आने दो माघ
नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’
आने दो माघ
लगने दो कुंभ
इस बार करूँगा मैं कल्पवास
रखूँगा शनि-मंगल उपवास
लगाऊँगा ढेरों डुबकियाँ
खोलूँगा पापों की पुटकियाँ
बहा दूँगा गंगा जी में
हो जाऊँगा पवित्र, निर्मल, निष्पाप
करूँगा मस्तियाँ; लूटूँगा बस्तियाँ चुपचाप
लगाकर माथों पर लेप
ढीली करूँगा जेब
कराऊँगा हवन पूजा-पाठ
चढ़ावा के नाम पर लूटपाट
बनकर पंडा-पुजारी
साधु-संत भिखारी
कमाऊँगा अच्छा धन
बनाऊँगा तन-बदन
श्रद्धा के पाठ पर
गंगा के घाट पर!
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