लोक लाज

15-04-2022

लोक लाज

वन्दना पुरोहित (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

हे जगत के स्वामी
तुमको बाँधा लोक लाज ने। 
भूल गए सब त्याग, 
करे जो सहचरी ने वन में। 
पग पग काँटों पर चल, 
साथ दिया जो हर पल। 
महलों का सुख छोड़, 
चली जो संग तुम्हारे वन में। 
कोमल काया को कष्ट दिया, 
पाने को संग तुम्हारे। 
तुम भूल गये एक क्षण में, 
सीता के त्याग सारे। 
करती हर नारी प्रश्न प्रभु, 
क्यों किया सतीत्व पर शक। 
जीवन भी मरण समान हुआ, 
तब धरती माँ की गोद चली, 
वो सती जनक दुलारी। 
हे जगत के स्वामी, 
तुमको बाँधा लोक लाज ने। 

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