नीलकुरिंजी के फूल
संगीता राजपूत ‘श्यामा’
नृसिंह नायर अपने लहलहाते खेतों को देखकर फूले नहीं समा रहे थे। उन्होंने अपने खेत में काम करते एक मज़दूर को आवाज़ लगाई, “वसीम इधर तो आ!” वसीम आवाज़ सुनते ही भागा-भागा नृसिंह के समीप आया तो नृसिंह ने कुछ सिक्के वसीम की हथेली पर रख दिये।
वसीम की आँखों में चमक आ गयी उसने नृसिंह की ओर देखकर कहा, “ये क्या मालिक!”
“तेरी मेहनत का इनाम है,” नृसिंह ने कहा तो वसीम ने उत्तर दिया, “मालिक आप मेहनताना तो देते ही हैं और अलग से भी कुछ ना कुछ देते रहते हैं। अल्लाह आपको ख़ुश रखे!”
नृसिंह हँसते हुए आगे बढ़ गये।
किशोरी अम्मा खेतों में काम कर रही थी। नृसिंह को देखकर राम-राम करने लगी तो नृसिंह ने कहा, “अम्मा! कितनी बार कहा है कि तुम काम मत करो, जो भी ख़र्च हो मुझसे ले लिया करो।”
किशोरी अम्मा ने उत्तर दिया, “बेटा! मेरे परिवार पर पहले से ही बहुत उपकार किया है तुमने, मेरे लिए यही बहुत है। खेत में काम करती हूँ तो मेरा भी मन लगा रहता है।”
“अच्छा जैसी तुम्हारी इच्छा,” कहते हुए नृसिंह घर की ओर लौट आये।
“पिताजी! पिताजी! बाहर कुछ लोग कह रहे हैं कि मोपलो ने कुछ हिंदुओं को मारा है। ये मोपले बहुत बुरे हैं, वसीम भी मोपला है उसको काम से निकाल दो नहीं तो वो भी सबको मार देगा,” नृसिंह के चौदह साल के बेटे गोपालन ने कहा।
“अरे नहीं पगले, सभी मोपले एक जैसे नहीं होते। वसीम बहुत सालों से खेतों में काम कर रहा है बहुत अच्छा और मेहनती है,” हँसते हुए नृसिंह ने गोपालन के सर पर हाथ फेरा।
“पुडरी . . . ओ पुडरी!” नृसिंह ने अपने बड़े बेटे पुडरी को आवाज़ लगाई।
“जी पिताजी!” कहते हुए पुडरी पास आकर खड़ा हो गया।
“मैं कुछ दिनों के लिए मुन्नार जा रहा हूँ तुम खेतों की ओर एक चक्कर लगा लेना,” नृसिंह बोले।
पुडरी ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया।
दूसरे दिन नृसिंह के जाने के बाद पुडरी खेतों की ओर चला गया।
“आज वसीम नहीं आया?” पुडरी ने एक मज़दूर से पूछा।
मज़दूर ने उत्तर दिया, “मालिक! कल भी बड़े मालिक के जाने के बाद तुरंत ही चला गया था।”
पाँच-छह दिनों बाद नृसिंह लौट आये और खेतों की ओर गये तो उन्हें पता चला कि वसीम कई दिनों से नहीं आया तो उन्होंने किसी को भेजा। पता चला कि वह अपने घर पर नहीं है, किसी को नहीं पता कि वह कहाँ है? यह जानकर नृसिंह चिंतित हो गये और मन में सोचने लगे कि वसीम किसी कठिनाई में है।
♦ ♦ ♦
चेताली बालों में फूलों से बनी वेणी लगाकर दर्पण में देखने का प्रयास कर रही थी तभी दर्पण में एक और आकृति उभर आई। चेताली के अधरों पर एक लंबी मुस्कान फैल गई। पुडरी वेणी को थोड़ा ठीक करते हुए बोला, “तुम्हें वेणी लगाना बहुत भाता है। देखना मैं नीलकुरिंजी के फूलों की वेणी बनाकर अपने हाथ से तुम्हारे बालों में लगाऊँगा।”
“परन्तु नीलकुरिंजी के फूल तो कई सालों बाद निकलते हैं,” चेताली ने पुडरी के कंधे पर अपनी गर्दन टिकाते हुए कहा।
पुडरी बोला, “हर बारह वर्ष बाद यें फूल खिलते हैं और सौभाग्य से कुछ ही महीने में ये फूल खिल जायेंगे।”
