बीबी हो तो ऐसी
वन्दना पुरोहित
सरिता के पति रमेश प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। वह अपने किसी ना किसी अफ़सर को दावत पर बुलाते रहते और उनकी जी तोड़ कोशिश रहती थी कि उन्हें ख़ुश रखें ताकि उनका प्रमोशन हो सके। उसी कड़ी में आज फिर रमेश ने अपने अफ़सर को दावत पर बुलाया था इसलिए सुबह से ही सरिता तैयारी में लगी थी। आज का दिन रविवार का था तो पति रमेश भी घर पर ही थे। बड़ी बारीक़ी से घर के हर कोने को देख रहे थे क्योंकि अफ़सर के साथ उनकी अफ़सर पत्नी भी आ रही थी। विशेष बात यह थी कि वह भी किसी ना किसी दूसरी ऑफ़िस में अफ़सर थी। बारीक़ी से घर के कोनों को देखते हुए जैसे ही उनकी नज़र स्टोर के कोने में पड़े अस्त-व्यस्त सामान पर पड़ी ज़ोर से आवाज़ लगायी, “सरिता, सरिता|”
किचन से पसीना पोंछती हुई सरिता आयी तो बरस पड़े, “देखो सरिता सामान कैसे अस्त-व्यस्त पड़ा है उन्हें अपना घर दिखाऊँगा तो कितना बुरा लगेगा। ना जाने तुम सारा दिन क्या करती हो और हाँ माँ के पलंग के पास उनकी दवाइयाँ और सामान भी बेतरतीब पड़ा है उसे भी देख लेना।”
सरिता ने कहा, “किचन का काम कर देखती हूँ। वैसे माँ की दवाइयाँ तो उनके पास ही रहेंगी; उन्हें बार-बार चाहिए होती हैं।”
रमेश ने फिर रोब झाड़ा, “लेकिन उन्हें ढंग से रखो और माँ को भी बता देना आज अफ़सर के साथ उनकी बीवी भी आएगी वह भी अफ़सर हैं।”
सरिता रमेश की बात सुन वापस किचन में चली गई तो पीछे-पीछे रमेश जी पहुँच गए और बोले, “सुनो, माँ कह रही थी कि तुम दाल की पकौड़ी बहुत अच्छी बनाती हो; तो साथ में ज़रा वह भी बना देना वैरायटी हो जाएगी।”
सरिता सोच रही थी कि वैसे ही रमेश जी ने मीनू अच्छा-ख़ासा तैयार कर दे रखा था अब पकोड़े! लेकिन रमेश जी की फ़रमाइश को दरकिनार करना उनकी आदत में नहीं था तो जल्दी से दाल भिगो दी। तभी उनकी बेटी मोनू किचन में आयी बोली, “वाह मम्मी आज फिर पापा के अफ़सर की दावत! अपनी तो मौज हो गई! आप तरह-तरह की वैरायटी बनाओगी। चलो मैं भी थोड़ी हेल्प कर देती हूँ।”
दोनों तैयारी में लग गईं। शाम 6:00 बजे तक घर और खाना तैयार था अब अफ़सर और उनकी बीवी का इंतज़ार था। रमेश जी सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने तैयार थे तभी उनकी नज़र सरिता पर पड़ी बोले, “ढंग की साड़ी पहन लो काम वाली बाई नज़र आ रही हो।”
सरिता का मन ये बात सुनकर कुंद हो गया क्योंकि सरिता ने अपने मन से साड़ी अच्छी ही पहनी थी और वह प्रेस भी थी लेकिन चलो दूसरी पहन ली।
ये बात सुन माँ बीच में ही बोल पड़ी, “मुझे तो बहू ने सुबह ही अच्छी साड़ी पहना दी; वैसे मेरी सभी साड़ियाँ सफ़ेद हैं, चिंता ना कर बेटा इस बार तेरी उन्नति ज़रूर होगी। सरिता ने खाना भी मेहनत से बनाया है।”
