दो अनजाने
वन्दना पुरोहित
शरद ऋतु है सुहानी,
उसकी भी है एक कहानी।
दो अनजाने संग बैठे,
बातों बातों में किये वादे।
एक चाँद आसमाँ में दमका
दूजे का हाथों में हाथ।
संग जीवन के स्वप्न सुहाने,
दो पल में जी डाले सारे।
वादों को मनमीत निभाये।
संग डोली में साजन लाये।
अब दोनों की प्रीत वही है,
एक दूजे के है वो साथी।
अर्घ चाँद को दे सजनी
संग साजन के देखे चाँद।
दोनों की बस एक तमन्ना
जन्म जन्म के हो वो संगी।