स्मृतियों में हार्वर्ड

 

हमारे सेंटर में भाषण के कार्यक्रम बहुत कम थे। हर सप्ताह बड़ी मुश्किल से एक भाषण का आयोजन होता था। सप्ताह में कभी-कभी दो भाषण। वक्तागणों में हमारे भीतर थे: सेंटर के डायरेक्टर सैमुअल हंटिटन, दूसरे शीर्षस्थ अध्यापक और विश्वविद्यालय के बाहर से आमंत्रित व्यक्ति तथा विश्व राजनीति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नाम कमाने वाले व्यक्तिगण। उदाहरणस्वरूप यूरोपियन कमिशन के मुखिया, हमारे देश के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी, स्पेन के प्रधानमंत्री, अमेरिकन डेवलेपमेंट कमीशन के चेयरमैन, यूनेस्को के डायरेक्टर जनरल। इन सभी को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था। हर भाषण का आयोजन मध्याह्न भोजन अथवा रात्रि-भोजन के साथ किया जाता था। इसके पीछे यह उद्देश्य होता था कि भाषण सुनने के बाद अनौपचारिक वातावरण में फ़ैलो (अर्थात् हम सब) वक्ताओं के साथ बातचीत कर सकते हैं। अन्य विश्वविद्यालय से जो वक्तागण आये थे, उनमें जहाँ तक मुझे याद आ रही है, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर लिच, शिकागो विश्वविद्यालय के बर्नाड कोन, येल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख और ऐसे बहुत सारे। सारे भाषण साधारणतया सेंटर के कुलिज हॉल अथवा कावट हॉल में आयोजित किये जाते थे। हार्वर्ड के दो विशिष्ट अर्थशास्त्रियों में जॉन केनेथ गिलब्रथ तथा स्टीव मार्गलिन ने भाषण दिये थे। दोनों का परिचय देने का दायित्व मुझे सौंपा गया था। गिलब्रथ के भाषण का शीर्षक था—थर्ड वर्ल्ड इकोनोमिक डेवलपमेंट तथा स्टीव के भाषण का शीर्षक था—द गोल्डन एज ऑफ़ केपिटलिज़्म 1946-70। अपने भाषण में गिलब्रथ ने धनी पाश्चात्य देशों की असहयोग मनोवृति, वर्ल्ड बैंक एवं आईएमएफ़ के अतिशय व्यवसायी मनोभाव तथा सबसे ज़्यादा तीसरे विश्व के देशों में कार्य-दक्षताओं का अभाव—इन तीनों विषयों पर उन्होंने विशद भाव से व्याख्यान दिया था। स्टीव के मतानुसार 19वीं शताब्दी में सन् 1945 से पूँजीवाद ने एक नया रूप ग्रहण किया था और वह रूप सन् 1970 में ख़त्म हो गया। संक्षिप्त में पूँजीवाद के विवर्तन, अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उसका प्रवाहमान तथा आधुनिक आवश्यक अनेक दृष्टिकोण पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये थे। बदलते परिप्रेक्ष में पूँजीवाद अर्थशास्त्र के भविष्य के बारे में भी उन्होंने कुछ कहा था तथा उस अर्थशास्त्र के अवश्यंभावी बदलाव पर अपने सुझाव दिये थे। दोनों व्याख्यानों में बहुत सारे फ़ैलो ने भाग लिया था तथा उन पर गंभीर चर्चा भी हुई थी। उपर्युक्त व्याख्यानों को छोड़कर सेंटर में जितने दूसरे व्याख्यान दिये गये, उनमें से जो मुझे पसंद आये या जिसने मुझे आकर्षित किया, उनकी संक्षिप्त तालिका निम्न है:

1) प्रोफ़ेसर फ्रेंकलिन का व्याख्यान: Dominance and state power in Modern India 
2) सर क्रिसपिन टिकेल (इंग्लैंड के UN में स्थायी प्रतिनिधि): The value of Security Council in Today’s World Affairs 
3) यूरोपीयन कम्यूनिटी के सर रय डेनमान: European Community and U.S. Trade Issue 
4) प्रोफ़ेसर वाशब्रुक: Class Conflict, Popular Culture and Resistance in Colonial India 
5) लारेंस फ्रिडमेन: Do we need Arms Control? 
6) सैमुअल हांटिटन: American Strategy and How it is not made? 
7) स्पेन प्रधानमंत्री फेलिप गंजालोस: International Economic Co-operation and the European Community 

