मातृत्व का एहसास
डॉ. अंकिता गुप्ता
मैँ थी अनजान माँ की भावनाओं से,
थी अज्ञात उसकी दिलो-दिमाग़ की कश्मकश से,
मुझे नहीं था एहसास उसकी ममता का,
मुझे नहीं था भाव उसके मातृत्व का,
सोचा नहीं कभी माँ की तपस्या का,
सोचा नहीं कभी उसके बलिदान का।
एक सुबह जब,
थामा मुझे छोटी सी मुट्ठी ने,
देखा मुझे छोटी मुस्कान ने,
तब एहसास हुआ क्या है मातृत्व,
तब एहसास हुआ उसे दे दूँ अपना सर्वस्व,
तब एहसास हुआ कर दूँ सब न्योछावर उस पर,
तब बोध हुआ क्यों बलिहारी है मेरी माँ मुझ पर।
उस पल एहसास हुआ,
माँ की,
ताक़त का, उसकी गूँज का,
उसके धैर्य का, उसकी क्षमा का,
उस पल एहसास हुआ,
क्यों मेरी समस्याओं का समाधान थी माँ,
क्यों मेरे सवालों का जवाब थी माँ,
मेरा सर्वस्व सँभाले,
क्यों मेरा संसार थी माँ।
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