तभी बाहर गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ आई और रमेश जी मेन गेट पर पहुँच अपने अफ़सर का स्वागत करने को खड़े हो गए। पीछे-पीछे सरिता भी मुस्कुराती हुई अभिवादन के लिए पहुँच गई। साहब के साथ उनकी पत्नी जो बहुत ही सादगी भरी अधेड़ महिला थी और सौम्य और सुंदर लग रही थी; उन्हें पहले बैठक में बैठाया गया। हर चीज़ क़रीने से सजी थी। साहब व उनकी पत्नी को माँ व पूरे परिवार से मिलवाया तो बड़ी ख़ुशी से सरिता से बातें करने लगी। थोड़ी देर में डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया जैसे ही खाना शुरू करने लगे साहब की बीवी बोली, “सरिता तुम भी साथ आ जाओ।”
संकोच करती हुई सरिता बोली, “नहीं मैडम, आप लोग लीजिए मैं आपको खाना परोसती हूँ।”
रमेश भी अपनी पत्नी की बात से सहमत बोल पड़े, “इसकी आदत है सब को खाना खिला कर ही खाती है।”
साहब और उनकी पत्नी बड़े चाव से खाना खा रहे थे। हर व्यञ्जन की तारीफ़ किए जा रहे थे। मन ही मन रमेश जी को अपना प्रमोशन नज़र आ रहा था। खाना खाने के बाद साहब की पत्नी ने बैठक में बैठते हुए सरिता से भी पास बैठने को कहा। अब सरिता भी सभी के साथ बैठी थी तो रमेश जी को लगा कहीं अंग्रेज़ी शब्द उलट-पुलट ना बोल दे, सरिता के बैठते ही बोले, “ज़रा सौंफ़ सुपारी लाना।”
तभी मोनू किचन से सौंफ़ सुपारी ले आयी और बोली, “मम्मी आप बैठो।”
साहब की पत्नी सरिता के काम करने के तरीक़े से काफ़ी प्रभावित हुई, वे तारीफ़ कर रही थी, “सरिता तुमने खाना बहुत अच्छा बनाया और दाल की पकौड़ी तो मेरे पति की फ़ेवरेट है लेकिन मुझसे नहीं होता। मार्केट से ही मँगाती हूँ यह सब काम तुम कैसे मैनेज करती हो? बड़ा मुश्किल होता है; शादी के बाद दो-तीन साल तक मेरी भी कोई जॉब ना थी तब मैंने घर सँभाला था। मुझे पता है बड़ी मुश्किल होती है। वास्तव में तो तुम हाउसवाइफ़ नहीं होममेकर हो। घर भी तुमने कितनी ख़ूबसूरती से सजाया है। हर कोना तुम्हारे घर के प्रति समर्पण को दर्शाता है।”
तभी रमेश जी के अफ़सर बोल पड़े , “अरे भाई रमेश, बीवी हो तो ऐसी! अपनी बीवी से ही सीख लो। अपने ऑफ़िस की टेबल तक मैनेज नहीं कर पाते तुम तो इन्होंने पूरा घर मैनेज कर रखा है।”
उनकी बात सुन रमेश जी क्या कहते? खिसियाई हँसी में हँस पड़े बोले, “सही कहा साहब बीवी हो तो ऐसी!”
दूसरे दिन ऑफ़िस से आते हुए रमेश जी मिठाई का डब्बा लेकर घर आये। आज उनका ऑफ़िस में प्रमोशन हुआ था, साथ में 2000 का बोनस भी था। ख़ुशी से रमेश जी ने भगवान को भोग लगाकर लड्डू हाथ में लिए सरिता को आवाज़ लगायी और सरिता कुछ पूछती उससे पहले ही सरिता को लड्डू खिलाकर आज ख़ुशी से बोल पड़े, “तुम तो वास्तव में होममेकर हो। साहब की बीवी सही कहती थी और साहब ने भी सही कहा बीबी हो तो ऐसी।”
आज रमेश जी के मन से बात निकली थी जिसे सुन सरिता माँ व मोनू एक दूसरे को ख़ुशी से देख रहे थे।
आज बरसों बाद अफ़सरों को दी गयी दावतों की मेहनत सफल हो गई थी।