स्मृतियों में हार्वर्ड

 

सन्‌ 1968-69 में मुझे भारत सरकार द्वारा मनोनीत होने पर इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में एक साल पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ था। यह प्रशिक्षण कोलंबो योजना के अंतर्गत आता था, इंग्लैंड के ओवरसीज़ डेवलपमेंट स्टडीज़ द्वारा संचालित किया जाता था। उस साल कोलंबो योजना के तहत विभिन्न देशों के बीच अधिकारियों को आमंत्रित किया गया था। प्रत्येक देश अपनी तरफ़ से एक अधिकारी का चयन करता है। उस कोर्स में चार प्रमुख विभाग थे तथा प्रत्येक विभाग किसी न किसी विकास की समस्या से जुड़ा हुआ था जैसे-विकास का आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं प्रशासनिक दृष्टिकोण। साल के अंत में एक परीक्षा होती थी तथा डिप्लोमा सर्टिफ़िकेट प्रदान किया जाता था। उस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर मुझे विश्वविद्यालय से पुरस्कृत किया गया था। 

उसके लगभग बीस साल के बाद सन्‌ 1987–88 में मेरा हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन तथा अनुसंधान के लिए चयन हुआ। इस कोर्स की ख़ासियत के बारे में पहले से बताना उचित रहेगा। इस दार्शनिक कार्यक्रम तथा कैंब्रिज के सारे कोर्स में ज़्यादा अंतर विशिष्टता को लेकर था। कोर्स सेंटर फ़ॉर इंटरनेशनल अफ़ेयर द्वारा आयोजित किया जाता था। इस कार्यक्रम के लिए प्रति वर्ष बीस अधिकारियों का चयन किया जाता था, जिसमें प्रत्येक देश अपने एक प्रतिनिधि को भेजता है। प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य हार्वर्ड के मेमोरेण्डम में दिया हुआ था, “हम उनका चयन करते हैं, जिन्होंने अपने देश के जनजीवन और समाज में अब तक कुछ किया है और भविष्य में भी वे बहुत कुछ कर सकते हैं तथा विशिष्ट दर्जे के अधिकारी हो सकते हैं।” जिसमें सिविल-सर्विस के वरिष्ठ अधिकारी, विदेश विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, विशिष्ट अर्थशास्त्री, राजनैतिक नेता, उद्योग-धंधों में नाम रोशन करने वाले उद्योगपति, पत्रकारिता के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त संपादक इत्यादि की तालिका हार्वर्ड विश्वविद्यालय तैयार करता है। उदाहरण के तौर पर मेरे साथ थे, दक्षिण अफ़्रीका में इंग्लैंड के राजदूत डैट्रिक मोबर्ली, सेनेगल में दक्षिण कोरिया के राजदूत सियंगली, इंटर-अमेरिकन बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रबर्टो टोस्कानो, अमेरिका के एडमिरल फिर मिडलैंड, मलेशिया के पूर्व उप-प्रधानमंत्री मुसाबिन हितम, स्वीडन के दूसरे स्थान के सैनिक अधिकारी उडवार मिडकांडल, जर्मन के वरीय सिविल सर्विस अधिकारी जोहान वेंजल, अमेरिका के सुप्रसिद्ध उद्योगपति जुलियान सेविन, वेनेज़ुएला के शीर्ष स्थान के संपादक गुस्ताभो गोरिटि, यूरोपियन कम्यूनिटी के मुख्य अधिकारी जेम्स, स्पेन तथा सहयोगी देशों के शरणार्थी अनुष्ठान के वरीय अधिकारी लुइस ड्रूक वोलेस्की। 

हार्वर्ड जाते समय स्विट्ज़रलैंड तथा स्वीडन में भारत उत्सव आयोजन में भाग लेने के लिए पन्द्रह लेखकों के साथ मुझे भी निमंत्रण मिला था। पहले से ही मैंने आईसीसीआर को स्पष्ट बता दिया था कि मेरे हार्वर्ड पहुँचने की अंतिम तारीख़ 18 सितंबर, 1987 होने की वजह से सभी निमंत्रणों तथा प्रोग्रामों के सारे कार्यक्रमों में भाग लेना मेरे लिए सम्भव नहीं होगा। स्विट्ज़रलैंड के चार दिनों के आयोजनों (ज़्यूरिख, वासल और लुसर्ण में काव्य-पाठ और अभिभाषण) के अतिरिक्त स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम के तीन दिनों के प्रोग्रामों, जिनमें विश्वविद्यालय के आलोचना-सत्र, लेखक-संघ में काव्य-पाठ और शहर के सामान्य भ्रमण समेत वाइस-चांसलर और हमारे राष्ट्रदूत के साथ रात्रि-भोज में भाग ले सकता हूँ। बाक़ी स्वीडन-भ्रमण के सात दिनों में भाग नहीं ले सकता हूँ। भारत सरकार को मेरी इन हवाई यात्राओं के लिए कुछ भी ख़र्च नहीं करना पड़ा, क्योंकि मैं हार्वर्ड पहले से ही जा रहा था। 

