युवा-दर्द के अपने सपने

15-08-2020

युवा-दर्द के अपने सपने

डॉ. वेदित कुमार धीरज (अंक: 162, अगस्त द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

वो क्या जाने पीड़ा मेरी 
मैं सहता मैं जानूँगा 
इसी उमर में थकी-थकी सी 
जो दिखती है आँखें मेरी 
वो क्या जाने सपने इनके 
मैंने देखे मैं जानूँगा 


नज़रों से तो युवा-वर्ग 
आशिक़ मिज़ाज ही माने सब 
नालायक़ से दिखने वाले 
कितने बोझ उठाये हैं 
हृदय इनके शोले ही हैं 
मैं जलता मैं जानूँगा


नाव हवा के संग बहे तो 
नाविक की है क्या मर्यादा
जो लहरों से युद्ध लड़ा हो 
वो संघर्ष पहचानेगा 
वो क्या जाने पीड़ा मेरी 
मैं सहता मैं जानूँगा


लड़ता ख़ातिर रोटी के 
जो भूखा वो जानेगा 
कंधों पर भार है कितना 
जो ढोता वो जानेगा 
चोट लगी हो दिल पर जिसके 
मरहम वही पहचानेगा
वो क्या जाने पीड़ा मेरी
मैं सहता मैं जानूँगा

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