बेचैन रहता है यहाँ हर आदमी

01-01-2025

बेचैन रहता है यहाँ हर आदमी

सुशीला श्रीवास्तव  (अंक: 268, जनवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

2212    2212    2212
 
बेचैन रहता है यहाँ हर आदमी
जाती नहीं उसके नयन से भी नमी 
 
हर आदमी की चाह होती है बड़ी 
पूरी न हो गर जीस्त में  ख़लती कमी
 
कैसे कटेगी ज़िन्दगी उन की यहाँ 
जो खेलते हैं रात-दिन घर में रमी
 
कोई दिखाये राह उनको आज तो
मिलता न जिन को ज्ञान है छाये तमी
 
सुख भी यहाँ दुख भी यहाँ मिलता रहा
रुकता ही कब चलता रहा है आदमी 
 
मंज़िल मिलेगी एक दिन ये सोचता
इस आस में आँखों में हसरत है जमी

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