कविता

नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’ (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

फ़ुटपाथ पर पड़ी ज़िन्दगी की तरह
कई-कई दिन
हफ़्ते बीत जाते हैं
कविता जब जागती है
तो सोने नहीं देती
ठीक उसी तरह 
जैसे 
एक अनाम-सी हूक
लत, सनक या भूख। 

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