बनकर गूँगा सत्य खड़ा है 

01-04-2024

बनकर गूँगा सत्य खड़ा है 

संगीता राजपूत ‘श्यामा’ (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मुख फैला कर झूठ अड़ा है। 
बन कर गूँगा सत्य खड़ा है। 
 
सच के साथी मौन हुए सब। 
चटका दीखे पाप घड़ा है। 
 
बंजर धरती नीर पुकारे 
फल धीरज का आज सड़ा है। 
  
काँधे पर था घाट घुमाया। 
छाती ठोके पूत लड़ा है। 
  
 नेताओं की नीति कुटिल है। 
 सब मृतकों में बाज़ अड़ा है। ‌ 
 
निर्बल का धन चोर उड़ाते। 
विधिना का मन देख कड़ा है। 
 
जग में अपना कौन पराया। 
बोली में विष-तीर जड़ा है। 

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