वेदी

डॉ. वेदित कुमार धीरज (अंक: 174, फरवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

क़िस्सों की मोहब्बत का
मैं एक किरदार जैसा हूँ
कल उसने कह दिया था कि
मैं उसके यार  जैसा हूँ
क़िस्सों की मोहब्बत का
मैं एक किरदार जैसा हूँ
सर्दी के दिनों की वो
किरण की आस जैसी तुम
गर मिल जाओ तो बतलाऊँ
कि किस एहसास जैसी तुम
हवा कि चाल से चलना
हवा कि जुस्तजू लेकर
सुकून महसूस होता है
तुम गली से गुज़रती हो
 
संगम कि रेती में  रेता
हर पल उड़ता रहता हूँ
तुम कभी-कभी तो आती हो
मैं पड़े-पड़े ही जलता हूँ
तेरे पाँवों की अनुकृति को
जल्दी से ढक लेता हूँ
इस विषम प्रेम का सम-अभाज्य
हम दो हैं, तीसरा कोई नहीं
तेरा मिज़ाज है मौसम सा
और मैं मौसम का मारा हूँ
संगम कि रेती में रेता
मैं हर पल उड़ता रहता  हूँ
 
अमर हो गया हूँ बिना साधना के
ये एहसास है तुमसे मिल के मिलन का
प्रियतम;  कहो इन हवाओं में क्यूँ हो
मैं अमर हो गया हूँ तुम्हे साँसों में भर के

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