प्रवासी हिन्दी उपन्यास में थर्ड जेंडर

01-05-2024

प्रवासी हिन्दी उपन्यास में थर्ड जेंडर

डॉ. मधु सन्धु (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)


(महिला उपन्यासकारों के संदर्भ में) 


डॉ. मधु संधु, पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष, 
हिन्दी विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर, पंजाब। 

 

थर्ड जेंडर में ट्रांस-मेन, ट्रांस-विमन, किन्नर आदि आते हैं। समलैंगिकता का उल्लेख सभी देशों और सभी संस्कृतियों में मिलता है। समलैंगिकता से तात्पर्य किसी व्यक्ति का समान लिंग के प्रति यौन और रूमानी भाव से आकर्षित होना है। यह यौन आकर्षण पुरुष और पुरुष तथा महिला और महिला के बीच रहता है तो इसे सामान्यतः ‘गे’ कहते है। महिला का महिला के प्रति यौनाकर्षण लेस्बियन भी कहलाता है और पुरुष के पुरुष के प्रति आकर्षण सोडम भी कहलाता है। महिला और पुरुष दोनों के प्रति आकर्षित होने वाले को उभयलिंगी कहा जाता है। यौनिक सम्बन्ध—जिनमें मानसिक समायोजन भी रहता है। अंग्रेज़ी में समलैंगिकता के लिए homosexuality और उभयलैंगिकता के लिए biosexuality शब्द प्रयुक्त होते हैं। 

“कुल मिलाकर समलैंगिक, उभयलैंगिक और लिंगपरिवर्तित लोगो को मिलाकर एलजीबीटी (अंग्रेज़ी: LGBT) समुदाय बनता है।” — “आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा दर्शाया गया है कि समलैंगिकता विकल्प नहीं है। समलैंगिकता के कारक अभी स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन आनुवंशिकी और जन्म से पूर्व का हार्मोन के प्रभाव (जब शिशु गर्भ में पल रहा होता है) और वातावरण कभी कभार इसके कारक माने जाते हैं।”1 इनके लिए थर्ड जैन्डर या तीसरा लिंग शब्द भी है। 

सिविल सेवक ऐश्वर्या ऋतुपर्णा प्रधान, एथलीट दुती चंद, एलजीबीटीक्यू कार्यकर्ता सोनल, भरतनाट्यम नृत्यांगना और अभिनेत्री लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, राजनेता और नेत्री हरीश अय्यर तथा शबनम मौसी, उभयलिंगी उपन्यासकार और कवि विक्रम सेठ, लोकप्रिय मलयालम अभिनेत्री अंजलि अमीर, हिन्दी और बंगाली फ़िल्मों की अभिनेत्री तीस्ता, तथा बॉबी डार्लिंग आज देश के जाने माने ‘गे’ व्यक्तित्व हैं। 

नारी विमर्श, दलित विमर्श, वृद्ध विमर्श की तर्ज़ पर आज किन्नर विमर्श की साहित्यिक धारा प्रचलित है और किन्नर विमर्श पर हिन्दी साहित्य में अनेक उपन्यास लिखे गए हैं। नीरजा माधव का ‘यम दीप’, महेंद्र भीष्म का ‘मैं पायल’, ‘किन्नर कथा’, प्रदीप सौरभ का ‘तीसरी ताली’, निर्मला मुराड़िया का ‘गुलाम मंडी’, चित्रा मुद्दगल का ‘पोस्ट बाक्स न. 203 नाला सोपारा’, भगवंत अनमोल का ‘ज़िन्दगी 50-50’, राकेश शंकर भारती का ‘ज़िन्दगी और ज़ंजीर’, डॉ. राजकुमारी का ‘द डार्क डेस्टिनी’, पूनम मनु का ‘द ब्लैंक पेपर’, मालती मिश्रा का ‘मंजरी’ आदि उपन्यास इस विषय पर हैं। प्रवासी महिला उपन्यासकारों का इस विषय पर भले ही सोलो उपन्यास न मिले, लेकिन दिव्या माथुर के ‘शाम भर बातें’, अर्चना पेन्यूली के ‘पॉल की तीर्थयात्रा’ और ‘कैराली मसाज पार्लर’ तथा इला प्रसाद के ‘रोशनी आधी अधूरी सी’ में समाज का यह पहलू भी चित्रित है। 

