से प्रकाशित दूसरा उपन्यास है। उनका प्रथम उपन्यास ‘मनस्विनी’ 2022 में प्रकाशित हुआ था। आठ कहानी संग्रह और एक समीक्षा पुस्तक के अतिरिक्त अनेक साझा संकलनों में उनकी रचनाएँ संकलित हैं। 

मन के चौहट्टे पर बोनसाई’ यानी उपन्यास चौहट्टे सा वैविध्य और बदलते समय द्वारा हो रही रिश्तों की अत्याधुनिक बोनसाई सी काट-छाँट की टीस, सीमाएँ और सौंदर्यभ्रम लिए है। ‘दो शब्द’ में सुधा जुगरान पीढ़ियों के अंतराल पर बात करती कहती है: 

“जो गैप अभी तक विचार, शिक्षा व वेशभूषा तक सीमित था वह अंतराल अब पारिवारिक ढाँचे से लेकर, सामाजिक चेतना, स्त्री-पुरुष समानता की बात करता हुआ स्त्री-पुरुष के रिश्तों को लेकर संतुलित होता हुआ, अब असंतुलित हुआ जा रहा है।”1

संयुक्त परिवार का टूटना और पारिवारिक सद्भावना तो अतीत की बात है, उपन्यास टूट और बिखर रहे एकल परिवार की समस्या लिए है। विवाह हो जाये तो निभाने की इच्छा समाप्त हो रही है, सब रंग बिखर से जाते हैं और बच्चा हो जाये तो उसे पालने-दुलारने का चाव नहीं है। यहाँ चार युवा युगल हैं: सुनंदा और समर, रोमिल और सोमी, मेहुल और रिजुल तथा अनुपम और रियाना। रियाना और सुनंदा ने इंजीन्यरिंग और एम.बी.ए. किया हुआ है। रिजुल भी एम.बी.ए. है। मेहुल आई आई टी कानपुर और आई आई एम अहमदाबाद से पढ़ा हुआ है। रोमिल के पास मास कम्यूनिकेशन की डिग्री है। सोमी कॉलेज लेक्चरार और रोमिल टीवी चैनल में मैनेजर है। रिजुल मुंबई से है, रियाना चंडीगढ़ से, सुनंदा फरीदाबाद से, सोमी देहरादून से। मेहुल गढ़वाल के किसी गाँव का है, समर पूने से, अनुपम गुड़गाँव से, रोमिल जयपुर से। सभी भारी भरकम पैकेज के साथ भारत के वाणिज्यिक केंद्र और अत्याधुनिक नगर मुंबई में रह रहे हैं। यहाँ न कोई षोडसी या मुग्धा नायिका है और न धीर पुरुष। सभी युवा विचार-भाव के मालिक हैं, सभी के पास अच्छी नौकरी, सुरक्षित उज्ज्वल भविष्य, मनचाहे साथी, सामाजिक नैतिक आज़ादीऔर माता-पिता की मज़बूत दीवार है। सभी अपनी नौकरी, मित्रों, लैपटॉप और मोबाइल में उलझे हुए हैं। सबका स्वतंत्र व्यक्तित्व, स्वतंत्र बैंक बैलेन्स, स्वतंत्र कारें, स्वतंत्र फ़्लैट है। उपन्यास का कालखंड कोई एक दशक तक फैला हुआ है। 

कॉलेज लेक्चरार सोमी और टीवी चैनल में मैनेजर रोमिल तो कोई अट्ठाईस वर्ष की आयु में शादी कर लेते हैं, स्वस्थ गृहस्थ जीवन जीने लगते हैं। दोनों सरल स्वभाव हैं। हर किन्तु-परन्तु से परे छोटी बातों में भी बड़ी ख़ुशियाँ ढूँढ़ लेते हैं। उनका शादी का निर्णय सभी मित्रों को आंदोलित कर देता है। जल्दी ही रिजुल नौकरी छोड़ माँ-बाप की इच्छानुसार समन्वय से शादी कर लेती है। पति की मृत्यु के बाद भी वह अकेली नहीं है। उसके पास पिता है, जो बेटी अतिथि का संरक्षक भी है। ससुराल के सब लोग उसके आत्मीय हैं। मेहुल दिल्ली शिफ़्ट हो रजनी से शादी कर सुखद गृहस्थ जुटा लेता है। जबकि लिव-इन में रहने वाले समर का सुनंदा पर, अनुपम का रियाना पर शादी के लिए दबाव बढ़ जाता है। समर और सुनन्दा शादी कर पूना आ जाते हैं, लेकिन निभ नहीं पाती। 

