शब्द जो काग़ज़ पर
उकेरे जाते हैं
ख़रीदे नहीं गए होते
कोई अपनी तमाम रातों को
जागकर इन्हें गढ़ता है
वेदना की रुखान से
परिस्थितियों के पत्थर पर
और वो जो गढ़ते हैं शब्दमाला
कम नहीं होते
एलोरा के महान मूर्तिकारों से
जो मनोभावों को आकर देते हैं
बिलकुल सहज स्पष्ट और उत्कृष्ट
उनके भी माप के अनुपात भी कम नहीं होते
अजंता के चित्रकारों से
शब्दों के ककहरों का आबंध
जो लिखते हैं
तुम्हारा दर्द, एहसास, वेदना और प्रेम
वो जो महसूस करते है अन्नंत वेदना
जो गीत तुमने गाये हैं जीवन विरह में
जिसने तुम्हे बँधाये हैं ढाढ़स
सुझाये हैं सही रास्ते, तौर-ए-ज़िंदगी
वो गीत कम नहीं है किसी मंत्र से
और वो जो गढ़ते हैं शब्दमाला
कम नहीं होते
एलोरा के महान मूर्तिकारों से