सोंधी ख़ुश्बू

15-12-2022

सोंधी ख़ुश्बू

वन्दना पुरोहित (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

राजन आज 2 साल बाद ससुराल अपने साले की बेटी की शादी में आ रहा था। वो टैक्सी से उतर कर अपने ससुराल के दरवाज़े पर खड़ा था। रंगीन लाइटों की लड़ियों से रंगा-पुता घर दुलहन की तरह सजा था। आज 20 वर्षों बाद भी ससुराल में कोई परिवर्तन न आया था। पहली बार जब वह ससुराल शिवानी को देखने आया था तब शिवानी के सीधे लंबे केश व गोरे रंग पर पहने नीले रंग के शरारा कुर्ते में वो ग़ज़ब की सुंदर लग रही थी। माँ बापू जी के कहने पर दोनों को 10 मिनट अकेले बात करने का मौक़ा दिया गया था। उस पल ही शिवानी की सादगी भरी मीठी वाणी का राजन क़ायल हो गया था। दोनोंं की रज़ामंदी व बड़ों के आशीर्वाद से शिवानी व राजन की शादी हो गई। 

राजन शिवानी को पाकर बहुत ख़ुश था। राजन ही क्यों घर परिवार का हर सदस्य शिवानी के व्यवहार उसकी बोली के साथ ख़ुश थे। वह कभी किसी को तकलीफ़ में देखकर मदद करे बिना ना रहती। दूर-दूर के रिश्तेदार भी जब उसके घर आते थे उनका आदर सम्मान करना उसे बख़ूबी आता था। राजन की माँ तो शिवानी को बेटी का दर्जा देती थी। राजन की बहनें भी अपनी भाभी के साथ सहेली की तरह ही रहतीं थीं। घर का वातावरण बहुत ही अच्छा रहता था। 

समय चलता रहा शिवानी ने दो लड़कों को जन्म दिया। अपने दोनों बेटों में भी शिवानी ने ऐसे संस्कार दिये कि वह भी सभी का सम्मान करते थे। राजन को किसी प्रकार की कोई तकलीफ़ ना थी। बेटे भी बड़े होकर नौकरी करने लगे। हर तरफ़ ख़ुशहाली ही ख़ुशहाली थी। अपने दोनोंं बेटों की शानदार शादी कर शिवानी व राजन तीर्थयात्रा भी कर आये। प्यारी बहुरानियों ने पीछे से घर को बहुत अच्छे से सँभाला। अपनी बहुओं को भी शिवानी बेटी की तरह ही रखती थी अपने हर मिलने वाले से अपनी बहुओं की तारीफ़ करती। 

राजन अपनी शिवानी की यादों में खोया दरवाज़े पर खड़ा ही रह गया तभी राजन के साला साहब जो बाज़ार से आए थे उन्हें खड़ा देख उनका सामान उठाकर अंदर ले गए। शादी का माहौल था सभी ने राजन का स्वागत किया और पास बैठ कर बातें करने लगे। चाय-पानी के साथ बातें चलती रही। सभी शिवानी की बात ही कर रहे थे कि कैसे वह सभी को अपनी मीठी बोली से अपना बना लेती थी। भाभी की आँखें तो बात करते हुए नम हो गईं थीं। साड़ी के किनारे से अपने आँसू पोंछते हुए काम का बहाना ले वे वहाँ से चली गयी। हर तरफ़ शिवानी की यादें थी। आज उसे ये बात सच प्रतीत हो रही थी कि इंसान के जाने के बाद लोग उसका व्यवहार ही याद करते है। राजन को उसकी यादों ने डूबा कर बेचैन कर दिया था। राजन आज भी उस महामारी के काल को याद कर सिहर उठता है जब उसकी शिवानी साँस उठने के कारण दम तोड़ महामारी के काल का ग्रास बन उसे अकेला छोड़ गयी थी। आज वो जी रहा है तो बस अपने बच्चों के लिये। शिवानी कि तरह ही वो भी हर रिश्ते को प्यार और अपनत्व से निभा रहा था। शिवानी के प्यार व रिश्तों की सोंधी ख़ुश्बू ही उसके जीने का सहारा थी। 

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