इतना सुनते ही चेताली चहक उठी, “सच्ची! नीलकुरिंजी के फूल खिलेंगे और मैं उन फूलों की वेणी बालों में लगाऊँगी।”
तभी बाहर कुछ भगदड़ सी होने लगी, आवाज़ सुनकर पुडरी और चेताली छज्जे से झाँकने लगे।
जालीदार टोपी लगाये एक आदमी रिक्शे में बैठा था। एक हाथ में भोंपू लेकर कह रहा था कि बग़ल वाले चौंक पर कल धर्मांतरण किया जायेगा, जिस किसी को भी हिन्दू धर्म से इस्लाम में आना है—आ सकता है।
चेताली अचरज से बोली, “ये अटपटी सी बात है, धर्म कोई कपड़ा नहीं है जो कोई, कभी भी बदल ले।”
पुडरी की त्यौरियाँ चढ़ी हुई थीं। वह रूखी आवाज़ में बोला, “मालाबार में आजकल मोपलो ने आतंक मचा रखा है। सभी को धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया जा रहा है। वो कहते हैं कि ख़िलाफ़त राज लायेंगे, कोई हाजी नाम का बाहरी व्यक्ति आकर मालाबार के वातावरण को अंशात कर रहा है। इसी कारण मोपलो को मनमानी करने का अवसर मिल गया है, हाजी का हाथ है इन मोपलो के सर पर।”
चेताली ने पूछा, “सरकार कुछ नहीं कर रही? और ये ख़िलाफ़त राज क्या होता है।”
पुडरी ने उत्तर दिया, “पता नहीं। बड़े लोगों की बातें हम साधारण लोगों की समझ से बाहर होती हैं। लेकिन एक बात है, पूरे केरल में कुछ बाहरी लोगों ने षड्यंत्र का जाल बिछा रखा है। मोपले राह चलते ठेलों से नारियल उठाकर चल देते हैं और पैसे भी नहीं देते, कोई माँगे तो मारने लगते हैं। अलग अलग चौंक पर भोंपू लेकर कुछ ना कुछ बकबक करते रहते हैं।”
चेताली चिंतित स्वर में कहने लगी, “आप इन लोगों से दूर ही रहना, मुझे आपकी बात सुनकर भय लग रहा है।”
पुडरी ने चेताली की ओर देखा और कहा, “हमारे इधर कोई कुछ नहीं कर सकता, सभी हमारी नायर जाति के हैं, तुम डरो मत।”
♦ ♦ ♦
नृसिंह आज पहली बार स्वयं मोपलो की बस्ती की ओर चले गये क्योंकि उन्हें वसीम की चिंता थी। पहली बार ऐसा हुआ था कि वसीम बिना बताये इतने दिनों से खेतों पर नहीं गया। नृसिंह ने घर से निकलते समय कुछ रुपये वसीमे को देने के लिए रख लिये थे। बस्ती के पास आकर नृसिंह कुछ मोपलो से पूछने लगे वसीम का घर कहाँ है? एक मोपले ने उँगली से इशारा किया। नृसिंह एक घर की ओर बढ़ गये। दरवाज़ा खुला था।
“वसीम! वसीम,” नृसिंह ने आवाज़ लगाई तभी वसीम बाहर आया और बोला, “मालिक! आप, आप यहाँ कैसे?”
“मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी इतने दिनों से क्यों नहीं आये और अपनी कोई ख़बर भी नहीं दी,” नृसिंह ने वसीम से कहा।
वसीम ने उत्तर दिया, “मालिक! घर की छत टपक रही थी बस उसी की मरम्मत में लगा था।”
नृसिंह ने कहा और घर के अंदर की ओर पैर बढ़ाये। वसीम ने सकपका कर कहा, “अरे मालिक! आप ऊँची जाति के हैं और मैं छोटी जाति का, आपका मेरे घर आना ठीक नहीं।”
यह सुनकर नृसिंह हँसते हुए एक कमरे में प्रवेश कर गये। वसीम ने पीछे-पीछे उन्हें रोकने का प्रयास किया। अंदर कमरे में हथियारों का ढेर लगा था। नृसिंह चकित होकर बोले, “वसीम! इतने हथियार? किसके हैं? कहाँ से आए?”
