नरेन्द्र शर्मा ‘नरेन्द्र’ की रचनाधर्मिता
संगीता राजपूत ‘श्यामा’हाथरस (उ. प्र.) के गाँव गिनौली किशनपुर में जन्मे नरेन्द्र कुमार शर्मा का साहित्यिक नाम नरेन्द्र है।
उनके दो प्रकाशित काव्य संग्रह माटी के दीप खड़ी बोली में रचित है तथा दूसरा काव्य संग्रह वंशीवट ब्रजभाषा में लिखा गया है। नरेन्द्र जी जब ब्रजभाषा में लिखते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है, वह ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवियों की परम्परा को आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं और जब खड़ी बोली में पंक्तियाँ रचते हैं तब अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरिऔध” जी की काव्य वंशावली को विस्तार देते है। निर्बाध लय और गेयता से बुनी पंक्तियाँ व भावों की मौलिकता ही नरेन्द्र जी की विशेषता है।
शंख फूँको एकता का
स्वर्ग सी सुन्दर धरा पर, तुम किरण बन कर दिखा दो!
दो नया जीवन जगत को, स्वर्ग से सुंदर बना दो!!
सोख कर दुख की तपन, सुख का सुखद आभास दो तुम,
ज्ञान का भण्डार भर जाये, नवीन प्रकाश दो तुम।
दीन दुखियों के हृदय में, सुप्त भावों को जगा कर,
चेतना की बाँसुरी में स्वर उठें, वह साँस दो तुम॥
नित्य नूतन प्रगति पथ पर, पग बढ़ें, मंज़िल सरल हो
शंख फूँको एकता का, समन्वय के स्वर जगा दो!!
(काव्य-संग्रह “माटी के दीप” से)
काव्य का स्वरूप और उद्देश्य तभी सार्थक होता है जब वह कुम्हलाये मन को उर्जा से भर दे। उपर्युक्त पंक्तियाँ समाज के प्रति सजगता व सन्देश का भाव लेकर लिखी है। शब्दों में प्रांजलता व उपमा की आभा को दर्शाती पंक्ति–चेतना की बाँसुरी में स्वर उठे। साहित्य में रुचि रखने वालों के लिए मिष्ठान के सामान है।
ब्रज ग़ज़ल
भौत दिनन के पाछें आये, आऔे सा!
भलौ भयौ जो दरस कराये, आऔे सा!!
पाँच साल तें त्यारौ पैंड़ौ देखि रहे,
बाट तकत दीदा पथराये, आऔे सा!!
पिछली बिरियां बुरे बने हम कक्का के,
तुमें गाम के बोट दिबाये, आऔे सा!!
व्यंग्य से तनी ब्रजभाषा में लिखित ग़ज़ल, एक ओर ब्रजभाषा के माधुर्य को छलकाती है वही दूसरी ओर चुनाव के दिनों में नेताओं के प्रति जनता की खिसियाहट को भी प्रगट करती है। इन पंक्तियों में कला पक्ष जो कि भाषा के माधुर्य को लिए है व भाव पक्ष व्यंग्य से कसा हुआ तरकश है, दोनों ही एक दूसरे के विरोधी दिखाई देते है परन्तु यही विरोधाभास पंक्तियों के सौन्दर्य को बढ़ाता है।
ज़िन्दगी
खुल कर वो खिल-खिलाना,
पल भर में रूठ जाना,
सबका दुलार पाना,
यह ही तो ज़िन्दगी है!!
दो-चार पल की बातें,
फिर रोज़ मुलाक़ातें,
काटे कटें न रातें
यह ही तो ज़िन्दगी है!!
काव्य की आभा उसकी गेयता में निहित है। जीवन के प्रति आशान्वित करती सरल शब्दों में पिरोई पंक्तियाँ, आम जन के मन में रचना के प्रति आत्मीयता का भाव अवश्य उत्पन्न करेंगी व गुनगुनाने पर विवश करेंगी।
दोहे
ज्ञान कभी सीमित नहीं, शिक्षा कभी न पूर्ण।
शक्ति न पर आश्रित कभी, भक्ति न हो सम्पूर्ण॥
शिक्षित कभी न हो भ्रमित, उद्योगी न विपन्न।
राह कभी भटके नहीं, जो सद् गुण सम्पन्न॥
हिंदी भाषा की गरिमा से गठित, सीख देता दोहा सुसाहित्य में वृद्धि करता हुआ वर्तमान में दोहा लिखने के लिए नए रचनाकारों को प्रेरित करेगा।
बाल-गीत
चीनी लेकर चींटी रानी,
बीच सड़क पर आई।
आगे चल कर उसे अचानक,
हाथी पड़ा दिखायी॥
चींटी बोली, हट रे हाथी,
चीनी मत खा लेना!
थोड़ा इधर-उधर होकर तू,
रस्ता मुझको दे ना!!
हाथी बोला, मर जायेगी,
जल्दी आगे बढ़ ले!
चींटी बोली, बातें मत कर,
जब चाहे, तब लड़ ले!!
हाथी चींटी की नोक–झोक का सरल सुबोध बालगीत, बालकों को सहज ही गाने को प्रेरित करके अपनी और आकर्षित करता है।
दोहा, बालगीत, गीत, ग़ज़ल आदि विधाओ में नरेन्द्र जी विविधता का सदैव ध्यान रखते है यह उनकी रचनाधर्मिता की विशेषता है। समय–समय पर फ़ेसबुक पर प्रकाशित नरेन्द्र जी की अनेक काव्य रचनाओंं से सभी साहित्य प्रेमियों की भेंट होती रहती है। उनकी रचनाओंं में शब्दों का छलकता वैभव देख साहित्य भी मुग्ध हो उठता है। सुंदर हिंदी के शब्दों को गूँथ कर रची नरेन्द्र जी की रचनायें साहित्य जगत को सदैव आह्लादित करती रहेंगी।
“पुस्तकों के बढ़ते अंबार के बीच अपनी काव्य शक्ति से समाज को सार्थक सृजन का उदाहरण प्रस्तुत करती नरेन्द्र शर्मा ‘नरेन्द्र‘ जी की काव्य–रचनायें, साहित्य की अनमोल थाती हैं।”