विश्वविद्यालय के बाक़ी सभी एकेडेमिक लेक्चरों में साहित्य संबंधित लेक्चरों की तरफ़ आपको ले जाना चाहता हूँ। फ्लेचर स्कूल ऑफ़ डिप्लोमेसी में हम सभी निमंत्रित थे। विशेष तीन व्याख्यानों में लगभग हम सभी फ़ैलो गये थे। व्याख्यान का परिवेश हर समय अनौपचारिक रहता है। अनेक बार ऐसा हुआ कि वक्तागण हमारे भीतर संपर्कित विषयों से अभिज्ञ फ़ैलो साथियों को संबंधित विषय पर कहने के लिए अनुरोध करते थे। वक्तव्य को छोड़कर प्रत्येक फ़ैलो को एक साल में दो विषयों पर भाषण देने पड़ते हैं। मैंने स्वयं ने जिन दो विषयों पर भाषण दिया था। वे हैं:

1) अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम, यूनेस्को तथा विश्वशांति
2) अंतरराष्ट्रीय अर्थनीति में सहयोग-द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोग की रूपरेखा।

व्याख्यान तथा समीक्षा के एक सत्र पूर्व वक्तव्य की प्रतिलिपि प्रस्तुत करके बाँट दी जाती थी। व्याख्यान संबंधित मेरे दोनों आलेखों में पचास के आस-पास पृष्ठ थे। दूसरे सभी फ़ैलो के भाषण भी व्याख्या के अनुरूप शिक्षणीय थे तथा उनकी भी जमकर समीक्षा हुई। भारतवर्ष में शोधकार्य कर रहे तीन शोधार्थियों से अलग-अलग समय पर मेरा वार्तालाप हुआ। एक साल रहने के अंदर प्रत्येक फ़ैलो अपनी जानकारी से संबंधित विषयों पर जिस प्रकार शोधार्थी अपना काम करते हैं, को उनकी सहायता करने के लिए कहा जाता था। इसे छोड़कर अन्य अमेरिकन विश्वविद्यालयों में फ़ैलो को भी वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया जाता था। सेंटर में हर शुक्रवार चार बजे चीज़ एवं वाइन की पार्टी आयोजित की जाती है। उसमें सेंटर के सारे अध्यापक, अन्य कर्मचारी और सारे फ़ैलो भाग लेते हैं। इस अवसर पर फ़ैलो के प्रोग्राम विश्वविद्यालय की दूसरी कई बातें, अध्यापकों के शोध विषयों पर अनौपचारिक भाव से समीक्षा की जाती है। 

सेंटर की लाइब्रेरी बहुत ही बड़ी है। उसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अर्थनीति, संस्कृति, आमदनी, व्यवसाय से संबंधित विषयों पर ख़ूब सारी पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकायें पढ़ने की सुविधा मिलती है। संक्षिप्त में कहने से सेंटर में पढ़ने-लिखने, अलोचना करने तथा अध्यापकों से मिलने के सारे कार्य अत्यंत आनन्ददायक होते थे। एक जगह मैंने कहा है कि सेंटर में मेरा जो कमरा है, उसके ठीक बग़ल वाले कमरे में बैठते थे मैक्सिको के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार कार्लो फूएन्टेस। सेंटर में लंच के समय हम दोनों अधिकांश बार एक साथ खाते थे। कमरे में एक साथ कॉफ़ी बना कर पीते थे। उसके बाद साहित्य, भारत और मैक्सिको का इतिहास, कला, अर्थनीति सभी विषयों पर विचार-विमर्श करते थे। मध्याह्न भोजन के समय कैंटीन में लगभग सभी लोग देखने को मिलते हैं। जो विश्वविद्यालय से थोड़ी दूरी पर रहते थे और जिनके पास गाड़ी थी, वे सभी अपने घर जाकर मध्याह्न भोजन करके लौट आते थे। 

