अटूट बंधन
वन्दना पुरोहितआकाश का आज ऑफ़िस के किसी कार्य में मन नहीं लग रहा था। अनमना-सा लैपटॉप पर अपनी उँगलियाँ चला रहा था। मन ही मन एक चिंता उसे परेशान कर रही थी, कि उसने माँ का कहना मान कर उनकी पसंद से शादी क्यों नहीं की? आज उनका कहना माना होता तो शायद यह नौबत ना आती। आज महीना हो गया, नीरा अपने मम्मी-पापा के पास नाराज़ होकर चली गई। छोटी-छोटी बातों पर नीरा का नाराज़ होना उसे अब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता लेकिन नीरा ने तो इसे अपनी आदत में शुमार कर लिया।
पहली बार कॉलेज कैंटीन में प्रेम के इज़हार के बाद जब नीरा नाराज़ हुई तो उसे मनाने के आकाश ने 10 जतन किये और यह रूठना मनाना उन दिनों बहुत अच्छा भी लगता था। दोनों जब भी कहीं घूमने जाते और आकाश की नज़र किसी लड़की पर पड़ते ही नीरा नाराज़ हो जाती, कहती, लगता है तुम्हें मैं पसंद नहीं इसीलिए तुम दूसरी लड़कियों पर नज़र डालते हो। आकाश बहुत समझाता लेकिन उसके दिमाग़ को फिर से सेट करना बड़ा मुश्किल होता। जबकि आकाश कभी किसी को इस नज़रिए से न देखता। आकाश से अत्यधिक प्रेमवश ही नीरा कभी आकाश को दूसरों की ओर देखने भी नहीं देना चाहती थी। धीरे-धीरे बात बढ़ते-बढ़ते शादी तक आ पहुँची। एक दिन नीरा ने ज़िद ही पकड़ ली, अगर तुम सिर्फ़ मुझसे प्रेम करते हो तो शादी कर लो; अपने परिवार से मेरे बारे में बात करो। लेकिन आकाश की अभी नौकरी भी नहीं लगी थी; किस आधार पर परिवार से वह शादी की बात करता। लेकिन नीरा कहने लगी—बहाने बना रहे हो, जबकि आकाश का कहना एकदम सही था। जब तक वह स्वयं की ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकता तो विवाह कैसे कर सकता है? आख़िर उसने जल्दबाज़ी में एक मामूली सी प्राइवेट नौकरी ज्वाइन कर ली। अब तो नीरा दिन-रात उसे शादी करने के लिए ज़ोर डालने लगी। आख़िर आकाश भी नीरा को प्रेम करता था इसलिए उसने अपने मम्मी-पापा को नीरा के बारे में बताया। मम्मी ने साफ़-साफ़ मना कर दिया और कहने लगी, “लव मैरिज का भूत थोड़े ही दिनों तक रहता है घर गृहस्थी में पड़ते ही सब भूल जाओगे। ऐसी क्या ख़ास बात है नीरा में 4 दिन में सब पता चल जायेगा।” कहकर मम्मी रूम में चली गई।
आकाश ने पापा से मम्मी को मनाने का कहा फिर भी मम्मी शादी की लिए न मानी। दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली। जब घर आए तो बहुत दिनों तक मम्मी ने नीरा से बात भी नहीं की और ना उसका किसी तरह का कोई स्वागत हुआ। सिर्फ़ पापा ही नीरा से बात करते थे। आज साल भर बाद जैसे-तैसे मम्मी और नीरा धीरे-धीरे एक-दूसरे के क़रीब आए। नीरा हमेशा कहती—शादी हुई है पर नयी बहू वाली फ़ीलिंग अभी तक नहीं है। कभी मेरा इस घर में वेलकम तो हुआ ही नहीं।
नीरा को अब परिवार से भी शिकायत रहने लगी। आकाश और नीरा का प्रेम न जाने कहाँ खो गया। हर छोटी-बड़ी बात पर दोनों में आए दिन झगड़े होने लगे थे। इसी के चलते आज नीरा अपनी मम्मी के घर चली गई थी।
