शाम भर बातें

01-05-2020

शाम भर बातें

डॉ. मधु सन्धु (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

समीक्ष्य पुस्तक : शाम भर बातें (उपन्यास)
लेखक : दिव्या माथुर
मूल्य : रु 395/- सजिल्द
पृष्ठ संख्या : 208
आईएसबीएन : 978-93-5072-858-1

भरी शाम हो, पार्टी का आयोजन हो, मित्रों और संबंधियों का जमघट हो, विदेश की धरती हो और दिव्या माथुर की कलम हो- असंख्य कहानियाँ उभरने लगती हैं- सुख और दुख की, पीड़ा और मस्ती की, आज़ादी और सीमाओं की, सातवें आसमान और पाताल की, प्रगति और दुर्गति की। इस एक शाम में असंख्य शामें आ समाई हैं। 

‘शाम भर बातें’ दिव्या माथुर का 2015 में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित प्रथम उपन्यास है। कथा कुछ घंटों का समय लिए है, यानी रविवार की दोपहर डेढ़ बजे से देर शाम तक। स्थान ब्रिटेन है। घटना मकरंद और मीता की शादी की बीसवीं वर्षगांठ के संदर्भ में आयोजित पार्टी की है। 

उन्होंने सौ लोगों को आमंत्रण पत्र भेजे हैं। दूसरे देशों वाले तो नहीं, पर ब्रिटेन के 200 मील दूर तक के मेहमान अपनी रोल्स रॉयस, लेटेस्ट मर्सिडीज़ या दूसरी महँगी और पॉश कारों में पहुँचे हैं। मेज़बान के फ़र्स्ट कज़न राजेश मलिक (गिरगिट, ताऊ का बेटा) और घनश्याम (घड़ियाल, बुआ का बेटा) हैं। रंजीत, इला और राजीव खजांची, मंजूषा और कुलभूषण, मोहन और मोहिनी टयाल (मुंहबोला भाई- भाभी), सुरभि और सुरेन्द्र, दिनेश, डेज़ी और माला, आयशा और रिचर्ड, अमृत और कुलदीप कपूर, आपा और हसन, जिया और उसकी सहेलियाँ/ पड़ोसिनें पुष्पा मौसी, अम्मा और सोमा की माँ, श्रीलेखा, सलोनी, श्रीनिवासन, सोमा, भारतीय उच्चायोग से महावीर जोशी, बसंत और मेनका कोडनानी, वेनू और प्रभा सापलू,, बहनें- बहनोई वायु और सुमित, नैन्सी और नरेश, बिन बुलाई मेहमान सायरा, मेड लूसी, प्रिया और अगली जेनेरेशन से बुलबुल, हैरी, कैमिला, मुरली, शमीम और उसका भांजा मंसूर, वर्षा, चित्रा और करन रायज़ादा, सरूर और जूली, सुधाकर मिश्रा आदि अनेक लोग हैं। बुलबुल की पैट प्रिंसेस डायना भी पार्टी का विशेष आकर्षण है, जिसे सौ पाउंड ख़र्च कर सैलून के तैयार करवा कर लाया गया है। 

यह ब्रिटेन में शादी की बीसवीं वर्षगांठ का आयोजन है। वह देश जहाँ मुर्दों का भी साज शृंगार किया जाता है और अंग्रेज़ लोग भी सज-धज कर फ़्यूनरल में जाते हैं। भारतीय संस्कृति की तरह नहीं कि ख़ुशी के मौक़े पर भी लक्ष्मी-गणेश की पूजा करो, हवन करो, सुंदर कांड का पाठ करो। जिया, मोहन-मोहिनी तो चाहते हैं कि कुछ भजन- कीर्तन भी हो जाये, पर मीता इसकी इजाज़त कैसे दे सकती है। यह पार्टी है। शराब, कबाब, शबाब और ताश यहाँ का मुख्य आकर्षण है। लोग आपे में नहीं है। बार-बार अप्रिय बातें हो रही हैं, झगड़े, हाथापाई आम बात है। कभी भारतीय देवी-देवताओं, व्रत-उपवास या पौराणिक पात्रों को लेकर, कभी शाकाहार-मांसाहार को लेकर, कभी दाम्पत्य और लिव-इन को लेकर, कभी महिलाओं के प्रति व्यवहार को लेकर, कभी बच्चों को लेकर। एक जगह रंजीत गिलास की सारी व्हिस्की मोहन के चेहरे पर फेंक देता है और धनश्याम मोर्चा सँभालता है। एक मौक़े पर करण गिरगिट का गला पकड़ लेता है। इतना ग़ुस्सा है कि बंदूक होती तो गिरगिट को गोली मार देता। पत्नी पर टिप्पणी सुन कुलभूषण सतनाम का गला पकड़ लेता है। मकरंद घूंसा ताने रणजीत की ओर बढ़ता है। करन और चित्रा बेऔलाद होने के ताने से तिलमिला उठाते हैं। एक ओर सुरभि और चित्रा में ठनी है और दूसरी ओर करन और सुरेन्द्र में। अधिक पीने के कारण सतनाम उल्टियाँ करने लगता है। मोहन और गिरगिट मानों दमकल विभाग से हैं, आग बुझाने वाले। गिरगिट को कहना पड़ता है- “भाइयो और बहनों, किसी का इरादा दंगा-फ़साद करने का हो तो वह प्लीज़ बाहर गार्डन में जाकर अपनी भड़ास निकाल सकते हैं, मलिक्स के इस ख़ूबसूरत गार्डन में एंट्री फ़्री है।“ (पृष्ठ 90) मिक लंबी साँसे खींचकर ‘ॐ शान्ति- शान्ति कहने लगता है। मोहन शरीर में उठ रहे ज्वार भाटे को भाई- भाभी की वर्षगाँठ के कारण शांत रखता है और हर झगड़ा निपटाने के यत्न में रहता है। केक काटने से पहले ही मेहमानों की जाने की तैयारी पार्टी को फ़्लॉप ही बना देती है आउट जिया की मृत्यु त्रासदी। 

