प्रभा चक्र
संगीता राजपूत ‘श्यामा’
टेर लगा दिनकर खिसियाया
संग काठ क्यों खेल रहा
बैठ इला पे क्रीड़ा करने
प्रभा चक्र पे आक बहा . . .
बाँछें खिल गई शैशव की
द्वार पे मित्र का आगमन
भेट सिंदूरी डिबिया बंद
करूँ हर्ष लिपट आचमन
बालक को किलकारी देकर
रशिम रथ पे सूर्य नहा . . .
राह चले पगडंडी की मिल
सरसी ऊपर तैरेंगे
एक गुलेल के हैं लक्ष्य दो
नभ पे कंचे फरेंगे
साँझ ढले तक धमा चौकड़ी
पाखी दंगल देख यहाँ . . .
चला ठुमक के बालापन
गलबहिया डाल भानु की
दोनों ने अब ऐड़ लगाई
गगन पे साधी ठानुकी
देख सवेरा मन मुसकाए
दृश्य कथानक सुखद कहा . . .