वसीम के गिड़गिड़ाते चेहरे पर झट से कुटिलता टपकने लगी, वह धूर्तता से बोला, “मैंने मना किया था घर के अंदर मत आओ लेकिन तुम नहीं माने, अब बाहर कभी नहीं जा पाओगे।” इससे पहले कि नृसिंह कुछ और कह पाते कि वसीम ने एक झटके से नृसिंह की गर्दन रेत दी।
“अँधेरा हो चुका है अभी तक पिताजी नहीं आये,” पुडरी ने चेताली से कहा और फिर तुरंत बाहर की ओर चला गया।
रात का घनापन किसी अनहोनी की आशंका पैदा कर रहा था। आसपास के सभी लोगों ने मिलकर नृसिंह को बहुत ढूँढ़ा पंरतु सारी कोशिश बेकार। कई दिन बीत गए नृसिंह को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते अब दिन हफ़्ते में बीत गये और हफ़्ते महीने में, लोगों को अब लगने लगा था कि नृसिंह अब जीवित नहीं हैं। परन्तु हुआ क्या? यह एक प्रश्न था जिसका उत्तर नहीं मिल रहा था।
♦ ♦ ♦
धीरे-धीरे कुछ सप्ताह बीत गए और एक दिन मोपले हाथ में हँसिया जैसा हथियार लेकर सड़कों पर निकल पड़े, वे लोगों को पकड़-पकड़ कर हँसिये से मार रहे थे। जिन लोगों ने पैर पकड़कर कहा कि हम इस्लाम क़ुबूल कर लेंगे बस वो ही बचे।
तभी कुछ अँग्रेज़ों ने आकर हवा में गोलियाँ चला दीं। उनमें से एक अफ़सर कहने लगा, “ले चलो इन मोपलों को इन्हें सज़ा मिलेगी।” लेकिन तभी सारे मोपलों ने इकट्ठा होकर अँग्रेज़ अफ़सरों पर धावा बोल दिया। मोपलों ने हँसिये के वार से अँग्रेज़ों को मार दिया और कुछ देर में सन्नाटा पसर गया। मालाबार की सड़कें भय से सुबक रही थीं। सभी को लग रहा था कि अब ये सब रुकने वाला नहीं है उधर पुडरी इन सब घटनाओं से आहत था लेकिन इस बात से निश्चित थी कि हमारे मुहल्ले में मोपले घुसने का साहस नहीं करेंगे क्योंकि सभी नायर जाति के धनी लोग थे।
आज पुडरी के विवाह की पहली वर्षगाँठ थी और पुडरी ने चेताली के लिए एक उपहार मुन्नार से मँगवाकर कल ही रख लिया था पंरतु उसने चेताली को उस उपहार के विषय में कुछ नहीं बताया था। चेताली अपने बालों में जूड़ा बना कर स्वयं को मोहित होकर देख रही थी तभी पुडरी ने चेताली से मुस्कुराकर कहा, आँखें बन्द करो चेताली! चेताली ने आँखें बंदकर लीं कुछ क्षणों बाद चेताली ने आँखें खोलीं, यकायक वह उपहार देखकर नीलमणि के समान दमक उठी। “नीलकुरिंजी के फूलों की वेणी . . . मैं ये उपहार जीवन भर याद रखूँगी,” कहते हुए चेताली की आँखें नम हो गयी। पुडरी ने हँसकर कहा, “बारह वर्ष बाद फिर यही उपहार दूँगा, रोती क्यों हो? अभी मंदिर चलना है। गोपालन तुम भी तैयार हो जाओ।” गोपालन अपने पिताजी के कारण उदास रहता था इसीलिए पुडरी गोपालन को कम ही अकेला छोड़ता।
सवेरे की मधुर वायु और नीलकुरिंजी की वेणी दोनों ही इतराकर चेताली और पुडरी को सुख दे रहे थे।