एक बार कैनेडी स्कूल के Mason Fellows, फ्लेचर स्कूल के फ़ैलो और हम लोग—इस प्रकार से तीन गोष्ठियों ने इकट्ठी होकर दो दिन के सेमिनार का आयोजन किया था। जिसमें हांटिटन, फ्लेचर स्कूल ऑफ़ लॉ तथा डिप्लोमेसी के प्रोफ़ेसर थॉम्पसन तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया था। तीसरी दुनिया के विकास की समस्या, सामाजिक वैषम्य तथा न्याय, गणतन्त्र एवं विकास, सांस्कृतिक परम्परा और विकास, अंतरराष्ट्रीय अर्थनीति के प्रभाव आदि विषयों पर इस सेमिनार में अच्छी तरह चर्चा हुई। सेंटर के तीन प्रोफ़ेसर श्री कूपर, श्री हागार्ड तथा ओरनन आदि के सयुंक्त व्याख्यान If not Gatt, What? भी शामिल है। इसके अतिरिक्त एशिया पेसेफ़िक अर्थनीति संबंधित दो दिन के सेमिनार, एक दिवसीय यूनेस्को तथा विश्व-संस्कृति संबंधित सेमिनार (उसके लिए यूनेस्को डायरेक्टर जनरल आये थे) एवं संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी पुनर्वास संबंधित दो दिन का सेमिनार बहुत ही ज़्यादा गुणात्मक एवं शिक्षणीय हुआ था। सेंटर में लंच करने का प्रायः अभ्यास हो गया था। विभिन्न खाद्य-पेयों में से अपनी आवश्यकता अनुसार ट्रे में लेकर बिल देना पड़ता था और भीतर के डायनिंग हॉल में बैठकर खाने की सारी सुविधा मिलती थी। अनेक दोस्तों के साथ एक साथ लंच करने तथा गपशप करने में बहुत ही आनंद आता था। उस समय मेरे पास मैक्सिको के उपन्यासकार कार्लो फूएंटेंटस, आयरिश कवि सियामस हिनी, तीन महीनों के लिए शिकागो से हार्वर्ड आये हुए मेरे दोस्त ए.के. रामानुज बैठते थे। 

मैं रहता था विश्वविद्यालय के सबसे नज़दीक कॉनकॉर्ड एवेन्यू की छह मंज़िला अपार्टमेंट की सबसे ऊँची कोठरी में। इस बड़ी कोठरी की पार्टिशन कर दो भाग कर दिये गये थे। एक भाग में ड्राइंग रूम तथा दूसरे में बेडरूम। स्नानघर रसोईघर दोनों बहुत छोटे थे। रसोई घर में गैस तथा बिजली हीटर से लेकर सारी चीज़ें यहाँ तक कि प्लेट, चाकू, चम्मच इत्यादि उपलब्ध थी। यह बात अलग है कि मैंने अपनी आवश्यकता के अऩुसार कुछ अतिरिक्त सामान ख़रीदा था। 

टेलिविजन नहीं होने के कारण मैंने एक टेलिविजन ख़रीदा था क्योंकि बर्फ़ गिरते समय तथा अन्य किसी ख़ाली समय टेलिविजन की ख़बरें तथा प्रोग्राम देखने की बहुत इच्छा होती थी। उस समय बाहर जाना सम्भव नहीं था। 

अपार्टमेंट ब्लॉक में धीरे-धीरे बहुत सारे दोस्त भी दिखने लगे। ग्राउंड फ़्लोर पर एक लाऊँज तथा टीवी था। अधिकतर समय हम लोग वहीं पर इकट्ठे होते थे। मेरे बैठक रूम से हमारे सेंटर तक पैदल जाने में लगभग दस मिनट लगते थे। ओवर कोट सिर पर टोपी, कंधे पर मफ़लर, हाथ में ग्लव्स पहनने के बावजूद शीत के प्रभाव को ज़्यादा अनुभव किया जा सकता है। ख़ासकर दिन में ठंडी हवा बहती है, आँखों से आँसू निकलना शुरू हो जाते हैं। मेरे अपार्टमेंट के रास्ते की तरफ़ एक बालकनी है, जहाँ पर कुर्सी लगाकर मैं कई बार किताब पढ़ता था। बर्फ़ गिरते समय हवा के साथ ओले उड़कर बालकनी से एक-दो फ़ुट दूरी पर जमा होने लगते थे। ठंड में मैं लगभग चार बजे सेंटर छोड़ देता था क्योंकि उस समय अँधेरा होने लगता था। कमरे में लौटते ही पहले चाय, कॉफ़ी या गर्म सूप जब तक नहीं पी लेता था तब तक कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। 

