मैं हूँ मज़दूर
नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’
ख़ाली पेट
सुबह से शाम
आराम हराम
काम काम काम
अंतड़ियों में पेट
धँसा निढाल
शेष अवशेष
झूर कंकाल
न मांस न हांड़
सिर पर भार
बोझों का पहाड़
उठाता काँपता
ढ़ोता हाँफता
रोटी को लालायित
बेबस मजबूर
मैं हूँ मज़दूर!!