तेजेंद्र शर्मा जी की कहानी ‘कैलिप्सो’

01-03-2024

तेजेंद्र शर्मा जी की कहानी ‘कैलिप्सो’

संगीता राजपूत ‘श्यामा’ (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

समीक्षित रचना: कैलिप्सो
कहानीकार: तेजेन्द्र शर्मा

 

बहुत सी कहानियों के पात्र व घटनाएँ वास्तविक जगत से प्रेरित होकर लिखी जाती हैं। लेखक अपनी कल्पना-शक्ति का प्रयोग करके कहानी के पात्रों को रचता है व घटनाओं को अपने तरीक़े से गढ़कर कहानी को एक अलग रूप प्रदान करता है। लेखक की यही रचनात्मकता कहानी को अन्य कहानियों से अलग बनाती है। लेकिन जब बात कैलिप्सो की आती है तो लगता है कि तेजेंद्र शर्मा जी ने किसी व्यक्ति के चेतन-मन से प्रेरित होकर कैलिप्सो की रचना कर दी। मानो लेखक की आँखों ने किसी के मस्तिष्क को पढ़ लिया है। विचारों की उलझन, मन में उठक-बैठक करते संवाद को इतनी सुगढ़ता से शब्दों में सानकर लिखा गया है कि पाठक कहानी के साथ स्वयं को घूमता हुआ पाता है। 

“वह आज भी वहाँ नहीं बैठी” इस वाक्य से कहानी का आरंम्भ होता है परन्तु यह वाक्य कहानी की अंतिम पंक्तियों की उलझन को व्यक्त करता है। “पिछले छह महीनों से नरेन उसे हेंडन सेंट्रल अन्डरग्राउंड स्टेशन के बाहर क्वींस रोड के बस स्टॉप के पीछे बैठते देख रहा है। उसके बाल खिचड़ी रंग के है, जिसे अँग्रेज़ साल्ट एंड पैपर लुक कहते है।” 

उपर्युक्त पंक्ति कहानी में सजीवता लाकर कहानी के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करती है व लेखक द्वारा लिखित शब्दों को पढ़ते ही, पाठक को सभी घटनायें घटती प्रतीत होती हैं। कैलिप्सो की कहानी आगे बढ़ती है जहाँ नरेन विचार करता है कि उस लड़की का क्या नाम हो सकता है? जूली, ऑड्री, कलेयर या शिनेड . . . और फिर कहानी का विशेष पात्र नरेन उस अनजान युवती का नामकरण करता है . . . जोकि कहानी की मुख्य पात्र है . . . कैलिप्सो। ताकि विचारों को आगे बढ़ाने में सुविधा हो। यह पंक्तियाँ या इससे मिलते-जुलते भाव बहुत से व्यक्तियों के मन में अवश्य आए होंगे। व्यक्ति उन सभी के बारे में जिज्ञासु होता है जिन्हें वह नहीं जानता परन्तु उनके बाहरी रूप–रंग या व्यवहार के प्रति आकर्षित होता है। 

“कैलिप्सो यहाँ क्यों बैठती है, कब से बैठती है, इसका दुनिया में कोई अपना है या नहीं। उसे बहुत सी कहानियाँ याद आने लगी। चार्ल्स डिकेंस का नावेल ग्रेट एक्सपेक्टेशंस याद आया।” यह पंक्ति संकेत देती है कि नरेन एक अच्छा पाठक है और उसे पुस्तकों में कितनी रुचि है। कहीं ऐसा तो नहीं कहानियों को अधिक पढ़ने के कारण पर आसपास के घटनाक्रम को देखकर अधिक कल्पनाशील हो जाता हो, नरेन का चेतन मन एक साधारण से दृश्य या व्यक्ति में भी विशिष्ट बात खोज लेता हो। क्यों कैलिप्सो के प्रति वह इतना आकृष्ट हो रहा है . . .? अकेली लड़की को रोज़ एक ही जगह बैठा हुआ पाता है या साल्ट एंड पैपर लुक की वजह से . . . कारण कई हो सकते हैं, हमें लगता है कि नरेन ऐसा व्यक्ति है जो आसपास की घटनाओं के प्रति सजग रहकर उनका अवलोकन करता है, ठीक वैसे ही जैसे पुस्तक को पढ़ते समय एक अच्छा पाठक शब्दों के मर्म को समझता हुआ, पुस्तक की घटनाओं के साथ यात्रा करता है। नरेन को अपने बचपन की एक घटना याद आती है जब अनामिका नाम की नर्स किसी के प्रेम में पड़कर अपना मानसिक संतुलन खो देती है और बस–स्टॉप पर आ जाती है। तेजेंद्र जी की कहानी के इस भाग को पढ़ते समय हमें अब लग रहा है कि नरेन संभवतः ओवरथिंकिंग का शिकार है। 

