दो अनजाने

01-11-2024

दो अनजाने

वन्दना पुरोहित (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

शरद ऋतु है सुहानी, 
उसकी भी है एक कहानी। 
दो अनजाने संग बैठे, 
बातों बातों में किये वादे। 
 
एक चाँद आसमाँ में दमका
दूजे का हाथों में हाथ। 
संग जीवन के स्वप्न सुहाने, 
दो पल में जी डाले सारे। 
 
वादों को मनमीत निभाये। 
संग डोली में साजन लाये। 
अब दोनों की प्रीत वही है, 
एक दूजे के है वो साथी। 
 
अर्घ चाँद को दे सजनी
संग साजन के देखे चाँद। 
दोनों की बस एक तमन्ना 
जन्म जन्म के हो वो संगी। 

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