रहने के दौरान मैंने हर फ़ैलो दोस्त तथा अध्यापकों को एक बार खाने पर घर में बुलाया था। जो फ़ैलो वहाँ के रहने वाले थे, उनके घर में रात्रि-भोजन के समय उनके देश का खाना खाने का अवसर मिला था। अकेले होने के कारण मैंने रात्रि-भोज फ़ैकल्टी क्लब में दिया था, इसलिए वहाँ भारतीय खाद्य खिलाना सम्भव नहीं हुआ। बीच-बीच में अपने परिवार के साथ रहने वाले फ़ैलो के घर भी मुझे आमंत्रित किया गया था, जिसमें मुख्य थे दक्षिण कोरिया, इटली, जर्मनी और यूरोपियन यूनियन के चार दोस्त। इनके घर मुझे बहुत बार आमंत्रित किया गया था। मुझे आज भी याद है, सबसे स्वादिष्ट भोजन मिला था मेरे स्वीडिश दोस्त के घर में। सही पूछा जाए तो मुझे स्वीडन के खाने के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी। मुझे खाने के टेबल पर रखी सारी चीज़ों का नाम पूछना पड़ा था। स्वीडिश दोस्त की लंबाई थी 6 फ़ीट 2 इंच, हम सारे फ़ैलो में वह सबसे ऊँचा था। उसका नाम था मिटकाशल। मज़ाक-मज़ाक में हम उसे केंडल-स्टीक कहकर पुकारते थे। सबसे कम ऊँचाई वाला दोस्त था जापान का सोटारो याचिंकर। 

कॉनकॉर्ड ऐवन्यू तथा हमारे सेंटर से चार्ल्स नदी पास में थी। नदी के दोनों किनारे रास्ते और रास्तों से नदी के पानी तक घास के लॉन लगे हुए थे। नदी के पुल पार कर थोड़ी दूर जाने पर पड़ता था बोस्टन विश्वविद्यालय का कैम्पस। हमारे विश्वविद्यालय के पास नदी के किनारे आधा किलोमीटर दूरी तय करने पर आता था मैसाचुसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी। तीनों विश्वविद्यालय के अध्यापकों में से उस समय 9 अध्यापक नोबल पुरस्कार विजेता थे। हार्वर्ड और एमआइटी दोनों विश्वविद्यालय दुनिया भर में सुपरिचित हैं। किसी एक विश्वविद्यालय में जब कभी किसी एक विशिष्ट विषय पर लेक्चर होता है, तब दूसरे विश्वविद्यालय के फ़ैकल्टी सदस्यों को भी निमंत्रण-पत्र मिलता है। 

चार्ल्स नदी के किनारे भ्रमण, वहाँ बेंच पर देर समय तक बैठना और पढ़ना, छोटी-छोटी नौकाओं में बैठकर नदी में विहार करना, ये सारी बातें हमेशा याद रहेंगी। अप्रेल और मई महीने में लॉन के फूलों का प्राचुर्य मन को मोहित करता है। 

विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के व्यायाम के दौरान दौड़ते समय कानों में सोनी वॉकमैन लगाकर गाने सुनते हुए देखना आम दृश्य था। हार्वर्ड स्केवयर और वहाँ से दोनों तरफ़ जाने वाले रास्तों में किताबों की ख़ूब सारी दुकानें पड़ती हैं। एक ही जगह पर इतनी सारी किताबों की दुकानें तथा किताबों का संग्रह मैंने अन्यत्र बहुत ही कम देखा है। इस तरह की दुकानें तथा किताबों का संग्रह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और कॉलेज के सामने यहाँ की तुलना में पाँचवाँ हिस्सा भी नहीं होगा, ऐसी मेरी धारणा है। अनेक किताबों की दुकानों में पढ़ने के लिए अलग से कमरा भी बना हुआ होता है, लाइब्रेरी की तरह। मैंने अपने देश में किताबों की दुकानों में ऐसी व्यवस्था कहीं नहीं देखी है। एक किताब की दुकान में प्राचीन ज़माने की किताबों का विशेष अंश संगृहीत है। सत्तरहवीं और अठारहवीं सदी की पुरानी किताबों तथा कई पुराने संस्करण वहाँ देखने को मिलते हैं। किताबों की दुकानों के बीच हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रेस का शोरूम एक बहुत बड़ी दुकान में लगा हुआ है। हार्वर्ड स्केवयर में पत्रिका की दुकान से लेकर दुनिया के किसी भी कोने में अंग्रेज़ी में प्रकाशित सारी पत्रिकाएँ वहाँ उपलब्ध होती है। स्केवयर से थोड़ी दूरी पर तरह-तरह के रेस्टोरेंट बने हुए हैं, उनमें से मुझे चाइनीज़ और मेक्सिकन रेस्टोरेंट बहुत अच्छे लगते थे। उसके आगे था एक बहुत बड़ा कॉफ़ी हाउस। यहाँ पर दुनिया के विभिन्न अंचलों की तरह-तरह कॉफ़ियों में से कम से कम बीस तरह की कॉफ़ियों का मैंने यहाँ रसास्वादन किया है। स्केवयर से थोड़ी दूरी पर एक सिनेमा घर बना हुआ है, जिसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी, क्योंकि उसमें दुनिया के सबसे बड़े निर्देशकों की फ़िल्में प्रदर्शित होती हैं। पढ़ाई समाप्त होने के बाद शास्त्रीय संगीत सुनना तथा अच्छी फ़िल्में देखना मेरा सबसे बड़ा शौक़ था। एक साल के वहाँ रहने के दौरान कम से कम चालीस अच्छी फ़िल्में देखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था। 

