वेदना के चेहरे पर क्रोध के साथ-साथ पीड़ा के भाव एक साथ पैर फैला रहे थे।
जिस पति के लिए वह दुनियाभर से लड़ती रही। ससुराल वालों के ताने और उनसे मिलने वाले अपमान को सहती रही। आज वही पति अपने रिश्तेदारों से उसकी बुराई कर रहा है। कितना असहनीय है यह सब . . . वेदना की आँखें चलते हुए पंखे को देख रही थीं और बहते हुए आँसू, वेदना के गालों से लुढ़ककर गर्दन को छूने का प्रयास कर रहे थे।
पंखे की तेज़ गति के साथ अतीत की घटनाएँ भी आँखों के आगे घूम रही थीं। जब दोनों बेटे छोटे थे अहम नौकरी के कारण अधिकतर बाहर ही रहता तब घर की सारी ज़िम्मेदारी वेदना ने ही सँभाली अपने ससुर की बीमारी में सेवा की, जिससे अहम बहुत ख़ुश हुआ।
अहम बात-बात में वेदना की तारीफ़ करता। कहता ये मेरे घर की लक्ष्मी है। बस इनकी बातों से वेदना अपनी सारी पीड़ा भूलकर मन ही मन ख़ुश होती। ‘चलो . . . ससुराल वाले परेशान करते हैं तो क्या हुआ . . . अहम तो मेरे त्याग और परिश्रम को समझता है।’
भाव-अभाव से जूझते हुए विवाह को 28 वर्ष होने को आए।
वेदना और अहम ने बड़ी मेहनत से दो मंज़िला मकान बना लिया, दोनों बेटे बड़े हो गए उनकी अच्छी-ख़ासी नौकरी लग गई अब यकायक अहम का एकदम बदलना—वेदना के प्रति उसका ख़राब व्यवहार—उसे मानसिक रूप से बीमार कर रहे थे।
अभी कुछ ही समय की तो बात है किसी ने कहा, “वेदना तुम्हारी तपस्या सफल हुई। कितनी मुश्किलों से मकान बनवाया बेटों को पढ़ा-लिखा कर योग्य बनाया।” यह सुनकरअहम ने बहुत बुरा मुँह बनाया और कहा, “अरे . . . ऐसे ही नहीं बना रात-दिन ख़ून पसीना बहाया है। यह तो घर पर ही बैठी रहती है इसे क्या पता मेहनत क्या होती है?”
वेदना आवक रह गई थी कहने को शब्द नहीं मिले। ऐसे न जाने कितने ताने पिछले 5 वर्षों से अहम सुना रहा है।
अहम का अधिकतर समय अब अपने भाई-भाभी और रिश्तेदारों के साथ बीतता। ये वही रिश्तेदार थे जिन्होंने कभी भी अहम की मदद नहीं की।
एक रात ही तो थी जब वे साथ-साथ सोते थे लेकिन सिर्फ़ सोते ही थे। अहम मोबाइल में लगा रहता वेदना कुछ कहती तो अहम दुत्कार देता। “थोड़ा कम बोला करो हर समय बक-बक करती हो। वेदना ग़ुस्सा दिखाती तो अहम कहता, “तूने मेरी ज़िन्दगी नर्क कर दी है।”
वेदना प्रत्युत्तर में कहती, “कैसे ज़िन्दगी नर्क की है . . .?
“तुम कहीं ले नहीं जाते ढंग से बात नहीं करते। हमेशा अपने भाई-भाभी के घर बैठे रहते हो और मुझसे बात करने का समय नहीं है।”
बस यही गिनी चुनी लाइनें ही अहम और वेदना के वार्तालाप का हिस्सा बन चुकी थीं।
आज वेदना के घर ढेर सारे रिश्तेदार आये हैं; ये वही रिश्तेदार हैं जिन्होंने वेदना की ज़िन्दगी ख़राब कर रखी थी लेकिन वेदना उनके लिए ढेर सारा नाश्ता बना कर लाई। आकर अहम से थोड़ी दूरी पर बैठ गई। उनमें से एक रिश्तेदार ने कहा, “अरे भाभी जी आप तो इतनी पढ़ी-लिखी हैं। बेटे बड़े हो गए हैं। बहुत ख़ाली समय है कुछ सदुपयोग कीजिए। सोशल मीडिया में बहुत से ऑप्शन मिल जायेंगे।”
अहम ने तपाक से कहा, “अरे . . . इससे कुछ नहीं होगा। अगर कुछ करेगी तो मुझे ढंग से खाना भी नहीं मिलेगा।”
वेदना की आँखें लगभग भर कर उबलने लगीं थीं। वह जल्दी से उठकर रसोई की ओर चली गई। वही तो वेदना के रोने का ठिकाना था।