तभी शीला और सोहेल ने उसको विचारों में खोया देख ज़ोर से आवाज़ लगायी, “आकाश चल कैंटीन चलते हैं। जल्दी से आ जा।” अपने दोस्तों की आवाज़ सुन आकाश हड़बड़ा कर लैपटॉप ऑफ़ करने लगा।
कैंटीन में चाय पीते हुए सोहेल ने पूछा, “घर पर सब ठीक है?” आकाश की अनमनी-सी हाँ से सोहेल आकाश का हाल समझ गया, उसने अपनी पत्नी शीला की तरफ़ देखते हुए कहा, “आज शाम हम तेरे घर पर ही नीरा भाभी के साथ नाश्ता करेंगे।”
सुनते ही आकाश ने झेंपकर कहा, “अरे यार भूल गया वो तो आज मायके गई होगी।”
सोहेल ने कुरेदा, “यार क्यों मुझसे बात छुपाने की कोशिश कर रहा है लगता है नीरा फिर नाराज़ हो गई।”
आख़िर आकाश ने सोहेल और शीला को पूरी बात बतायी और डर जताया कि कहीं नीरा बड़ा क़दम ना उठा ले। मम्मी पापा के बहुत मनाने पर भी वो न मानी।
शाम को सोहेल और शीला ने एक रेस्टोरेंट में नीरा को कॉल करके बुलाया और आकाश को भी बुलाया फिर शीला ने नीरा को समझाया, “शादी से पहले की बात और थी, अब तुम्हारी नयी गृहस्थी है। इसे जमाने की बजाय बात-बात पर रूठकर मम्मी के घर जाने से समस्या का हल नहीं निकलेगा। विवाह तो अटूट बंधन है। तुम सब बातों को साइड में रखकर सोचो आकाश ने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया और तुम आकाश को छोड़कर बार-बार मम्मी के घर चली जाती हो। कल ऑफ़िस में आकाश खोया-खोया सा था इसकी हालत ने सब हाल बयाँ कर दिया। अब तुम ही बताओ आगे क्या करना है।”
नीरा ने आकाश की तरफ़ देखा तो वह गुमसुम था। उसे इस हाल में देख नीरा को अच्छा नहीं लगा।
शीला ने नीरा से पूछा, “घर चलें?”
नीरा ने मुस्कान के साथ स्वीकृति दे दी। नीरा अपने किये पर शर्मिंदा थी। उसकी आँखों में पानी था। तभी आकाश ने कहा, “ऐसे नहीं अब इसका वेलकम शानदार तरीक़े से करूँगा इसलिए अब मैं अभी घर जा रहा हूँ। नीरा तुम्हें कल मम्मी-पापा के घर से सुबह विदा कराने आऊँगा। तैयार रहना।”
घर जाकर आकाश ने मम्मी-पापा को बताया, “कल नीरा को लेने जा रहा हूँ।” उसकी ख़ुशी में मम्मी-पापा भी शामिल हो गए।
आज आकाश के साथ मम्मी भी नीरा के वेलकम की तैयारी में लगी थी। बहू के लिए भोग बनाया और आरती की थाली, द्वार पर कुमकुम घोलकर परात रखी।
नीरा को लेकर जब आकाश आया तो दोनों के चेहरे पर ख़ुशी थी। मम्मी ने अपने बहू-बेटे की आरती कर गृह-प्रवेश करवाया। कुमकुम थाल में पाँव रखा कर आँगन में गृह-लक्ष्मी के प्रवेश के पदचिह्न बनाये। नीरा आज नई दुल्हन-सी शरमा रही थी।
आकाश और नीरा एक-दूसरे को पुनः पाकर अटूट बँधन में बँध प्रेम से सरोबार थे।
1 टिप्पणियाँ
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अच्छी कहानी। अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कुंज पत्रिका में प्रकाशित होने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं