मिलन

नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’ (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

जब से
मुझसे मिली है वो
बढ़ गई है उसकी आँखों की चमक
ग़ायब हो गया है आँखों का धुँधलापन
ठीक ठीक दिखने लगी हैं
ऊबड़-खाबड़ 
पगडंडियाँ 
दिग्भ्रमित करती हुई
कंपित-सी दिखती ज़मीन 
उसे अब। 
 
उसे अब
बड़े स्पष्टतः दिखाई देने लगे हैं 
आसमान के पुच्छल तारे
और प्यार में धोखा देते लोग। 
 
मेरा मिलन
उसके लिए स्वास्थ्यवर्धक रहा
सूरमे की तरह। 

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