दीवाना
ज़हीर अली सिद्दीक़ीउस प्यार को प्यार नहीं कहते
जिसमें परित्याग नहीं होता
जो परित्यागों से लथपथ है
हर प्यार वहीं नतमस्तक है॥
जिस प्यार में स्वार्थ नहीं होता
उसमें ही प्यार निखरता है
जो प्यार का देखता स्तर है
उसका स्तर ही मिटता है॥
परवानों की बस्ती में
एक दीया प्यार का जलता है
जलते ही यदि बुझ जाता है
वह प्यार नहीं टिक पाता है॥
तकरार प्यार में होता है
पर प्यार कभी नहीं मरता है
तकरार से जो मरहूम हुआ
वह प्यार कभी नहीं होता है॥
मैं प्यार का वह दीवाना हूँ
अंतिम साँसों तक लड़ता हूँ
जब शमा जले तो जलता हूँ
बुझने पर जलकर मिटता हूँ॥
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