डॉ. महेश दिवाकर की सजल का समीक्षात्मक अध्ययन 

15-02-2023

डॉ. महेश दिवाकर की सजल का समीक्षात्मक अध्ययन 

संगीता राजपूत ‘श्यामा’ (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

ऐसा कुछ कर चले सखे! हम, काल–चक्र के आते आते! 
धरती महके, अम्बर महके, महक उठे जग जाते जाते॥

 

मनुष्य को अपने जीवन काल में सार्थक कार्य करने की प्रेरणा देने वाली डॉ. महेश दिवाकर जी की यह संदेशप्रद पंक्तियाँ, किसी भी सुप्त अवस्था वाले प्राणी के चित्त को जाग्रत करने के लिए पर्याप्त हैं। 

समाज को सभ्य बनाने में साहित्यकारों ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया और अनगिनत रचनाओं से मानव को बौद्धिक स्तर पर साहित्य के प्रति जागरूक बनाए रखा। डॉ. महेश दिवाकर जी की सजल समाज में चेतना फैलाकर नए रचनाकारों की प्रिय विधा बन गई है। वर्तमान में बहुत से रचनाकारों को सजल पर लेखनी चलाने को विवश करती दिवाकर जी की सजल, समाज के लिए मार्गदर्शक का कार्य का रही है। भावों से सुसज्जित पंक्तियाँ स्थानीय बोली को आगे बढ़ाने का कार्य करती हैं। दिवाकर जी की सजल एक ओर देशप्रेम से सनी होती है वही दूसरी ओर समाज के शत्रुओं को लताड़ती हुई अपनी बात कहती है। 

समाज में निरंतर घटनाओं का क्रम अनवरत रूप से चलता रहता है। घटनाएँ मानव मस्तिष्क पर प्रभाव डालकर विचार करने को प्रेरित करती हैं जिसके फलस्वरूप बुद्धिजीवी व्यक्ति लेखनी के माध्यम से शब्द समूह को भावनात्मक आकार प्रदान करते हुए मन की अभिव्यक्ति को लिखित रूप देता है जिससे अन्य जन–मानस भी प्रेरित होते है। 

सुसाहित्य ने सदैव ही राष्ट्रीय चेतना एवं संस्कृति का संवाहक बनकर अनेक काल-खंडों को सहेजकर वर्तमान के सम्मुख लाकर पटकने का असाध्य तप किया है। 

“समाज व साहित्य एक दूसरे के साथी बनकर मानव मन को संस्कारित करते है।” 

बीते दशकों में उर्दू लेखन ने हिदी को धूमिल करने का भरकस प्रयास किया जिसके कारण हिन्दी में उर्दू शब्दों की भरमार हो गई और इसका परिणाम यह हुआ की उर्दू के बहुत से शब्दों को हिन्दी का मानकर आम जन उर्दू मिश्रित हिन्दी का प्रयोग बोलचाल की भाषा में करने लगे। 

हिन्दी साहित्य को ग़ज़ल ने जितनी हानि पहुँचाई उतना किसी भी माध्यम द्वारा हिन्दी छली नहीं गई। हिन्दी के साहित्यकार मंच से उर्दू से घुटी हुए ग़ज़ल परोस रहे थे परन्तु बहुत से हिन्दी के हितैषी दुखी थे। कुछ साहित्यकारों द्वारा हिन्दी को पुनः उसका सम्मान दिलाने हेतु सजल विधा का अवतरण हुआ। 

सजल विधा में डॉ. महेश दिवाकर का योगदान:

सजल को स्थापित करने हेतु डॉ. महेश दिवाकर ने समिधा के रूप में अपनी काव्य पंक्तियाँ सजल विधा में लिखकर सजल को कवियों की प्रिय काव्य विधा बना दिया। लगभग पाँच वर्षों के अंतराल में ही सजल वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ नए रचनाकारों की प्रिय काव्य विधा बन गई। 