हमारे सेंटर की तरह केनेडी स्कूल ऑफ़ गवर्नमेंट भी बहुत विख्यात था। वहाँ दुनिया के अलग-अलग देशों के अपेक्षाकृत स्थानीय सरकारी अधिकारी, अर्थशास्त्री तथा राजनीतिज्ञ सभी पढ़ने आते हैं। हमारे सेंटर तथा केनेडी स्कूल परस्पर काफ़ी संश्लिष्ट थे। बहुत सारे अध्यापक दोनों जगहों पर पढ़ाते हैं। मेरे सेंटर के बाहर अर्थशास्त्र-विभाग, पुरातत्व विभाग और फाईन आर्ट विभाग में मैं कई बार गया हूँ। अर्थशास्त्र विभाग में मेरे मित्र स्टीव मार्गलीन के साथ रूम में बैठकर बहुत सारे विषयों पर चर्चा करते थे। उनके रूम से सटकर एमरिटस अध्यापक गिलब्रेथ का रूम था, वे विभाग में बहुत ही कम समय आते थे। सिर्फ़ उनसे मेरी दो बार मुलाक़ातें हुईं। पुरातत्व विभाग के प्रोफ़ेसर डेविड मेचूटीलुइस के साथ मेरी ज़्यादा दोस्ती थी। वे विभागाध्यक्ष थे और दक्षिण अमेरिका के ब्राज़ील के विभिन्न अंचलों ख़ासकर ऐमज़न नदी के अववाहिका अंचल में विकास-योजना की प्रभावशालीता तथा पारंपरिक सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था के अवक्षय के सम्बन्ध में ख़ास ज्ञान रखते थे। प्रोफ़ेसर डेविड के साथ कई बार उनकी फ़ैकल्टी में बैठकर बातचीत करने में बहुत अच्छा लगता था। 

ऐसे फाइन आर्ट विभाग तथा उससे जुड़े कारपेंटर सेंटर में साहित्य, कला और संगीत इत्यादि विषयों पर मैंने कई बार वक्तव्य दिए हैं। अंग्रेज़ी विभाग में सिआमस हिनी के आने के बाद मेरा उनसे गहरा जुडाव हो गया। हमारे विभाग की ओर से लेमेंट लाइब्रेरी में महीने में एक बार कविता पाठ का आयोजन होता है। वहाँ एक बार मुझे भी कविता पाठ करने का सुअवसर मिला। हिनी की सांध्य-कविता पाठ में मैंने हिस्सा लिया था। तब उन्हें साहित्य का नोबल पुरस्कार नहीं मिला था। मगर उनकी कविताएँ विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में बहुत ज़्यादा चर्चित हो गई थीं। विश्वविद्यालय में सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ वर्ल्ड रिलीजन एक अन्यतम प्रसिद्ध अनुष्ठान है। इस संस्था के निर्देशक मोनी एडामस अफ़्रीका की धार्मिक परंपरा पर विशेष ज्ञान रखते हैं। उनकी अफ़्रीका के पारंपरिक धर्म तथा कला विषयों पर ख़ूब सारी पुस्तकें लिखी हुई है। मेरे मित्र ए.के. रामानुजन वहाँ तीन महीने के लिए आमंत्रित हुए थे। कुछ दिनों के लिए भारत के दार्शनिक मतिलाल आए थे। प्रोफ़ेसर विमल मतिलाल तब ऑल सॉल कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड में थे Spading Professor of Eastern Religions and Ethics थे, ओड़िशा के दर्शन शास्त्र के सुप्रसिद्ध अद्यापक श्री जितेन मोहंती की रचनाओं का उन्होंने संपादन किया था। यही नहीं, अमेरिका तथा इंग्लैंड के जाने-माने दर्शन-शास्त्र के अध्यापकों में उन्हें गिना जाता था। विश्वविद्यालय में रहने के दौरान मैं हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल तथा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल देखने गया था, क्योंकि उनकी ख्याति न केवल भारत में वरन् सारे विश्व में फैली हुई थी। एमआईटी का अर्थशास्त्र विभाग तथा बोस्टन विश्वविद्यालय का पुरातत्व विभाग भी बहुत ही नामी विभाग है। बोस्टन के पुरातत्व विभाग में मुझे एक बार लेक्चर देने के लिए आमंत्रित किया गया था। 

