फ़ौजी

वन्दना पुरोहित (अंक: 246, फरवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

आया हूँ मैं अरसे बाद माँ, 
स्वप्न तुम्हारे पूरे करने। 
एक एक पल की यादों को, 
फिर तुम सब संग जीने। 
 
बहुरी को मेंहदी लगवाओ, 
बच्चों को भी ख़ूब घुमाओ। 
एक साड़ी तुम भी ले आओ, 
बाबा के एक कुर्ता लाओ। 
 
हफ़्ते की छुट्टी है बाक़ी, 
फिर होगी दुश्मन की छुट्टी। 
सीमा पर फिर जाना है, 
दुश्मन को मार गिराना है। 
 
लहू बहे चाहे जाये प्राण, 
तिरंगे को फहराना है। 
अमृत महोत्सव का मौक़ा है, 
एक और दिवस मनाना है। 
 
दुश्मन के इरादों को, 
मिट्टी में मिलवाना है। 
भारत माँ के बेटों को, 
माँ को शीश नवाना है। 

1 टिप्पणियाँ

  • 26 Jan, 2024 12:04 AM

    बहुत सुन्दर रचना ... जय हिन्द

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