छूटता गाँव है
संगीता राजपूत ‘श्यामा’
छूटता गाँव है।
थक गए पाँव हैं॥
नीर नभ का जला।
सूखती छाँव है॥
जीव जल के मरे।
गीध की आँव है॥
पाप के पग बढ़े।
पुण्य पर दाँव है॥
वट बड़ा है सघन।
शीतली ठाँव है॥
छूटता गाँव है।
थक गए पाँव हैं॥
नीर नभ का जला।
सूखती छाँव है॥
जीव जल के मरे।
गीध की आँव है॥
पाप के पग बढ़े।
पुण्य पर दाँव है॥
वट बड़ा है सघन।
शीतली ठाँव है॥