स्वीडन के आयोजन में पी. लाल, अनंत मूर्ति, अरुण कोलाटकर, अमृता प्रीतम, रघुवीर सहाय इत्यादि मेरे अतिरिक्त पन्द्रह जन थे। किन्हीं विशिष्ट कारणों की वजह से मेरे सिवाय बाक़ी सभी स्वीट्ज़रलैंड नहीं जा सके, वे सब केवल स्वीडन तक ही जा सके। तत्कालीन सभी राष्ट्रीय स्तर के अख़बारों ने सरकारी व्यवस्था और नीति की कड़ी आलोचना की। मैं हार्वर्ड जाते समय एक दिन पहले ही ज़्यूरिख में पहुँचा था। ज़्यूरिख के रिडबर्ग म्यूज़ियम के निर्देशक, विख्यात कलाविद डॉ. एवरहार्ड फिरार ने स्विस अख़बार में इस बात की घोर आलोचना की थी। उन्होंने यह भी बात कही थी कि अख़बार वालों ने आश्वासन दिया है कि आख़िरकार एक कवि यहाँ पधारे हैं। स्विट्ज़रलैंड के ज़्यूरिख, वासल, लूसर्ण में काव्य-पाठ और अभिभाषण समाप्त करने के बाद मैं स्टॉकहोम पहुँच गया। वहाँ बाक़ी लेखक बंधुओं से मेरी मुलाक़ात हुई। 

स्टाकहोम में मेरे लिए सबसे ज़्यादा ख़ुशी की बात यह थी कि वहाँ काव्य-पाठ में स्वीडिश कवि थॉमस ट्रांसतोमर से मुलाक़ात होगी। स्वीडिश भाषा में अनूदित मेरा कविता-संग्रह (मार्टिन आलउड द्वारा अनूदित तथा स्वीडन में प्रकाशित) Dod Och Drom (मृत्यु और सपने) को थॉमस ने पहले से पढ़ रखा था। मैंने ओड़िया भाषा में जो तीन कविताएँ पढ़ी थीं, उनका अनुवाद उन्होंने उसी किताब से स्वीडिश में पढ़ा। थॉमस स्वीडन के एक बड़े कवि थे, जिनका अनुवाद यूरोपीय भाषाओं तथा अंग्रेज़ी भाषा में सर्वाधिक हुआ है। इस स्वीडिश कवि के कविता-संकलन स्वीडन में सबसे ज़्यादा प्रचलित है। मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि वे भारतीय तथा ओड़िया काव्य प्रेमियों में भी अच्छे ख़ासे लोकप्रिय है। 

वहाँ के बहुत पुराने विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर के साथ रात्रि-भोज के समय मुझे अनेक लेखकों, कवियों, चित्रकारों, संगीतज्ञों तथा अनेक विद्वानों के साथ मिलने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ था। जिनमें एक कवि थे जेल एक्समार्क, जिनके कविता-संग्रह ‘बैला बारटॉक एण्ड द थर्ड रेइस’ ने (थॉमस के शब्दों में) स्वीडन में धूम मचाई थी। 