स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हुए जन-समूह में ऊर्जा का संचार करने में साहित्यकारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया तथा देश भक्ति से सराबोर साहित्य की रचना कर युवाओं में नवीन ऊर्जा का संचार किया। चेतनावान व देश-भक्त साहित्यकारों की पीढ़ी को आगे बढ़ाने का कार्य करते हुए, डॉ. महेश दिवाकर जी ने अपनी सजल विधा के माध्यम से समाज को संदेश देती हुई बहुत सी काव्य पंक्तियाँ रचकर युवा मन को धारदार बनाने का उत्तम कार्य किया है। दिवाकर जी की सजल ने युवा ही नहीं अपितु प्रत्येक अवस्था वाले मन को उद्वेलित किया है। 

डॉ. महेश दिवाकर की सजल में देशज व स्थानीय बोली का प्रयोग:

फैटी में जब तक है पैसा! 
जगत जानता है तुमको! 

समाज में धन के महत्त्व को बताती उपर्युक्त पंक्तियों में देशज शब्द फैटी का प्रयोग आम-जन गुनगुनाने पर विवश कर देता है। समाज में वही रचनाएँ जीवित रहती है जो सरल भाषा में लिखी गई हो। 

यह काग़ज़ की दुनिया है! 
ज्यों मनमोहक मुनिया है! 

इसका भेद नहीं मिलता! 
भवन बनती गुनिया है! 

मुनिया, गुनिया जैसे आम बोलचाल में प्रयोग होने वाले हल्के शब्दों को सजल में पिरोकर साहित्य का भाग बनाकर पाठकों तक पहुचाने का पुण्य कार्य डॉ. महेश दिवाकर जी ने किया। 

क्षेत्रीय भाषा जीवित है तो वह भावी पीढ़ी को अपने समाज की संस्कृति भी बताती चलती है संभवतः इस विचार को मन में रखकर ही देशज शब्दों का प्रयोग दिवाकर जी द्वारा किया गया हो। 

देश का वातावरण बिगाड़ने वालों पर कटाक्ष करती सजल:

पल रही नफ़रत हृदय में किस लिए, 
दाव पर गुलशन लगाया किस लिए! 
 
बात केवल देश के कल्याण की, 
सुन नहीं पाए जिसे तुम किस लिए! 

साहित्य का उद्देश्य तब और भी विराट व पुनीत हो जाता है जब वह देश के घातियों पर लताड़ लगाता हुआ उन्हें सही मार्ग पर ले जाने वाले साहित्य का सृजन करता हुआ मस्तिष्क को झकझोरता है। 
उपर्युक्त पंक्तियाँ इसी बात का उदाहरण हैं। 

संदेशप्रद सजल:

सोच समझ कर साँस ले! 
कही न कोई फाँस ले! 
 
दुनिया बड़ी स्वार्थी है! 
साथ चला जो जाँच ले! 

दिवाकर जी की बहुत सी सजल, समाज को कोई न कोई संदेश देती हुई प्रतीत होती है। सम्माज के प्रति शुभ-भावना मन में लिए काव्य की रचना करना साहित्य की सच्ची सेवा है। 

देश–प्रेम के भावों से पगी हुई सजल:

भारत का उपहार है, 
विश्व एक परिवार है! 

प्राणी का कल्याण है, 
भारत का आधार है! 

भारत की गरिमा, मानवता और विश्व कल्याण की कामना करती सजल, दिवाकर जी के देश–प्रेम को प्रदर्शित करती है। 

दिवाकर जी की सजल भावी पीढ़ी को देश प्रेमी बनाने में सहायक सिद्ध होगी। 

दिवाकर जी की सजल संदेशप्रद, समाज को प्रेरित करके आम जन की रसना में चढ़ने वाली सरल, सुबोध व देशज शब्दों से परिपूर्ण है इसलिए युवा रचनाकार इससे प्रेरित होकर सजल के महा अभियान में हिन्दी की इस नवीन विधा में अपना योगदान दे रहे है। 

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