जीवन संध्या
संगीता राजपूत ‘श्यामा’ढलती काया घटता विवेक
चिर यौवन सा प्रेम पिया
झूठी लिप्सा छलिया दर्पण
प्रीती कनक समान किया—
गलबहियों का हार बना के
नवगीत तुझे सुनाऊँगा
आँखों में झाँकोगी मेरे
पूनम चन्दा दिखाऊँगा
बिछड़े नाते छूटे बंधन
साथ तू ही मेरे जिया॥
पथ जीवन काँटों की चादर
महके तू ही वन की जूही
रात घनेरी आने वाली
ध्रुव तारा मेरा तू ही
हदयंगम सी वाणी तेरी
होंठों ने है मौन लिया॥
स्वर्ण कमल आलिंगन तेरा
स्वाति नक्षत्र तू चातक मैं
साँझ ढले की है दीपक तू
उजली मोती पातक मैं
इति श्री हो जाये प्राणो की
तुम में उपसंहार हिया॥