वहाँ तीन दिन रहने के बाद मैंने सभी से विदा ली और न्यूयार्क चला गया, वहाँ से बोस्टन और फिर हार्वर्ड। हर फ़ैलो को अपनी और स्कूली बच्चों को साथ में लाने तथा रखने की सुविधा प्रदान की जाती है। इसलिए मैं अपनी पत्नी तथा स्कूली बेटे सत्यकाम को साथ ले गया था। तीनों लड़कियाँ चूँकि कॉलेज जाने लगी थीं, इसलिए वे साथ नहीं आ सकीं। पत्नी और बेटे को न्यूयार्क में अपने रिश्तेदारों के पास छोड़कर मैं विश्वविद्यालय में एक साल रहने के लिए मकान खोजने गया। न्यूयार्क में रिश्तेदार स्वर्गीय कृष्ण मोहन दास (फूफाजी) और हार्वर्ड में मेरे मित्र विजय मिश्र (कवि मनमोहन मिश्र के पुत्र) तथा उनकी धर्मपत्नी सुवर्ण ने मकान खोजने में मेरी काफ़ी मदद की। 6 नंबर, कॉनकॉर्ड एवेन्यु के छ मंज़िलें अपार्टमेंट के छठवें तल्ले पर एक मकान चुन लिया गया। रसोईघर, स्नानघर, इकट्ठे शयन कक्ष और बैठक कक्ष (पर्दे से विभक्त किया हुआ) पुस्तकें रखने के लिए एक बड़ा कमरा, अपार्टमेंट में पढ़ने की व्यवस्था थी। महीने का किराया 150 डॉलर था। ऐसा सुनने में आया कि विश्वविद्यालय और सीएफ़आईए पास-पास में होने तथा केम्ब्रिज शहर की वजह से किराया ज़्यादा है, क्योंकि हार्वर्ड, एमआईटी, बोस्टन तीनों बड़े-बड़े विश्वविद्यालय होने की वजह से यहाँ किराए का मकान मिलना बहुत ही कष्टदायक है। केंब्रिज शहर के आस-पास के तीन-चार छोटे शहरों में भाड़ा ज़रूर थोड़ा कम था, मगर दूर होने की वजह से गाड़ी रखने की ज़रूरत नहीं होने पर भी मेट्रो में आना-जाना पड़ता था तथा इसके अतिरिक्त, समय भी ज़्यादा लगता था। मेरा गाड़ी ख़रीदने का कोई इरादा नहीं था, भले ही उस देश में सेकेण्ड हैंड गाड़ियाँ काफ़ी सस्ते में मिलती थीं। मगर मैं एक ख़राब ड्राइवर था। इसलिए मैंने वह जगह चुनी, जहाँ से पैदल विश्वविद्यालय सेंटर तथा चार्ल्स नदी तक जाया जा सकता था। वहाँ हर दिन मुझे मेट्रो में आना-जाना करना पड़ता। 

इस कोर्स के एक साल के भीतर प्रत्येक प्रत्याशी को दो बड़े शोध-आलेख सेमिनार के रूप में प्रस्तुत करने पड़ते थे। जिसमें सी.एफ़.आई.ओ. के सारे अध्यापकों तथा विश्वविद्यालय के अन्य वरीय अध्यापकों को आमंत्रित किया जाता था। एक सेमिनार प्रश्नोत्तर के साथ लगभग तीन घंटे चलता है। मेरे दोनों सेमिनारों के शीर्षक थे—इंटरनेशनल कल्चरल रिलेशन्स, टुडे एंड टुमारो एवं इंडियाज़ डिप्लोमेटिक रिलेशन इन साउथ ईस्ट एशिया। 

दूसरा, सेमिनारों को छोड़कर अगर कोई शोधरत छात्र आपका निर्देशन अथवा सहायता चाहता है तो उनसे आपको मिला दिया जाता है। तीसरा, लगभग पूरे साल बाहरी आदमियों द्वारा सोलह अभिभाषणों की व्यवस्था की जाती है। इन अभिभाषणों को देने के लिए दो प्रकार के व्यक्तियों को आमंत्रित किया जाता है। अनेक निर्दिष्ट अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के उच्च पदस्थ अधिकारीगण जैसे यूरोपीय कम्यूनिटी के मुख्य श्री डोलोरस, जर्मनी के विदेशमंत्री, वर्ल्ड बैंक के प्रमुख इत्यादि। उनके अलावा सी.एफ़.आई.ओ. संकाय के रूप में काम करने वाले लगभग 10 वरीय अध्यापकों के साथ लंच और डिनर के समय एकत्रित होने पर बातचीत की जा सकती है। इन लंच अथवा डिनरों में भाग लेने वाले अधिकारी और सम्बन्धित अध्यापकगण अपने घर अथवा फ़ेकेल्टी क्लब में लंच/डिनर का आयोजन करते थे। इसी तरह सोलह अभिभाषण, जो बाहर से आमंत्रित किए गए व्यक्तियों द्वारा दिए जाते हैं, उनका आयोजन लंच और डिनर के साथ किया जाता है। अभिभाषण का परिवेश औपचारिक अथवा अनौपचारिक दोनों प्रकार का होता है। जैसे इसमें होती थी फ़ैलो स्टूडेंट्स की नाश्ते के दौरान बातचीत, जिनमें वे अपने-अपने देश के किसी विशिष्ट विषय पर प्रकाश डालते हैं। 

