कौन हूँ?

01-04-2019

लकीर और तक़दीर का
संगम टटोलता हूँ
संघर्ष की राख में
ख़ुशी से मचलता हूँ॥
कौन हूँ? ...
संघर्ष से भयभीत प्राणी! 

बेटियाँ समाज में
होतीं प्रताड़ित
प्रतिध्वनि कराह की
चहुँदिश प्रसारित॥
कौन हूँ?…
सक्षम परन्तु मूक बधिर!

तन तरसता वस्त्र को
वस्त्र है, निर्वस्त्र क्यों?
ढका है तू देह से
मन तेरा निर्वस्त्र क्यों?
कौन हूँ?…
मानसिक रूप से निर्वस्त्र! 

अन्न की बर्बादी और
बढ़ती आबादी क्यों?
फँसा है मझधार में
पतवार से इनकार क्यों? 
कौन हूँ?...
मझधार को समर्पित निरीह॥

23 टिप्पणियाँ

  • 17 Apr, 2019 04:22 PM

    Shandra rachna

  • 6 Apr, 2019 04:36 PM

    बहुत ही सुन्दर जहीर भाई। शुभकामनायें आपको।

  • 6 Apr, 2019 02:00 PM

    Very nice Zahir

  • 6 Apr, 2019 01:58 PM

    Very nicely expressed.. Needs attention

  • 2 Apr, 2019 03:13 PM

    Very well written...

  • 2 Apr, 2019 08:16 AM

    Masallah

  • 2 Apr, 2019 07:40 AM

    Masallah Bahut hi umda

  • 2 Apr, 2019 05:50 AM

    Sab kuch keh gaye apne es poem ke madhyam se.. Nice dear

  • 2 Apr, 2019 04:08 AM

    Very nice

  • 2 Apr, 2019 03:45 AM

    अति सुंदर।

  • 1 Apr, 2019 07:00 PM

    Khoob likhte ho.

  • 1 Apr, 2019 06:30 PM

    Apke alfass Dil Ko chu Gye...

  • 1 Apr, 2019 05:55 PM

    Nice

  • 1 Apr, 2019 05:40 PM

    Mast hai sir ji

  • 1 Apr, 2019 05:20 PM

    Very nice

  • 1 Apr, 2019 05:10 PM

    Nice

  • 1 Apr, 2019 05:02 PM

    संघर्ष ही अपने आप को लकीर और तकदीर से बहुत अलग रखती है क्यों की जहाँ संघर्ष है वहाँ लकीर और तकदीर अपने आप ही पीछे छूट जाते है

  • 1 Apr, 2019 04:29 PM

    Excellent ......keep it up

  • 1 Apr, 2019 04:13 PM

    Amazing piece of writing.

  • 1 Apr, 2019 03:34 PM

    Bahut badhiya bhaiya ji

  • 1 Apr, 2019 03:27 PM

    Well done Keep it up bro...

  • 1 Apr, 2019 03:26 PM

    I salute to you brother

  • 1 Apr, 2019 03:21 PM

    Nice sir g

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