पागल, प्रेमी और कवि

15-10-2023

पागल, प्रेमी और कवि

नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’ (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

पागल की अपनी दुनिया होती है
प्रेमी की अपनी दुनिया होती है
कवि की भी अपनी दुनिया होती है
परन्तु 
पागल, प्रेमी और कवि
तीनों डूबे रहते हैं कल्पना लोक में
 
पागल उन्माद में
प्रेमी प्रेमिका में
और कवि काव्य-सृजन की दुनिया में
 
पागल, प्रेमी और कवि की दुनिया में
कल्पना का विशेष स्थान है
 
विशेष इसलिए
क्योंकि
कल्पना के अभाव में 
पागल, प्रेमी में
हलचल नहीं होगी
और कवि में कविता
 
कल्पना के धरातल पर
पागल, प्रेमी और कवि
होते हैं एक जैसे। 

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