मालाबार के मोपला बहुससंख्यक मुहल्ले में मोपलों ने उपद्रव करना आरम्भ कर दिया। बच्चों को इधर-उधर फेंकने लगे, जिन पुरुषों ने इस्लाम अपनाने से मना कर दिया उन्हें निर्ममता से मार डाला और औरतों से बलात्कार करके उन्हें नग्न अवस्था में छोड़ दिया। धीरे-धीरे मोपलो की संख्या ने बड़ा भयावह रूप धर लिया। हज़ारों की संख्या में मोपले हथियार लेकर नायर के मुहल्ले में घुस गए, सभी ओर चीख पुकार मच गई। नायर जाति के घरों की दीवारें लाल रंग की धार से सन गयी पुरुषों के मृत शरीर को मोपले पैरो से रौंद रहें थे औरतों से बलात्कार करके मार दिया।
♦ ♦ ♦
इन सभी बातो से अनभिज्ञ पुडरी, गोपालन और चेताली निर्जन वन के रास्ते से पहाड़ी पर बने मन्दिर पर पूजन करके अपने लंबे सुखी वैवाहिक जीवन की कामना कर रहे थे। चेताली पुडरी और गोपालन ने प्रसाद खाया और गाड़ी में बैठकर घर की ओर लौटने लगे। मालाबार की आबादी में प्रवेश करते ही पुडीर को वहाँ का दृश्य अपरिचित-सा लगा मानो वह मालाबार में ना आकर किसी उजड़े खंडहर में प्रवेश कर रहा हो। नगर का सन्नाटा चीख-चीख कर कह रहा था कि पुडरी तुम चले जाओ, कुछ दूर और चलने पर मच्छरों के झुंड की भाँति दूर से भीड़ आती दिखी, चेताली के चेहरे पर भय के बादल उबाल मारने लगे। पुडरी ने गाड़ी पीछे की ओर लौटाई लेकिन अब प्रयास निष्फल था भीड़ ने आकर कुछ ही क्षणों में पुडरी और गोपालन की हत्या कर दी, चेताली की चीखे मालाबार को छलनी कर रही थीं। दो मोपलों ने चेताली की साड़ी को खींचकर हवा में उछाल दिया। अपने शरीर को छुपाने का निष्फल प्रयास करती हुई चेताली काँप रही थी मानो अकेली हिरणी को लकड़बग्घों ने घेर लिया हो, फिर कुछ समय के लिए आकाश ने अपनी आँखें मूँद ली, हवा ठहर कर सुबक रही थी और धरती का कलेजा इस अत्याचार को देखकर पत्थर बन गया। कुछ समय पश्चात भीड़ जा चुकी थी चेताली का शरीर व आत्मा घायल अवस्था में पड़े तिलमिला रहे थे। रात हो चुकी थी चेताली लड़खड़ाते हुए नग्न अवस्था में उठी। उसने एक दृष्टि नीचे पड़े नीलकुरिंजी के फूलों पर डाली जो वेणी से टूट कर छिन्न-छिन्न हो गये थे फिर अपने डग निर्जन वन की ओर बढ़ाने लगी और पहाड़ी वाले मन्दिर पर जाकर रुक गयी लेकिन समय चलता रहा। लगभग पच्चीस वर्ष हो चुके हैं इस घटना को। चेताली को आसपास के लोग पगली कहकर कुछ खाने को दे जाते हैं। किसी को नहीं पता वह कौन है यहाँ कब से है?
इतने सालों में चेताली ने किसी से बात नहीं की, आज मंदिर में बहुत चहल-पहल है। एक नवविवाहित जोड़ा मन्दिर में दर्शन करके सीढ़ियों पर बैठ गया। वे वापस में बातें कर रहे थे।
“हम लोग अपनी विवाह की पहली वर्षगाँठ पर गंगा-जमुनी तहज़ीब नाम की एक संस्था बनायेंगे, जहाँ हर साल मोपलों और नायरों को भोज पर बुलायेंगे,” नवयुवक ने कहा।
नवयुवती ने चहकते हुए कहा, “वाह! बहुत बढ़िया सुझाव है।” फिर दोनों एक दूसरे की हथेलियों को आपस में जोड़कर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। थोड़ा दूरी पर बैठी चेताली की आँखों में भय तैर रहा था।
1 टिप्पणियाँ
-
Bahut sundar