यानी घर-परिवार से दूर कॉर्पोरेट जगत में निमज्जित युवा विषम लिंगी मैत्री के बाद लिव-इन की ओर मुड़ रहे हैं। कभी जान-पहचान के परिवार में शादी की जाती थी, अब जीवन साथी बनाने के लिए जान-पहचान के सहकर्मी/सहभागी को वरीयता दी जाती है। रिश्तेदार या माता-पिता अवांछित हैं। इन युवा युगल कॉर्पोरेट की अवधारणा है कि विवाह संस्था वैयक्तिक, आर्थिक, शारीरिक स्वातंत्र्य पर पहरा और वैचारिक स्वाधीनता पर प्रतिबंध है। 

उपन्यास का आरंभ और अंत रियाना और अनुपम की पाँचवीं वर्षगाँठ की पार्टी से होता है। हालाँकि लिव-इन की अपनी मजबूरियाँ और सीमाएँ तो हैं ही। रियाना हो या सुनंदा-दुविधा और दुश्चिंता अनुपम या समर के माता-पिता को स्वीकार न पाने की, किसी के साथ शेयर न करने की, सास-ससुर के उत्तरदायित्व तथा पारिवारिक झंझटों से दूर रहने की है। कोई डेढ़ साल से समर से तलाक़ के लिए प्रयत्नरत चालीस वर्षीय सुनंदा आठ वर्षीय बेटे कियान के साथ पिछले पाँच वर्ष से रह रही है। यानी दूसरी बड़ी समस्या सम्बन्ध विच्छेद के मुहाने पर खड़े दम्पतियों के बच्चों की तहस-नहस हो रही मनःस्थितियों की है। एक तीसरी समस्या लिव-इन के बच्चे की सामाजिक स्थिति की है, जिससे रियाना जूझ रही है। प्रश्न यह है कि अपने पाँवों पर खड़ी अर्थ स्वतंत्र, स्वावलंबी स्त्री कहीं अपने ही पाँवों पर कुल्हाड़ी तो नहीं चला रही? 

ऐच्छिक जीवन और वैयक्तिक चुनाव के बावजूद बहुत सी समस्याएँ हैं। उच्चवर्गीय आई.ए.एस. पिता की बेटी रिजुल, भिन्न पारिवारिक, सामाजिक परिवेश की दुविधा लिए हैं। इसीलिए रिजुल की शादी समन्वय से और मेहुल की रजनी से होती है। रोमिल और सोमी संतान सुख से वंचित हैं। समर सुनंदा बेटे के बावजूद तलाक़ की प्रतीक्षा में हैं। वर्षों लिव में रहने के बाद अनुपम और गर्भवती रियाना विवाह तो करना चाहते हैं, पर दोनों की अपनी-अपनी शर्तें हैं। सब के अपने अपने कुरुक्षेत्र हैं। देखना है कि कौन, कौन सा रास्ता चुनता है। 

यहाँ लिव-इन और तलाक़ की पेचीदगियाँ एक साथ वर्णित हैं। ‘एकला चलो रे’ की भावना प्रबल है। असंतुलन कुछ ऐसा है कि परिवार, संस्कार, संस्कृति, समाज सब भरभरा कर गिर रहे हैं। 

उपन्यास आज की पीढ़ी के दिल और दिमाग़ के बीच चल रहे विवाह और लिव-इन के घमासान को लेकर है। पता ही नहीं चल रहा कि कौन सा पलड़ा भारी है। लिव-इन को न सम्मानीय दृष्टि से देखा जाता है, न समाज इसकी स्वीकृति देता है। उच्च शिक्षित, आत्मनिर्भर, अधिकार सजग स्त्री विवाह जैसी सुरक्षा तो चाहती है, परन्तु उत्तरदायित्व नहीं। प्रश्नबच्चे की स्थिति का भी है-वैध, अवैध? तलाक़ से पहले, तलाक़ के बाद? विवाह आध्यात्मिक, भावनात्मक, पारिवारिक, सामाजिक उपादेयता और दबाव के कारण ताउम्र निभाया जाता है—भयु बिना होय ण प्रीत। सप्तपदी के सात वचनों में बद्ध। जबकि लिव-इन में रिश्ते का अस्थायीपन है। नहीं बनती तो अलग हो जाते हैं:

“प्यार एक ख़ुशनुमा बादल है और विवाह एक ज़िम्मेवारी। शारीरिक सम्बन्धों के लिए एक ख़ूबसूरत लिबास। मन का बंधन पारदर्शी नहीं हो पाता।”2

कियान के माध्यम से लेखिका ने बाल मनोविज्ञान/ मन: स्थितियों को रेखांकित किया है। तलाक़ की इच्छुक माँ ने उसकी बाल सुलभ चंचलता छीन उसे मूक बना दिया है। 

