चुप्पियों के बोल

15-08-2023

चुप्पियों के बोल

संजीव शुक्ल (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

वे इधर कई फँसे हुए मुद्दों पर बिलकुल नहीं बोले। बल्कि ऐसे कहिये कि वे ऐसे विवादित मुद्दों पर नहीं बोलते हैं, जिनमें पहले से ही इज़्ज़त का बंटाधार हो चुका होता है। उन्हें अपनी चुप्पियों पर साधिकार नियंत्रण है। वे जब चाहते हैं, तभी बोलते हैं, अगर उन्होंने ठान लिया है कि हमें अमुक विषय या व्यक्ति पर नहीं बोलना है, तो फिर वे अपने सलाहकारों की भी नहीं सुनते हैं। कई बार तो लोग उनकी इस अद्भुत प्रतिभा को उनका ख़ुद का नवोन्मेष मानते हैं। सूत्रों के हवाले से पता चला कि यह कला पहले कभी न रही। भले ही लीलाधर कृष्ण सोलह कलाओं के मालिक हों, पर यह कला तो उनके पास भी नहीं थी। कई बार भगवान कृष्ण की इच्छा होती कि अर्जुन और भीम के वाहियात सवालों पर मुँह नहीं खोलेंगे, लेकिन इस कला के अभाव के चलते उनको अपना मुँह खोलना ही पड़ता। हालाँकि एक हिसाब से यह ठीक ही रहा कि भगवान कृष्ण को यह कला नहीं आती थी, अगर आती होती तो हम निश्चित तौर पर आज हम गीता जैसे ग्रन्थ से वंचित होते। हम अदालतों में किस पर हाथ रखकर शपथ लेते। आप ही बताइये कि जब युद्ध का काउंटडाउन शुरू होने वाला था और सब महाबली अपने-अपने असहलों की दूरगामी मारक क्षमता को देखने के लिए व्यग्र थे, ऐन इसी टाइम पर शंकाकुल अर्जुन अपने सखा से युद्ध के औचित्य-अनौचित्य पर सवाल खड़े करने लगते हैं। अब बताइये कि अगर वहाँ कृपालु कृष्ण के अतिरिक्त और कोई होता तो वह अर्जुन की इस धृष्टता पर उनको कभी क्षमा न करता। युद्ध के नियमों की दृष्टि से यह तगड़ा फाउल था। सही बात है आप वहाँ युद्ध क्षेत्र में थे या गुरुकुल में पढ़ाई करने। 

हाँ, तो सार यह कि भगवान कृष्ण को भी यह विद्या नहीं आती थी। लेकिन हमाए उनको आती है। 

वाणी पर ऐसा अद्भुत नियंत्रण किसी प्रचंड योग से कम नहीं। इसे वही साध सकता है जिसने साधने में बड़ी मेहनत की हो, कम से कम 18-18 घण्टों की मेहनत तो ज़रूरी है। वे नहीं बोलने के पहले घण्टों चिंतन करते हैं कि हमें किस विषय पर नहीं बोलना है। उनकी ख़ासियत यही है कि वे बिना सोचे-बिचारे बोल तो सकते हैं, पर बिना सोचे-बिचारे चुप्पी नहीं लगा सकते। बहुत लोग इसे मौन क्रांति कहते हैं। हालाँकि यह अलग बात है कि उनकी चुप्पी की भी एक भाषा होती है। उनकी चुप्पियाँ भी बोलती हैं। 

उनके जानने वाले कहते हैं कि जब वे मौनी होते हैं, तब उनका दिन चिंतन में ही जाता है और चिंतन भी कोई ऐसा-वैसा नहीं बल्कि राष्ट्रवादी चिंतन। वे जब चुप्पी पर होते हैं तो विरोधी गुट को उछलने का मौक़ा देकर उसकी ऊर्जाओं का क्षय करते हैं और स्वाभाविक रूप से अपनी ऊर्जा का संरक्षण। जानकार बताते हैं कि जब वे चुप्पी पर होते हैं तो विरोधी गुट का नाश पढ़ने के लिए रणनीति बना रहे होते हैं। 

निश्चित ही उनका ये हुनर पैदाइशी रहा होगा, लेकिन इस हुनर को वैश्विक लोकप्रियता तभी से मिली, जब उन्हें राज्य का प्रमुख बनाया गया। 
अब जब वे नहीं बोलते हैं, तो चुप रहते हैं। हाँ, बिलकुल चुप! वे कालिदास और विद्योत्तमा की तरह इशारेबाज़ी वाली बतकही नहीं करते। उन्होंने चुप्पी को नए आयाम दिए, नई ऊँचाइयाँ दी हैं। जब राज्य में कोई उनके अपने की वजह से मामला बिगड़ जाता है या कोई उनका अपना किसी के शीलभंग के मामले में घिर जाता है, तो वह तुरंत अघोषित अखंड मौन पर चले जाते हैं। कारण—वे राजा से सवाल-जवाब की परंपरा को पसंद नहीं करते। सही बात है, जो जने-जने को जवाब देता फिरे, वह राजा कैसा? पर वे अंदर से भारी मात्रा में सहृदय भी हैं। वे अपने आदमी के भरोसे को कभी नहीं तोड़ते। वे अपने उस आदमी को जो पहले से ही मतलब भर का ज़लील हो चुका है, उसे और ज़्यादा जलील नहीं करना चाहते, सो वे उसे कुछ नहीं कहते। उनका अखंड मौन अपने प्रिय अपराधी के लिए बड़ा सहारा बन जाता है। 

पर सबसे बड़ा ताज्जुब यह कि कभी-कभी पीड़ित या पीड़िता भी राजा के अखंड मौन से द्रवीभूत हो जाते हैं। पीड़ित उनके मौन को अपनी त्रासदी से विगलित होने के लक्षण के रूप में देखने लगता है। वह यह मानकर कि उन्हें हमसे ज़्यादा सहानुभूति की ज़रूरत है, ख़ुदै अपराधबोध से ग्रस्त हो उठता है। लेकिन कई बार शिकायतकर्ता या भुक्तभोगी बड़े ढीठ होते हैं, वे अपराधी को दंडित करवाने की माँग पर अड़ जाते ऐसे में महराज के भक्तगणों का दायित्व बनता है कि वे अमुक व्यक्ति को अपराधबोध से ग्रस्त करावें। अगर फिर भी न माने तो उसको तत्काल देशद्रोही घोषित कर देते हैं। 

पर सरकार बहादुर अपने भक्तों के विपरीत बहुत दयालु हैं। वे अपनी प्रजा से भी प्यार करते हैं। ऐसे समय वे अपनी प्रजा को चुप्पियों के अवसाद से बचाने के लिए नित नए टास्क देते रहते हैं। 

मसलन बाढ़ के समय नए जलपोत को क्रय करके वे उसे जलविहार का आनंद देते हैं। महामारी के समय वे लोगों से उल्लसित रहने को बोलते हैं ताकि प्रजा में निर्भयता का प्रसार हो। 

नंगी-भूखी जनता पंचतत्व से बने इस नश्वर शरीर से बेपरवाह रहने का उपदेश पाकर अमरत्व को प्राप्त हो जाती है। 

उनकी चुप्पियों से उपजी त्रासदी को ख़त्म करने के लिए ये टास्क बहुत ज़रूरी हैं, क्योंकि चुप्पी की नीति-रीति का राज तो उन्हें पता है, प्रजा बेचारी क्या जाने। वो तो उन्हें ग़मज़दा समझेगी। 

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