यू टर्न
संजीव शुक्ल
“एइ . . . एइ . . . रुको . . . रुको! सावधान!!
“तुम ऐसे मेरे तालाब का पानी नहीं पी सकते! अगर पिया तो अपनी जान से हाथ धो बैठोगे! फिर शिकायत मत करना कि पहले क्यों नहीं बताया।”
“फिर कैसे पी सकते हैं? हमें ज़ोर की प्यास लगी है। हम रुक नहीं सकते। तुम क्या कोई चौकीदार हो इस तालाब के, जो हमें पानी पीने से रोक रहे हो?”
“नहीं मैं इस पूरे क्षेत्र का मालिक हूँ। अब चौकीदारों पर भरोसा करना ख़तरे से ख़ाली नहीं, सो रखवाली का काम मैं ख़ुद ही करता हूँ।
“ख़ैर छोड़ो, पहले हमारे प्रश्न का उत्तर दो। बिना सही उत्तर दिए तुम हमारे तालाब का जल नहीं घूँट सकते। अगर ज़बरदस्ती करोगे तो मारे जाओगे,” यक्ष ने दो टूक कहा।
“तुम हमसे सवाल कर रहे हो, मने भगवान को लाने वालों से सवाल कर रहे हो? तुम्हारी ये हिमाक़त?”
“बकवास बंद करो। यहाँ हमारा क़ानून चलता है।”
“हम क़ानून बदल देंगे। प्यासा व्यक्ति गुर्राया।”
“ठीक है, फिर मरने के लिए तैयार रहो। यहाँ मानव-क़ानून नहीं चलते।”
अबकी वह डरा।
उसने अटकते हुए कहा, “. . . अच्छा फिर पू . . . पू . . . पूछिए।”
“अच्छा तो बताओ आजकल समाचारों में चर्चित शब्द ‘यू टर्न’ का मतलब क्या है?
सवाल सुनकर उसके चेहरे पर चमक आ गई। उसका अभी ताज़ा-ताज़ा खोया हुआ कॉन्फ़िडेंस फिर वापस आ गया। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “जी यू टर्न बोले तो ‘तपस्या में कमी रह गई’।”
. . . . . . . . .
यक्ष बोला, “आंय!!!”
इसके बाद यक्ष ख़ुद कोमा में चला गया!
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