समाज का एक और पक्ष भी है। लेखिका कहती है कि पहाड़ी लड़कियाँ सुंदर, मेहनती और हिम्मत वाली होती हैं। गीता हो, उर्मिला हो, सुभद्रा हो या रजनी। परिवार की रीढ़ होती हैं। 

कुछ ऐतिहासिक और आज के तथ्य भी आए हैं, जैसे देहरादून का नाम पहले द्रोणनगर था। बैजनाथ का पुराना नाम वैद्यनाथ है। रानीखेत की खोज राजा सुखरदेव की पत्नी रानी पद्मिनी द्वारा की गई थी। टिहरी बाँध के निर्माण के फल स्वरूप पुरानी टिहरी जलमग्न हो गई। वहाँ 40 किलोमीटर लंबी एक कृत्रिम झील का निर्माण किया गया। अलकनंदा व भागीरथी नदियाँ टिहरी में देवप्रयाग में मिलकर गंगा का निर्माण करती हैं। गंगा की प्रमुख सहयोगी नदी भगीरथी व दूसरी भिलंगना है। टिहरी बाँध विश्व के पाँच बड़े बाँधों में शामिल है। 

अर्थ स्वतंत्र स्त्री अपने उत्तरदायित्वों के प्रति सजग है। माँ बाप के नहीं होने पर विवाहोपरांत भी छोटी बहन की पढ़ाई का भार वहन करने का सोमी का निर्णय सशक्त स्त्री की ओर संकेत करता है। 

दाम्पत्य के दो चित्र हैं—सुनंदा को शादी से पहले हर जगह स्पेस देने वाला पुरुष पति के रूप में मालिक बन जाता है। जबकि सुनंदा सोचती है—समझौते या सामंजस्य उसके शब्दकोश में नहीं हैं। जबकि सोमी और रोमिल की अवधारणाएँ इसके विपरीत हैं और गृहस्थ सुखद है। 

एक सूत्रात्मकता उपन्यास के विचार पक्ष को पुष्ट कर रही है। जैसे:

1. अंधकार भी क्या बला है, सामने फैला हो तो सुकून देता है, ठंडक देता है और हृदय में हो तो उदासी और नकारात्मक भावों से सराबोर कर देता है।3

2. प्रेमाधिकार कोई बोलकर लेने की वस्तु नहीं। यह वह मनमोहक बादल है जो एक हृदय से उड़कर दूसरे हृदय तक पहुँच ही जाता है, अनेक बन्दिशों के बावजूद।4

3. वैवाहिक जीवन के समीकरण का कभी एक निश्चित सूत्र नहीं होता।5

4. रिश्ते न पैसे से बनते हैं और न अपनी मर्ज़ी से बनते हैं। रिश्ते तो एक-दूसरे के विश्वास से बनते हैं, अहसास से बनाते हैं।6

5. अधूरा प्रेम ही प्रेम को अमर रखता है, मिलन पर यह समाप्त हो जाता है।7

6. जहाँ पर भी मानव जाति की नैसर्गिक आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति करती नज़र आई, मानव वहीं बस गया। मानव का विकास हुआ और प्रकृति अपने विनाश की ओर अग्रसर हुई।8

7. इंसान कभी दिल के हाथों मजबूर होता है, कभी दिमाग़ के। कभी परिवार उसे मोहरा बनाता है और कभी समाज।9

8. जीवन नहीं चुकता . . .। समय नहीं बीतता . . . चूक तो मानुष्य जाता है। बीत तो जीवन जाता है।10

उपन्यास आज के महानागरीय भारत का परिदृश्य लिए है। जहाँ भिन्नलिंगी मैत्री, प्रेम और लिव-इन—सब मौज मस्ती का पर्याय न होकर एक संक्रातिकाल का उद्घोष कर रहे हैं। सब के अपने अपने कुरुक्षेत्र हैं। देखना है कि कौन कौन-सा रास्ता चुनता है। चारों युगल परफ़ेक्शन की खोज में हैं। उपन्यास खुला अंत लिए है। अनेक दोराहे-चौराहे हैं। ढेरों समस्याएँ हैं। 

संदर्भ:

  1.  सुधा जुगरान, मन के चौहट्टे पर बोनसाई, शिवना, एम.पी., 2025, दो शब्द, पृष्ठ 4

  2.  वही, पृष्ठ 47 

  3.  वही, पृष्ठ 58 

  4.  वही, पृष्ठ 77

  5.  वही, पृष्ठ 87 

  6.  वही, पृष्ठ 100

  7.  वही, पृष्ठ 215 

  8.  वही, पृष्ठ 216

  9.  वही, पृष्ठ 227 

  10.  वही, पृष्ठ 232

डॉ. मधु संधु, 
पूर्व प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष
हिन्दी विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर, पंजाब। 

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