मरहूम गर तू है
ज़हीर अली सिद्दीक़ीजहान में नंगा आया था
ग़रीबी साथ लाया था
ख़ुशी के अपने भावों से
सभी को तूने हँसाया था॥
ख़ुदा ने कान बख़्शा है
नेकी सुनने और करने को
मगर क्या खूब फ़ितरत है
बुराई सुनने, करने को॥
नज़र ख़ुदा ने बख़्शी है
जहान ढूँढ़ ले प्यारे
ख़ुदा को क्यों करे नाख़ुश
अज़ाब थूक दे प्यारे॥
कोई अपने, पराये न थे
सभी के दिल का तारा था
किया ऐसा भी क्या तुमने
कोई पराया तो कोई अपना॥
मरहूम गर तू है
जीना और मरना क्यों?
बुज़दिली से ज़िन्दगी में
तबाह करना ही क्यों है?
23 टिप्पणियाँ
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Nice!
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Gajabbbbb... Keep it up!
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Masallah. Kabile tareef
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Masallah Bahut hi umda
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Kabil e tareef... Naye lekhak ke roop me aage jate hue Zahir Ali Siddique..well done
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Waaah ..kamaal h
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Very nice.
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Apratim Rachana Zahir bhai
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Waah waah kya rachna h...zahir saheb
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Kay baat hai!
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Bahut badiyan zahir saheb
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Nice.
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Kya bat hai
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Good one
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Very nice poem
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Good zahir bhai.....
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बहुत खुब भाई जी।
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Beautiful lines
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Awesome poem...with a beautiful message to convey...
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बहुत सुंदर पँक्तियाँ
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Bahut khoob bhaiya
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Good work!!!
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Bahot khub
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