सच्चा श्राद्ध
संगीता राजपूत ‘श्यामा’लघु-नाटिका
निर्मला:
अरे! यह क्या हुआ? कार का एक किनारा पिचक कैसे गया?
जगदीश:
(बुरा सा मुँह बनाते हुए) क्या बताऊँ! आजकल कुछ सही नहीं हो रहा . . . कल दो सौ रुपये गिर गए और आज एक बछड़ा सड़क पर दौड़ता हुआ गाड़ी से टकरा गया और मर गया, जिस के कारण गाड़ी का बहुत नुक़्सान हुआ है। अब सर्विस सेंटर ले जाना पड़ेगा और वहाँ फिर रुपयों में आग लगेगी।
निर्मला:
रुपयों में आग लगेगी! . . . ऐसा क्यों कहते है आप? लाभ-हानि तो चलती रहती है लेकिन बछड़ा गाड़ी से टकराकर मर गया यह बहुत बुरा हुआ।
जगदीश:
(खिसियाते हुए) मतलब . . . रुपये कोई मायने नहीं रखते तुम्हारे लिए। बड़ी मुश्किल से रुपया कमाया जाता है।
निर्मला:
(स्वर को थोड़ा नीचे रखते हुए) रुपया मायने रखता है . . . लेकिन मानसिक शान्ति रुपये से अधिक मायने रखती है। कानपुर की इतनी बड़ी चमड़ा फ़ैक्ट्री के मालिक है आप . . . इतने से नुक़्सान के लिए आप इतना परेशान हो . . . यह बात ठीक नहीं। अरे! . . . गाड़ी तो ठीक हो जाएगी पर बेचारे बछड़े के प्राण तो वापस न आएँगे अब? . . . चलो छोड़ो . . . जो ईश्वर की मर्ज़ी। आज पितृपक्ष की अमावस्या है पंडित जी आते ही होगे। आप सफ़ेद कुर्ता पहनकर आइए।
जगदीश:
(हाथ झटकते हुए) लो . . . अब फिर रुपये ख़र्च करने पड़ेंगे। तुम्हारी यही आदत हमें बिल्कुल पसंद नहीं, रुपये को तुम पानी की तरह बहाती हो . . . अच्छा! अब मुँह मत फुलाओ, आता हूँ . . . कुर्ता पहनकर।
(पंडित जी का आगमन और पूजा समाप्त)
पंडित जी:
लीजिए . . . आपके पिताजी का श्राद्ध पूर्ण हुआ . . . आज अमावस्या है। किसी अन्य का भी श्राद्ध करवाना है तो करवा लीजिए। आज सभी का श्राद्ध हो जाता है।
जगदीश:
हाँ! और श्राद्ध करवाने हैं।
पंडित जी:
नाम बताइए?
जगदीश:
नाम तो पता नहीं . . . ! परन्तु वह एक बछड़ा था। पशुओं का श्राद्ध हो जाता है न . . .?
पंडित जी:
हाँ! बिलकुल हो जाएगा। यह तो बहुत पुण्य कर्म है जगदीश जी! . . .
जगदीश:
(भावपूर्ण स्वर में) पंडित जी! . . . हमारा चमड़े का व्यवसाय है। मरे हुए पशुओं की खाल से चमड़ा बनता है, उन सभी पशुओं का श्राद्ध करना चाहता हूँ।
पंडित जी:
एक हज़ार रुपए दक्षिणा रखिए।
जगदीश:
(मुस्कुराते हुए निर्मला को देखते हैं) लीजिए! पंडित जी! बस श्राद्ध अच्छे से कीजिए ताकि पशुओं की आत्मा को शान्ति मिले।
(निर्मला जगदीश को तृप्त दृष्टि से देखती है)
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