मानव मशीन है

15-11-2020

मानव मशीन है

ज़हीर अली सिद्दीक़ी  (अंक: 169, नवम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

भूखे और प्यासे से
दूरी बनाता है
फाँका भर अनाज देकर
फ़ोटो खिंचवाता है॥
 
मित्रों, परिजनों से
दूरी बढ़ाता है
महत्वपूर्ण दिवसों पर
स्टेटस लगाता है॥
 
किसी को जाने बग़ैर
दोस्त बनाता है
सोशल मीडिया पर ही
रिश्ता निभाता है॥
 
सामने बोलने से
छुपता-कतराता है
फ़ेसबुक और इंस्टा पर
दिल से बतियाता हैं॥
 
सारी गतिविधियों से
अवगत कराता है
सच्चाई की दुनिया से
दूरी बढ़ाता है॥
 
रोना और हँसना भी
मैसेज में दिखाता है
आँख और मुँह से
रोता न हँसता है॥
 
ऐसा क्यों लगता
मानव मशीन है
मशीनों की माफ़िक
निर्देशों में लीन है॥
 
संवेदना शरीर की
अंतरिम मज़मून है
शारीरिक सामर्थ्य भी
लगता मरहूम है॥

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