एक साल के अंदर अनेक टूरों की व्यवस्था थी। पहले-पहल, अमेरिका के सक्रेटरी ऑफ़ स्टेट की तरफ़ से पन्द्रह दिनों के लिए अमेरिका भ्रमण, जिसमें स्टेट डिपार्टमेंट के वरीय अधिकारियों से मुलाक़ातें पेंटागन, उसके रिसर्च एंड डेवलपमेंट तथा अमेरिका के प्रमुख विश्वविद्यालयों तथा सांस्कृतिक केन्द्रों के दर्शन करना शामिल है। दूसरा, एक सप्ताह के लिए यूरोपीय कम्यूनिटी के आमंत्रण पर उसके मुख्यालय ब्रसेल्स एवं ईसी (EC) के पार्लियामेंट के लिए रखा जाता है। तीसरा, कैनेडा सरकार के आमंत्रण-क्रम में पन्द्रह दिनों के लिए उनके छह प्रमुख नगरों क्यूबेक, माट्रियाल, राजधानी-ओटावा, टोरोंटो, कैलगरी, वैंकूवर इत्यादि के परिदर्शन तथा चर्चा सत्र की व्यवस्था की जाती है, चौथा उस वर्ष के कोर्स के शेष भाग में चीन, जापान और कोरिया सरकार के निमंत्रण पर उन सारे देशों में तीन सप्ताह भ्रमण तथा प्रत्यक्ष ज्ञान अर्जन की सुविधा भी उपलब्ध की जाती है। 

इस कोर्स के लिए भारत सरकार आई.ए.एस. और आई.एफ़.एस. अधिकारियों को एक-एक साल के अंतराल में भेजती है। अर्थात् मुझसे एक वर्ष पूर्व एक आई.एफ़.एस. अधिकारी गए थे, मेरे बाद (1988-89) में भी एक आई.एफ़.एस. गए होंगे और उसके बाद (1989-90) में फिर एक आई.ए.एस. अधिकारी का चयन किया होगा। पहले साल के दो सर्विस में इस फ़ैलोशिप में भाग लेने वाले विशिष्ट नामों को मैंने देख लिया था। कोर्स में भाग लेने वाले हम सभी को विश्वविद्यालय की अधिसूचना द्वारा ऐसोसिएट प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त किया गया था। कोर्स पूरा होने पर कोई डिग्री या डिप्लोमा नहीं दिया जाता था। केवल विश्वविद्यालय में उस वर्ष के फ़ैलो होने का एक सर्टिफ़िकेट एक विशेष समारोह में दिया जाता था। यह फ़ैलोशिप आजीवन के लिए होती है और कोई भी फ़ैलो अधिक शोध अथवा अध्ययन के लिए किसी भी समय हार्वर्ड आ सकता है। ऐसोसिएट प्रोफ़ेसर के हिसाब से विश्वविद्यालय में फ़ैकल्टी क्लब की सदस्यता मिलती है, जहाँ सभी प्रोफ़ेसरों को चाय, कॉफ़ी तथा आपस में बातचीत करने का अवसर मिलता है। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित होने वाले थिएटर, कन्सर्ट, कला-प्रदर्शनी, विशेष-संभाषण, (इस प्रकार की व्यवस्था सारे साल हार्वर्ड में चलती रहती है), इन सभी में उपस्थित होने के लिए स्वतंत्र भाव से निमंत्रण पत्र मिलता है। इसी तरह उत्सवों के लिए भी एक विशिष्ट स्थान होता है, जैसे थिएटर और कन्सर्ट के लिए साइंस थिएटर, कला प्रदर्शनी के लिए कारपेंटर सेंटर फ़ॉर विजुअल आर्टस और फाग्ग आर्ट्स म्यूजियम, नाटक के लिए लोएब ड्रामा सेंटर, कविता पाठ और बाहर से आमंत्रित अन्य लेखकों (जैसे औपन्यासिक चिनुआ आचिवि, ओले स्त्रोयिंका, ओक्टावियो, पाज, डेरेक वालकट इत्यादि) को सुनने का अवसर सेंडर्स थिएटर हॉल अथवा लेमोंट लाइब्रेरी में प्राप्त होता है। 

