कौन हूँ?
ज़हीर अली सिद्दीक़ीलकीर और तक़दीर का
संगम टटोलता हूँ
संघर्ष की राख में
ख़ुशी से मचलता हूँ॥
कौन हूँ? ...
संघर्ष से भयभीत प्राणी!
बेटियाँ समाज में
होतीं प्रताड़ित
प्रतिध्वनि कराह की
चहुँदिश प्रसारित॥
कौन हूँ?…
सक्षम परन्तु मूक बधिर!
तन तरसता वस्त्र को
वस्त्र है, निर्वस्त्र क्यों?
ढका है तू देह से
मन तेरा निर्वस्त्र क्यों?
कौन हूँ?…
मानसिक रूप से निर्वस्त्र!
अन्न की बर्बादी और
बढ़ती आबादी क्यों?
फँसा है मझधार में
पतवार से इनकार क्यों?
कौन हूँ?...
मझधार को समर्पित निरीह॥
23 टिप्पणियाँ
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Shandra rachna
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बहुत ही सुन्दर जहीर भाई। शुभकामनायें आपको।
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Very nice Zahir
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Very nicely expressed.. Needs attention
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Very well written...
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Masallah
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Masallah Bahut hi umda
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Sab kuch keh gaye apne es poem ke madhyam se.. Nice dear
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Very nice
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अति सुंदर।
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Khoob likhte ho.
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Apke alfass Dil Ko chu Gye...
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Nice
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Mast hai sir ji
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Very nice
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Nice
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संघर्ष ही अपने आप को लकीर और तकदीर से बहुत अलग रखती है क्यों की जहाँ संघर्ष है वहाँ लकीर और तकदीर अपने आप ही पीछे छूट जाते है
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Excellent ......keep it up
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Amazing piece of writing.
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Bahut badhiya bhaiya ji
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Well done Keep it up bro...
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I salute to you brother
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Nice sir g
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