ऋतुराज बसंत

15-04-2022

ऋतुराज बसंत

डॉ. मधु सन्धु (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

ऋतुराज बसंत मेरे घर आया है। 
दोपहरी, गुलदाउदी, गुलाब मुस्काया है। 
पवन शीत, धूप गुनगुनी, 
पल्लव की कोमलता, सब हरहराया है। 
ऋतुराज बसंत मेरे घर आया है। 
 
लाल, सफ़ेद, पीले, गुलाबी़ गुलाबों के, 
आकर्षण से उपवन हुलसाया है। 
हर क्यारी, हर गमले, हर कोने, 
हर नुक्कड़ नवांकुर समाया है। 
ऋतुराज बसंत मेरे घर आया है। 
 
ऊॅंचा कर मस्तक नींबू का पेड़, 
धवल पुष्प गुच्छों से मस्ताया है। 
फूलों को फल में परिणित करने का, 
दिन भागा चला आया है। 
ऋतुराज बसंत मेरे घर आया है। 
 
फाइकस की डालें भी बाँहें फैलाकर, 
ख़ुशियों की होली का करती अहसास, 
रंगों ने बग़िया में, 
लुकाछिपी खेल जमाया है। 
ऋतुराज बसंत मेरे घर आया है। 
 
धनिया डबडबाया, पुदीना तमतमाया, 
सूरजमुखी सिर ऊॅंचा कर कैसे चमचमाया है। 
फूट रही कोंपलें, पतझड़ बौखलाया है
ओस से नहला, दूब को नवपरिधान ओढ़ाया है। 
ऋतुराज बसंत मेरे घर आया है। 
 
तितलियों का, भँवरों का, मधुमक्खियों का, 
मधुर संगीत सब ओर छाया है। 
ऋतुराज बसंत मेरे घर आया है। 

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