हार्वर्ड जाने से पूर्व मैंने पुराने फ़ैलो से इस कोर्स के विषय पर बातचीत की थी, तभी से मेरे मन में एक विशद धारणा पैदा हो गई थी, आई.ए.एस., श्री पी.एस. अप्पू तथा आई.एफ़.एस., श्री ए.पी. वेंकटेश्वरन दोनों ने कहा था कि एक साल के अंदर चारों तरफ़ से इतनी ज़्यादा ज्ञान-गरिमा, संस्कृति इस तरह पड़ी मिलेगी कि सारी चीज़ें ग्रहण करना मुश्किल हो जाएगा। मगर सीखने की दिशा सुदूर प्रसारी एवं व्यापक है। इसलिए हमेशा अपनी आँखें, कान और मन को खुला रखने की आवश्यकता है। साहित्य, कला, दर्शन अपने-अपने पाठ्यक्रम, शोध के विषय तथा लाइब्रेरी में पढ़ाई करना इत्यादि की वजह से यह फ़ैलोशिप शायद सबसे ज़्यादा आकर्षणीय है। उन्होंने कहा था कि इस फ़ैलोशिप के लिए सर्वप्रथम विश्वविद्यालयों के बहुविध अनुष्ठानों से परिचित होना ज़रूरी है। उन्होंने यह भी कहा था अर्थशास्त्री मित्र एवं हार्वर्ड विश्वविद्यालय के नामी प्रोफ़ेसर स्टीफेन मार्गलिन को मिलने से पहले उनकी पत्नी से मिले थे। 

ऐसे परिचित वातावरण में मैंने सबसे पहले विश्वविद्यालय की बहुत बड़ी लाइब्रेरी के सिस्टम को जानने की चेष्टा की थी। दूसरे पर्याय में विश्वविद्यालय के म्यूज़ियम को घूमकर देखना। विश्वविद्यालय का मोटो या आदर्श था, “व्यक्ति के व्यक्तित्व की अभिवृद्धि के साथ ज्ञान के उपयोग हेतु सभी प्रकार के अवसर प्रदान करना।” 

हार्वर्ड के अध्यक्ष डेरेक क्यटिस वोक (जिन्हें हार्वर्ड के सबसे विख्यात अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है) के शब्दों में:

“In serving Harvard we serve an institution with a remarkable capacity for human betterment, an institution that works continuously to discover the knowledge to illumine social problems, to prepare talented people for constructive lives, to provide memorable experience to thousands of its students, to enlarge our comprehension of ourselves and our environment through writings and discoveries of lasting importance, and all in these ways, to set demanding standards of intellectual attainment that can help and inspire universities throughout the nation and abroad.” 

उसके बाद हार्वर्ड के म्यूज़ियमों, अन्य सांस्कृतिक अनुष्ठानों, विविध विभागों तथा पाठ्यक्रमों इत्यादि के सम्बन्ध में कुछ चर्चा। साल के अंत में मुझे यह आभास हुआ कि एक साल में मैंने बहुत कुछ सीखा है, बहुत कुछ पढ़ा है, संगीत-आर्केस्ट्रा का रसास्वादन किया है, थिएटर, फ़िल्म, चित्रकला प्रदर्शनी आदि देखी है, बहुत विद्वान, कवि लेखक और अमूल्य साथियों के संपर्क में आया हूँ, जिनकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती है। ये सारी चीज़ें जीवन भर मेरे ज्ञान भंडार में विशिष्ट अनुभूतियों का अंग बनकर रहेगी। 

अर्थनीतिज्ञ, कवि, लेखकों के साथ की गई मुलाक़ातें, विभिन्न अमेरिकन विश्वविद्यालयों में उद्बोधन तथा काव्य-पाठ की यादें, अनेक देश तथा शहरों में घूमने आदि जैसे अनुभवों की बातें चर्चा के विषय हैं। पहले पहल सारे मित्रों और शुभेच्छुओं के अनुरूप हार्वर्ड के तरह-तरह अर्वाचीन अनुष्ठानों तथा उनके इतिहासों की जानकारी की बातें, उससे भी बढ़कर हार्वर्ड का परिवेश, शहर तथा मेट्रोपालिटन बोस्टन शहर की कहानियाँ चर्चित हैं। 

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