सेंटर की प्रशासनिक संस्था बहुत ही दक्ष मगर छोटी थी। सारे फ़ैलो के हार्वर्ड में पहुँचने से पहले उनके पूर्व सूचित निवास-स्थान में रहने के लिए गृह उपयोगी सहायता से लेकर स्वास्थ्य, सोशियल सिक्योरिटी आईडी नं., कोपरेटिव सोसायटी के सदस्य के रूप में जोड़ने, विभिन्न बाहर की यात्राओं की सुविधा करने, विभिन्न अनुदान (स्वास्थ्य, पुस्तक-क्रय, घर पहुँचने के बाद गृह प्रवेश अनुदान) और सिफा के बजट इत्यादि के लिए कई अधिकारी थे। इटालियन फाइनेंशियल उपदेष्टा माइकल टियोरानो बहुत ही कौतूहल-प्रेमी इंसान थे, सभी के साथ हँसी-मज़ाक करके उन्हें ख़ुश कर देते थे। श्रीमती जॉन सेक्रेटरी थी तथा उनके दो सहायक थे इवा और कैरोल। लेस ब्राउन फ़ैलो प्रोग्राम के डायरेक्टर थे। इन पाँच व्यक्तियों के हाथों में हमारे प्रोग्राम का सारा दायित्व था। चेयरमैन थे सैमुअल हंटिटन हमारे ‘सैम’। सिफा में अनेक विशेष प्रोग्राम उल्लेखनीय थे। उनमें से कुछ का मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ: 

रेचल कारसन तथा साइलेंट स्प्रिंग (1962) की रजत-जयंती:

रेचल कारसन ने सन्‌ 1962 में अपनी नामी पुस्तक ‘साइलेंट स्प्रिंग’ लिखी थी। बड़े आदर के साथ मैंने वह किताब पढ़ी थी, मुझे बहुत अच्छी लगी थी। पर्यावरण वैज्ञानिक, विकास, अर्थशास्त्री, विभिन्न देशों के योजना बनाने वाले अधिकारीगण तथा कॉलेज, विश्वविद्यालय स्तरीय छात्रों एवं अध्यापकों में वह किताब बहुत चर्चित तथा प्रशंसित हुई थी। अमेरिका में इस किताब को बहुत ही आदर की दृष्टि से देखा गया। अमेरिका के जनसामान्य को उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण सम्बन्धित ख़तरों से अवगत कराया था। समय रहते अगर सावधानी नहीं बरती गई तो वह समय दूर नहीं है जब बसंत ऋतु आने पर कोयल की कूक सुनाई नहीं देगी, गीत गाने वाली चिड़ियाँ नहीं होगी। उस “नीरव बसंत” में हम ज़िन्दा रहेंगे। 

