हरी चूड़ियाँ

15-07-2023

हरी चूड़ियाँ

वन्दना पुरोहित (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


(सावन विशेष)

 

इमरती बड़ी ख़ुशी से सज-धज कर तैयार हो बिरजू से मिलने खेत पर जा रही थी। आज बिरजू ने उससे विशेष तौर पर शाम को ही खेत पर बुलाया था। वह मन ही मन सोच रही थी ना जाने क्या काम होगा जो शाम को बुलाया है। वैसे तो कभी शाम को खेत पर आने से मना किया करते हैं। चलते-चलते अचानक हल्की बारिश शुरू हो गई आसमान में काली घटायें छायी हुईं थीं और हवा का रुख़ भी अचानक से तेज़ हो चला था। वह जल्दी-जल्दी अपने खेत की और क़दम बढ़ा रही थी खेत पहुँचते-पहुँचते बारिश तेज़ हो चुकी थी बिजली तेज़ी से चमचमा रही थी। 

खेत पर पहुँची तो देखा बिरजू वहाँ नहीं था उसने बिरजू को ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाई बिरजू . . . बिरजू . . . लेकिन न बिरजू की आवाज़ वापस आई, ना बिरजू। उसे बुलाने के बाद जाने कहाँ चला गया! वह बिरजू का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी लेकिन काफ़ी देर तक बिरजू ना आया और मौसम का रुख़ था कि और भयंकर हुए जा रहा था। इमरती चिंता में डूबी अपने पल्लू के कोनो को दाँतों के बीच दबाए दूर-दूर तक नज़र दौड़ा रही थी लेकिन किसी आसपास से खेत व पगडंडी पर बिरजू नज़र ना आया। वह ईश्वर को याद करने लगी उसका दिल बैठा जा रहा था। बार-बार बिरजू को लापरवाह, घुमक्कड़ ना जाने क्या-क्या बोले जा रही थी। तेज़ चमकती बिजली ने उसे और डरा दिया। चमकती बिजली के साथ बारिश भी काफ़ी तेज़ हो गई थी। आसपास के खेत में काम करने वाले लोग एक दूसरे को आवाज़ लगाकर घर चलने को कह रहे थे। जमुना ने इमरती को देखा तो उसे भी घर चलने को कहा लेकिन इमरती ने मना कर दिया बोली, “अभी बिरजू आ रहा है उसने मुझे यहाँ बुलाया है। आता ही होगा।”

जमुना ने भी जब ये सुना तो उसे ‘अपना ध्यान रखना’ कहकर खेत से गाँव की ओर निकल पड़ी। आसपास के खेत सुनसान हो चुके थे। इमरती अकेली पेड़ के नीचे खड़ी होकर अपने बिरजू का इंतज़ार कर रही थी। अब तेज़ बारिश के कारण इमरती पूरी भीग चुकी थी; उसका बुरा हाल हो रहा था। अब उसे सुनसान खेत में डर लगने लगा था। वह मन ही मन अपने बापू की बताई हनुमान चालीसा की चौपाइयाँ करने लगी थी। आज सावन की इस बरसात ने रौद्र रूप धारण कर लिया था। उसे अपने से ज़्यादा बिरजू की फ़िक्र हो रही थी न जाने कहाँ होगा? यहाँ मुझे बुलाया फिर वह यहाँ से कहाँ चला गया? एक अनजाना भय उसे घेरकर दिमाग़ की नसों से होता हुआ पूरे शरीर में घुल रहा था। अब तो डर के मारे वह काँप रही थी तभी दूर से बारिश और हवा को चीरती हुई बिरजू की आवाज़ आई इऽऽमरऽऽतीऽऽइऽऽमरऽऽती . . . उसकी आवाज़ ने जैसे इमरती कि नस-नस में ऊर्जा भर दी। आवाज़ की दिशा में ग़ौर कर देखने लगी देखा तो बारिश में भीगते हुए उसी की ओर दौड़ा चला रहा था बिरजू। उसके पास आते ही उसकी जान में जान आई लेकिन उस तेज़ बारिश में चमचमाती बिजली से भी ज़्यादा तेज़ रफ़्तार से दौड़ती बिरजू के गले लग कर रोती हुई बोली, “कहाँ गए थे? आज तुम्हारी इमरती का राम नाम सत्य होने वाला था। अगर तुम कुछ देर और ना आते तो मुझे कुछ हो जाता। पर तुम्हें क्या कहाँ चले गए बिना कुछ बताये।”

इमरती के आँसू पोंछते हुए बिरजू बोला, “ना बाबा ना ऐसी बात ना करो। अगर बता कर जाता जाता तो क्या तुम इस बारिश को रोक लेती?” 

इमरती प्रेम से बिरजू की और देखते हुए बोली, “अगर तुम बताते तो मैं तुम्हें इस मौसम में कहीं न जाने देती।”

बिरजू ने मुस्कुराते हुए कहा, “तभी तो बिना बताये गया था; यह लो। पहन लो . . .फिर जल्दी से घर चले अँधेरा हो चला है।” 

इमरती देखते ही ख़ुशी से उछल पड़ी, “अरे वाह! मेरी पसंद की हरी चूड़ियाँ! तुम ले भी आए। इतनी जल्दी कल ही तो कहा था कि मुझे हरी चूड़ियाँ पसंद है।” 

हरी चूड़ियाँ देखकर उसका रोम-रोम पुलकित था वह ख़ुशी-ख़ुशी हरी चूड़ियाँ पहन रही थी। तब पास खड़ा बिरजू इमरती के चेहरे की ख़ुशी पढ़ रहा था। डरी हुई इमरती उसके आते ही ख़ुशी से चहक उठी थी। उसकी खनकती हरी चूड़ियाँ बिरजू के प्रेम भरी सौग़ात थी, जिन्हें वह आज शहर से लेकर आया था। तभी इमरती ने अपनी दोनों बाँहें बिरजू के गले में डाल दीं और चूड़ियाँ खनकाते हुए कहने लगी, “अच्छा तो मुझे चूड़ियाँ पहनने के लिए बुलाया था। लेकिन इस मौसम में तुम शहर क्यों गए कुछ हो जाता तो।”

बिरजू उसकी चूड़ियों को निहारता हुआ बोला, “कैसे कुछ हो जाता? तूने अपने पति कि सलामती के लिए ही तो सावन महीने का व्रत रखा है। मेरा भी तो फ़र्ज़ बनता है कि तेरी इच्छा पूरी करूँ।”

इमरती गर्दन हिलाते हुए मुस्कराकर बोली, “चलो बिरजू, घर चलो। माँ-बाबूजी राह देखते होंगे। उन्हें हम दोनों की चिंता हो रही होगी।” 

बिरजू इमरती का हाथ थामे गाँव की पगडंडी पर चल पड़ा। दोनों सावन कि बारिश में प्रेम संग भीग अपने घर की ओर चल पड़े। 

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