दिव्या माथुर के उपन्यास ‘शाम भर बातें’ में मीता और मकरंद की शादी की बीसवीं वर्षगाँठ है। पूरे ब्रिटेन से मित्र, सम्बन्धी और भारतीय परिचित एकत्रित हैं। विदेश की धरती हो, दिव्या माथुर की क़लम हो, पार्टी का आयोजन हो, मेहमानों का जमघट हो—असंख्य कहानियाँ उभरने लगती हैं—सुख-दुख की, पीड़ा और मस्ती की, सातवें आसमान की, धुर पाताल की, जीव-जगत की, देश-दुनिया की, प्रगति-दुर्गति की। दिव्या माथुर ने गे, होमोसेक्सुयल, हैट्रोसेक्सुअल, लैस्बियंस, बाइसेक्सुअल, होमोस जैसे लफड़ों की भी चर्चा की है। जैसे आगा साहब अपने ‘गे’ बेटे के लिए मुरादाबाद से दुलहन इम्पोर्ट करते हैं। उन्होंने तो सोचा था कि उनके ‘गे’ साहबज़ादे का ब्याह हो जाएगा तो उनका राज़ छिपा रहेगा, सीधी-सादी दुलहन ज़ुबान नहीं खोलेगी और खोलेगी भी तो जाएगी कहाँ? लेकिन यह शादी तीन महीने भी नहीं टिकती और सब रहस्य जान जाते हैं। आजकल तो यही पता लगाना मुश्किल है कि कौन नॉर्मल है, कौन ‘गे’। शब्दकोश में ‘गे’ का अर्थ ‘समलैंगिक व्यक्ति’ अथवा ‘समलिंगकामुक’ दिया गया है। दिव्या माथुर ‘शाम भर बातें’ में कहती हैं कि ब्रिटेन के टीवी और फ़िल्मों में इनको ऐसी शान से दिखाया जाता है कि बच्चे ‘गे’ होना बड़ी अच्छी और शान की बात मानते हैं। अधिकतर कार्यक्रमों के प्रस्तुतकर्ता ‘गे’ युवक ही रहते हैं। जो मोटी-मोटी गालियाँ देना शान समझते हैं और दर्शक उन गालियों को सुनकर ख़ूब तालियाँ पीटते हैं। हर फ़िल्म या धारावाहिक में एक ‘गे’ कैरेक्टर अवश्य रहता है। मानो वे अपनी भावी जनरेशन के सामने एक आदर्श रख रहे हों। पियानो वादक एलटन जॉन का पार्टनर डेविड फ़रनिश है और दोनों ‘गे’ पुरुषों ने एक बच्चा भी गोद ले रखा है। प्रश्न है कि क्या होमो या बायो-सेक्सुयल युगल सुखद दाम्पत्य का पर्याय हो सकता है? क्या बच्चे के लिए यह सब उपयुक्त है। 

जिया और आपा की समझ में इन भारी-भरकम शब्दों (लैस बीन्स) का एक ही अर्थ है—हिजड़ा—जो न लड़का है, न लड़की। भारत में तो सालगिरह जैसे अवसरों पर कीर्तन करवाते हैं, साईं बाबा के भजन होते हैं या हिजड़े नचवाये जाते हैं। कुछ अफ़्रीकी देशों में तो ‘गे’ लोगों को फाँसी तक दे दी जाती है। ऑस्कर वाइल्ड नाम के प्रसिद्ध आयरिश लेखक को इसके कारण बंदी बनाया गया था। जिया भी इसे क़यामत के लक्षण कहती है। जबकि आज की सोच है कि:

“गे लोगों के क्या –दिल नहीं होते? सदियों से वो – भुगत रहे हैं। हम सबकी – नफ़रत, हिक़ारत और न जानें क्या क्या। – अब जाकर उन्हें कुछ आज़ादी मिली है तो—सब जले मरे जा रहे हैं। – क्यों?”2

अर्चना पेन्यूली के ‘पॉल की तीर्थयात्रा’ की जोहाना को माँ के तलाक़, पुनर्विवाह, बॉय फ़्रेंड और इन सब से मिली असीम वेदना पुरुष से घृणा करने को बाध्य करते हैं। जिसे पश्चिम में सिंगल पेयरेंट कहते हैं, भारत में उसे टूटा हुआ घर कहते हैं। टूटे घर का असर ही है कि जोहाना मानसिक रूप से अत्यंत अस्त-व्यस्त हैं। उसके व्यवहार में उद्दंडता, हठ, आक्रामकता, विद्रोह, अभद्रता, क्रोध, चिल्लाहट, अशिष्टता जैसी बातें समाई हैं। जोहाना के अन्तर्मन में बैठ चुका है कि तीन पुरुषों में से कोई भी उसकी माँ को समझ नहीं पाया, वह जीवन भर उपहास, निंदा, अपवाद ढोती रही। इसीलिए जोहाना लेस्बियंस वृति की ओर झुकने लगती है। हमेशा फ़र्स्ट क्लास पाने वाली, फ़र्स्ट क्लास जीवन जीने वाली माँ के विषय में जोहाना अक्सर बोलती थी:

“मेरी माँ को पति थर्ड क्लास मिले।”3

पॉल समझाता भी है:

“देखो जोहाना, तुम्हारा एक शुभचिंतक होने की वजह से सलाह दे रहा हूँ कि धारा के विपरीत तैरने की कोशिश मत करो। क़ुदरत के साथ खिलवाड़ मत करो। सृष्टि का हर जीव–मादा व नर मिलकर अपने वंश को आगे बढ़ाते हैं।”4 

जबकि जोहाना सोचती है कि एक लड़की ही लड़की की भावनाओं को समझ सकती है। पति पत्नी का सम्बन्ध झूठा है। वह लेस्बियन्स बनना पसंद करती है। उसने एक लड़की को अपनी संगिनी बना लिया है। परिवार के नाम पर उसके पास स्पर्म बैंक, फ़ेर्टिलिटी क्लीनिक, आईवीएफ़ जैसे तर्क हैं। वह मानती है बच्चे का अपने पिता के साथ रहना सामाजिक दस्तूर है, क़ुदरती बंधन या नियम नहीं। 

बहुत से देशों में समलैंगिक विवाह वैध नहीं हैं, फिर भी आज छतीस देशों में समलैंगिक विवाह वैध हैं और उनमें संयुक्त राज्य, कैनेडा, यूनाइटेड किंगडम का भी नाम है। इन्हें ‘गे मैरेज’ भी कहा जाता है। अर्चना पेन्यूली के ‘कैराली मसाज पार्लर’ में मार्क और नैन्सी कोपनहेगेन के उपनगर हेल्लेरूप में जो घर ख़रीदते हैं, उसकी ऊपर की मंज़िल पर कार्ल और एल्फ़ नाम के दो आदमी रहते हैं। दोनों पढ़े-लिखे और उच्च पदस्थ अधिकारी हैं। कार्ल एल्फ़ का नैन्सी से परिचय अपने पति के रूप में कराता है तो नैन्सी दो लंबे-तगड़े पुरुषों को पति-पत्नी के रूप में देख आश्चर्य चकित रह जाती है। कार्ल की अदाएँ, लड़कियों की तरह हाथ मटकाना, इतराना, हाव-भाव उसे अजीब लगते हैं, लेकिन उसके साथ कुछ पल बिताने पर दाढ़ी मूछों वाला कार्ल सोनी-सलोनी नारी की तरह लगने लगता है। कार्ल और एल्फ़ का ‘गे’/होमो युगल है। कार्ल पत्नी की भूमिका निभाता है और एल्फ़ पति की। कार्ल एल्फ़ से कोई दस वर्ष छोटा होगा। एल्फ़ बायो-सेक्सुयल भी है। उसकी दो बेटियाँ हैं। बड़ी बेटी से एक नाती भी है। प्रश्न है कि क्या होमो जीवन सुखद दाम्पत्य का पर्याय हो सकता है? जल्दी ही कार्ल और नैन्सी में मैत्री हो जाती है। वे इकट्ठे ख़रीददारी के लिए जाते हैं। नाखूनों पर नेलपॉलिश लगा अपने प्रिय पुरुषों के विषय में गप-शप करते हैं। 

इलाप्रसाद के ‘रोशनी आधी अधूरी सी’5 में बीएचयू के हॉस्टल में होमो लड़कियाँ भी हैं। सविता शुचि के समक्ष यह रहस्य खोलती हुई उन लड़कियों के नाम बताती है, उनके कमरों की कहानियाँ सुनाती है। 

प्रवासी महिला उपन्यासकारों ने वैश्विक स्तर पर जीवन के हर पक्ष का प्रतिपादन किया है, फिर थर्ड जेंडर उनसे भला कैसे छूट सकता था। कारण चाहे कोई हो, लैस्वियन (पॉल की तीर्थ यात्रा) और सोडम (कैराली मसाज पार्लर) दोनों प्रकार के युगल दोनों यहाँ चित्रित हैं। पार्टियों, टीवी में इनका एकाधिकार इतना बढ़ रहा है कि (शाम भर बातें) पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी को लेकर चिंतित होने लगी है। 

संदर्भ:

  1. Hi.wikipedia.org/wiki/समलैंगिकता 

  2. दिव्या माथुर, शाम भर बातें, वाणी, दिल्ली, 2018, पृष्ठ 118 

  3. अर्चना पेन्यूली, पॉल की तीर्थ यात्रा, राजपॉल, दिल्ली, पृष्ठ 171 

  4. वही, पृष्ठ 182 

  5. इला प्रसाद, रोशनी आधी अधूरी सी, भावना, दिल्ली, पृष्ठ 55

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