माँ

डॉ. मधु सन्धु (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

दूर देश में उड़ते बेटे
धरती सा धीरज है माँ। 
 
बेटे के सपनों में खोई
पूरी रात न सोई माँ। 
 
धागे बाँध, भंडारे करती
जागरणों में जीती माँ। 
 
बेटे के संदेश टटोले
चैट बिना कुम्हलाई माँ। 
 
हाथ पकड़ बचपन बिताया 
संघर्षों में थपथपाए माँ। 
 
दुर्बल हारे थके पुत्र को 
हर पल समर्थ बनाए माँ। 
 
जब जब संकट गहराता है 
ढाल बने अंगरक्षक माँ। 
 
बेटा पड़ा अर्थ संकट में 
ज़ेवर ज़मीन बेच आई माँ। 
 
बेटे की हर जीत सफलता 
मस्त कलंदर नाची माँ। 
 
दूर देश में साहब बेटा
प्रतीक्षित पर आशीषती माँ। 
 
घर की देहरी तक रहकर भी
सबसे सक्रिय रहती माँ। 
 
घोर अमावस, विपरीत समय में 
ख़ुश्बू है, त्योहार है माँ। 

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