तज़ुर्बे का पुल

01-10-2020

तज़ुर्बे का पुल

ज़हीर अली सिद्दीक़ी  (अंक: 166, अक्टूबर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

अजी बताओ,
कहाँ तक जायज़ है?
भूख-प्यास को
मजबूरी का नाम देना
लाचारी की वज़ह बताना
बुराइयों की जड़ और
ग़रीबी से रिश्ता जोड़ना
 
भूख तो ज़रूरी है
सीखने की भूख
यक़ीनन जीना सिखाती है
तज़ुर्बे का पुल बाँध
चोटी पर पहुँचाती है
मुसीबत की चोट से
फ़ौलादी बनाती है
धनुर्धर के माफ़िक
लक्ष्य भेदना सिखाती है
 
ग़म को गुम कर
गुमनामी को नामी
एक हुए पीठ-पेट को
पीठ और पेट बनाती
अपंग को दिव्यांग
असम्भव को सम्भव
संजीवनी है मूर्छित की
मूर्छा दूर करती है॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सामाजिक आलेख
नज़्म
लघुकथा
कविता - हाइकु
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में