इस किताब के प्रकाशित होने के ठीक दो साल बाद अर्थात् 1964 में रेचल कैंसर से मर गईं। सन्‌ 1987 में उनकी ‘साइलेंट स्प्रिंग’ पुस्तक की रजत जयंती मनाई गई। हार्वर्ड में सेटर फ़ॉर इंटरनेशनल अफ़ेयर की तरफ़ से कई परिचर्चा-चक्रों का आयोजन किया गया। इसके 25 साल बाद रेचल की स्मृति में कोर्स में भाग लेने वाले हमारे देश में उसके प्रभाव और साधारण भाव से पर्यावरण परिस्थिति के सम्बन्ध में परिचर्चाएँ होने लगीं। रेचल की शोध पुस्तक मुख्यतः रासायनिक प्रदूषण के बारे में थी। इस विषय पर परिचर्चा करने के लिए स्थानीय अध्यापकों तथा दूसरे गणमान्य लोगों को भी बुलाया गया था। आमंत्रित अतिथियों में थी पर्यावरणविद रेचल जी की मित्र और शोधार्थी श्रीमती शरली ब्रिग्स। उस समय उनकी उम्र 69 वर्ष थी। वह थी रेचल कारसन काउंसिल की एक्जूकिटिव डायरेक्टर। ब्रिग्स और रेचल, दोनों ने चौथे दशक में ‘यू.एस. फ़िश एंड वाइल्ड लाइफ़ सर्विस’ में एक साथ काम किया था। रेचल के शोधकार्य में उनका बहुत सहयोग था। उनकी मौत के उपरांत श्रीमती ब्रिग्स ने एक काउंसिल का निर्माण करके अमेरिका के जनसाधारण को रासायनिक प्रदूषण ख़ासकर विषैले रासायनिक द्रव्यों के प्रयोग के सम्बन्ध में जानकारी देने की कोशिश की थी। इस काउंसिल के बहुत बडे-बड़े ज्ञानी लोग सदस्य थे। कीड़े मारने की दवाइयाँ तथा रासायनिक वस्तुओं के उपयोग के सम्बन्ध में यह काउंसिल अमेरिका में सबसे ज़्यादा काम करती है। लंच के समय ब्रिग्स से मुलाक़ात करके मैंने उनसे काफ़ी बातचीत की। रेचल के सम्बन्ध में अपने व्यक्तिगत अनुभूतियों के बारे में उन्होंने बहुत बताया था। 

इस काउंसिल के अलावा श्रीमती ब्रिग्स औडोबोर्न नेचुरलिस्ट सोसायटी से साथ प्रगाढ़ तरीक़े से जुड़ी हुई थीं, इसलिए वे अमेरिका की अनेक नेचुरल सोसायटी को देख चुकी थीं और उनके बारे में उन्होंने बताया था। इस संदर्भ में इस सोसायटी के प्रकाशनों के संपादन का सारा दायित्व उनके कंधे पर था। पर्यावरण संरक्षण पर संकलन करने के अलावा बांधों के निर्माण, हाइवे द्वारा चिड़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बर्ड काउंट स्टडी का कार्यक्रम प्रारंभ किया था। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि सन्‌ 1962 में जब स्टार्लिंग चिड़ियाँ की गणना शुरू हुई थी, वाशिंगटन-पोस्ट के संवाददाता के प्रश्न का उत्तर देते हुए मैंने कहा था: 
You do not know how many of those little rascals there are until you stand and count them on a cold night. 

राजनीति शास्त्र के सुप्रसिद्ध प्रोफ़ेसर ब्रिशत की बेटी शर्ली आवा विश्वविद्यालय की छात्रा थी, स्थपति विद्या में एम.ए. पास किया था। उसके बाद वह Smithsonian के नेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ नेशनल हिस्ट्री के साथ जुड़ गई। इस रजत जयंती (रेचल कारसेन के साइलेंट स्प्रिंग) सेमिनार और उसमें हिस्सा लेना मेरे हिसाब से बहुत ही शिक्षाप्रद और उपयोगी था। ख़ासकर कई देशों के और अमेरिका के पर्यावरण प्रदूषण के सम्बन्ध में विशेष ज्ञान रखने वाली श्रीमती ब्रिग्स के साथ साक्षात्कार एवं व्यक्तिगत बातचीत करने का अवसर मिला था। 

फ़ैलों के ब्रेकफ़ास्ट तथा लंच मीटिंग:

हर महीने के दूसरे सप्ताह में हम लोग एक फ़ैलो-ब्रेकफ़ास्ट का आयोजन करते थे। वहाँ हम सभी अपने निजी जीवन, परिवार, व्यक्तिगत अभिरुचियों तथा प्रोफ़ेशनल जीवन के विषय में संक्षेप में बताते थे। कोर्स समाप्त होने से पहले तीन दोस्तों को कहीं जाना था, इसलिए उन्हें पहले कहने का अवसर दिया गया। दक्षिण अफ़्रीका में इंग्लैंड के राष्ट्रदूत सर पैट्रिक मोबर्ली ने पहले अपने विचार रखे। मुझे उनके विचार बहुत अच्छे लग रहे थे। 