“कैलिप्सो के पास एक ‘लाते काफ़ी’ का पेपर गिलास रखा था। गिलास कोस्टा काफ़ी का था। यानी कि वह दो पाउंड पैंतीस पैंस की काफ़ी ख़रीदने की क़ूवत रखती थी। तो पैसे कहाँ से लाती होगी?” नरेन कैलिप्सो के बारे में इतना जिज्ञासु होकर बारीक़ी से अध्ययन कर रहा है मानो वह कोई मनोवैज्ञानिक है। नरेन अपनी प्रेमिका सीमा के बारे में विचार करता है कि कही सीमा को कैलिप्सो के बारे में पता न चल जाए, यदि ऐसा हुआ तो सीमा बुरा मान जाएगी यानी नरेन को कैलिप्सो में अपनी प्रेमिका दिखाई देने लगी है। सीमा का ईर्ष्यालु स्वभाव नरेन को डराता है, साथ ही वह सीमा की अच्छाइयों पर भी विचार करता है। रुमाल, जुराबें कोलोन सब सीमा ले कर आती है और सीमा ने साफ़–साफ़ बता दिया था कि उसका पति दूसरी औरतों के प्रति ध्यानाकर्षित रहता था इसीलिए उनका तलाक़ हुआ। अब नरेन यह निर्णय लेता है कि वह सीमा को कुछ नहीं बतायेगा। एक दिन नरेन देखता है, एक पुरुष कैलिप्सो से बात कर रहा है। नरेन अपने मन में जलन अनुभव करता है, वह तय करता है कि वह अब सीमा की परवाह भी नहीं करेगा। अब यहाँ पर हमें सीमा के ऊपर कैलिप्सो भारी पड़ती दिखाई देती है। सीमा के सेवा-भाव को एक झटके में नरेन किनारे कर देता है . . . यहाँ नरेन उन पुरुषो की भाँति दिखाई देता है जो बाहरी रूप के चक्कर में वर्षों से साथ रह रही समर्पित पत्नी को एक पल में झटक देते है। 

और फिर एक दिन नरेन कैलिप्सो से काफ़ी पीने के लिए पूछता है और वह मान जाती है, काफ़ी पीने के बाद वह थैंक्यू कहती है तो नरेन को उसका स्वर संगीत की भाँति सुनाई देता है। नरेन के मन में द्वन्द्व चलता है, कही कैलिप्सो धंधा तो नहीं करती . . .। बाद में वह सीमा से कैलिप्सो के बारे में बात करता है और कहता है कि वह एक नाटक लिखेगा सीमा कैलिप्सो की भूमिका करेगी। यह सुनकर सीमा के चेहरे पर गंभीर–भाव आ जाते हैं और इसी बीच नरेन तीन सप्ताह के लिए भारत चला जाता है। सीमा रोज़ उसे फोन से हिदायत देती है की वह महिलाओं से दूर रहे। सीमा का व्यवहार उस महिला की भाँति है जो अपने छिछोरे पति को पल–पल सावधान करती है। नरेन वापस लंडन आता है और साथ में सीमा के लिए बहुत से उपहार भी लाता है। सीमा कहती है कि वह कैलिप्सो से बात कर सकता है। अब यहाँ एक बार फिर नरेन सीमा के सामने अपनी भावनाओं को छिपाता हुआ दिखाई देता है। सीमा के कहने के बाद वह चुप्पी साध लेता है। कहीं सीमा को ऐसा न लगे की वह कैलिप्सो से बात करने के लिए मरा जा रहा है, नरेन अपने ही विचारों में उलझता है। 

दूसरे दिन नरेन ठीक तीन बजकर पैंतीस मिनट पर हेंडन स्टेशन पहुँचता है, नरेन की आँखें कैलिप्सो को ढूँढ़ती हैं मगर वह नहीं दिखाई देती। छठे दिन भी नरेन कैलिप्सो की प्रतीक्षा करता है परन्तु वह आज भी वहाँ नहीं है। “आख़िर वह कौन थी . . . कहाँ से आई थी और चली कहाँ गई?” इस पंक्ति के साथ कहानी विराम लेती है और छोड़ जाती है कई प्रश्न। 

एक पाठक के तौर पर हमें यह विचार आ रहा है। क्या नरेन के मस्तिष्क की उपज थी कैलिप्सो? कहीं ऐसा तो नहीं सीमा की प्रतीक्षा में बैठा नरेन अपने ख़ाली समय में कैलिप्सो नाम की नायिका का सृजन कर लेता है . . . अपने मस्तिष्क में . . .! 

1 टिप्पणियाँ

  • 25 Feb, 2024 08:53 AM

    श्री तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के कथानक संवेदना और विचारों का मिश्रण होते हैं ।कहानियों के शीर्षक ही सम्पूर्ण कहानी की परिकल्पना होती है । आपकी समीक्षा सटीक है पर कैलिप्सो का अर्थ जानिए तब और अधिक कथा वस्तु तक पहुचेंगे । साधुवाद ।Dr Prabha mishra

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