मैं हिंदी भाषा
डॉ. अंकिता गुप्तासरल, सहज, सुगम हूँ,
विचारों के आदान प्रदान का साधन हूँ,
मन के विचारों को व्यक्त करने की ध्वनि हूँ,
शताब्दियों से चली आ रही बोली हूँ,
सरगम के सुर हूँ, गीतों के बोल हूँ,
मैं हिंदी भाषा, जीवन मूल्यों की संरक्षक हूँ।
समाज के विकास रथ की सारथी हूँ,
ग्रन्थों, और वेदों को समझने की संजीवनी हूँ,
आदिकाल के विज्ञान की अभिव्यक्ति हूँ,
संस्कृति, और संस्कारों की परिचायक हूँ,
अनेक भाषाओं के बीच, एकता की पूरक हूँ,
मैं हिंदी भाषा, भारतीय मूल की पहचान हूँ।
पर अब,
हिंदी बोलने वाले लोगों की शर्म का कारण हूँ,
कॉर्पोरेट संस्कृति में संकोच का विषय हूँ,
पुराने सरकारी दफ़्तरों तक सीमित हूँ,
बच्चों के स्कूल के बस्तों से बाहर हूँ,
मैं हिंदी भाषा, धीरे धीरे विलुप्त हूँ।
क ख ग की जगह ए बी सी से तबदील हूँ,
माँ, बाबूजी की जगह मॉम, डैड से बदली हूँ,
चाची, चाचा, ताऊ, ताई, मामा, मामी, मासी,
बुआ की जगह आंटी अंकल में गुम हूँ,
नमस्कार की जगह हैलो के पीछे छुपी वेदना हूँ,
मैं हिंदी भाषा, अँग्रेज़ी से पराजित हूँ।
हर भाषा को ख़ुद में समाये हूँ,
उर्दू, संस्कृत, फ़ारसी सभी में सम्मलित हूँ,
इंस्टाग्राम के ज़माने में अँग्रेज़ी के साथ भी उपयुक्त हूँ,
मैं हिंदी भाषा, अब हिंगलिश हूँ।
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