दक्षिण अफ़्रीका में रहने के दौरन उनका नेलसन मंडेला के साथ साक्षात्कार के अनुभव जीवंत लग रहे थे। वह ‘सर’ उपाधि प्राप्त बहुत सीनियर थे। विदेशी सेवा में कार्यरत होने के बाद भी लिखने का कुछ काम करते थे। दूसरे मलेशिया के भूतपूर्व उप-प्रधानमंत्री डातु मूसा बिन हातम ने अपने देश, संस्कृति, राजनीति तथा अपने राजनैतिक अनुभवों के बारे में बहुत कुछ बताया। तीसरे जॉन कोलान जिनका विशेषज्ञ के रूप में योगदान देना निश्चित हो गया था। उन्होंने अमेरिका की राजनीति और धर्म के समानान्तरता तथा अमेरिका, यूरोप की तुलना में किस प्रकार ज़्यादा धार्मिक है, इस विषय पर अपने व्याख्यान दिया था। एक गैल-अप पोल में 70 प्रतिशत अमेरिकन अपने को धर्मविश्वासी मानते थे, 60 प्रतिशत गिरजाघरों में मास (Mass) तथा रविवार को पूजा करते हैं, इस सम्बन्ध में उन्होंने ज़्यादा तथ्य-परक भाषण दिया था। हमने अपने व्यक्तिगत जीवन तथा कर्मक्षेत्र के इतिहास के बारे में बताया। कितने सारे तथ्य, कितने विचार, कितने देशों के समाज, संस्कृति, इतिहास, राजनीति और अर्थनीति की स्थिति का आकलन आँखों के सामने आया था। अनौपचारिक तौर पर ब्रेकफ़ास्ट के दौरान फेकेल्टी क्लब के एक अलग कमरे में ये सारी जानने का अवसर मिला था, वह आज भी शिक्षणीय, उपभोग्य तथा अविस्मरणीय होकर मन में समाई हुई है। हमारे द्वारा दिए गए पेपर (सी.आई.एफ़.ए. कोर्स की अन्यतम मुख्य दिशा) बहुत ही उपभोग्य तथा ज्ञानवर्धक थे, जिसमें सी.आई.एफ़.ए. के सीनियर प्रोफ़ेसरों तथा शोधकर्ताओं ने योगदान दिया था। उनके अलावा जो अपने पेपर प्रस्तुत करते हैं, वे जिन्हें चाहें उन्हें आमंत्रित कर सकते हैं। जैसे मैंने अपने पेपर के लिए स्टीव मार्गलिन को आमंत्रित किया था, दो पेपर सभी को देने थे। मगर समय के अभाव के कारण सभी को एक पेपर पढ़ने का ही अवसर दिया गया। यह सारा कार्यक्रम सी.आई.एफ़.ए. के सेमिनार हॉल में हुआ। पहले-पहल प्रत्येक श्रोता और वक्ता पास के सेल्फ़ सर्विस केफ़ेटेरिआ से अपना लंच लेकर आते हैं। बैठने की व्यवस्था एक विशाल दीर्घवृत्तीय टेबल के कोने में वृताकार भाग में खाने के समय अनौपचारिक तरीक़े से बातचीत शुरू करने के लिए की गई थी। अपरिचित आगंतुक अपना परिचय देते हैं। पेपर पहले से ही दिया जाता है। लंच ख़त्म होने के बाद वक्ता आंधे घंटे के भीतर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करता है, उस पर एक घंटे तक चर्चा होती है। 

पेपर निम्न विषयों पर आधारित थे: 

मध्यप्राच्य, चीन-जापान सम्बन्ध, अमेरिका-जापान सम्बन्ध, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्बन्ध तथा यूनेस्को, अमेरिका में उच्च शिक्षा की स्थिति और (समस्याएं, अंतरराष्ट्रीय युद्ध समस्या, शरणार्थी समस्या की सामग्रिक समस्या और विश्व-शांति का भविष्य, मानवाधिकार को नई दिशा, अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग में ग़ैर-सरकारी संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका इत्यादि। अंत में, सुप्रसिद्ध अध्यापक आर्केस्ट वोगेल ने सुदूर प्राच्य (फार ईस्ट) के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने इस विषयों के पारंगत फेलों के चीन-जापान-कोरिया जाने से पूर्व सी.आई.एफ़.ए. में यह आयोजन किया था। 

फ़ैलो के लंच तथा आलेख-पाठ तथा ब्रेकफ़ास्ट के दौरान अनौपचारिक चर्चाएँ बहुत ही शिक्षाप्रद होती थीं। 

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