पार्टी का वातावरण आशिक़ाना है। विवाहित अविवाहित या अन्य- सभी के चक्कर चल रहे हैं। राजीव युवतियों को गंभीरता से नहीं लेता, उसकी साख इसी पर टिकी है कि शादीशुदा होने के बावजूद वह युवतियों को पटाने में सक्षम है। मंजूषा के आसपास घूमना उसे अच्छा लग रहा है। सायरा का नमकीन यौवन तथा पारदर्शी साड़ी और सुनहरी तनियों वाले बालिश्त भर के ब्लाउज़ में घूमती मंजूषा पुरुषों को काफ़ी लज़ीज़ लगती हैं। रंजीत का दफ़तर ख़ूबसूरत बालाओं से भरा है। वह बिना शादी के ही सायरा के साथ चार दिन हनीमून पर जाना चाहता है। रायन एयर की टिकटें तैयार हैं। मेनका जोशी सर के आगे-पीछे घूमती रहती है। उपन्यास उस देश और काल का है, जहाँ बिना शादी के साथ रहना और बच्चे पैदा करने का रिवाज़ सा हो गया है। रंजीत का जीवन दर्शन है कि शादी की मुसीबत पालने से सिंगल रहकर खुल्मखुल्ला ऐश करना कहीं बेहतर है। सरूर और जूली लिव-इन में है। मीना भी बिना शादी के एक मुसल्ले के साथ रह रही है। रविंदर ने पत्नी जीतो के होते हुये भी ईस्ट हैम में दूसरी औरत रखी हुई है। शादी के बीस वर्ष बाद भी, बड़े-बड़े बच्चों के बावजूद मीता रंजीत के लिए आतुर है। चित्रा का दिनेश से और सुरभि का करन से चक्कर था। पति सुरेन्द्र भी नहीं जानता कि सुरभि की बड़ी बेटी सोनिया का पिता करन है। हर आने वाली स्त्री मेहमान से लिपट-लिपट कर और पुरुष से हाथ मिलाकर उनका स्वागत किया जा रहा है। मेनका जोशी सर की आवभगत में लगी है। घनश्याम प्रभा को पटा रहा है। मर्दों पर शराब, कबाब और शबाब- तीन तीन नशे तारी हैं।

इस पार्टी में बड़े बड़े रहस्य खुल रहे हैं, जैसे सायरा का पति उससे धंधा करवाना चाहता था, दरिंदों की तरह मारता था, उसके मर्डर के जुर्म में सायरा जेल भी जा चुकी है। घनश्याम/ घड़ियाल की पत्नी रानी उसके जिगरी दोस्त नौलखा के संग फ़रार है। हसन का तलाक़ हो चुका है। आपा अविवाहित है। मिसेज मिश्रा की दो वर्ष पहले मृत्यु हो गई थी। वायु बेटे के लिए जिस नंदिनी को भारत से इम्पोर्ट करना चाहती है, वह अपने फ़र्स्ट कज़न के साथ भाग चुकी है। 

आनंदलोक की सदस्यता और पति-पत्नी स्वाइपिंग, हिन्दी के प्रति हिन्दी भाषियों की उपेक्षा, जीतो जैसी पत्नियों की दुर्दशा, सेक्स एजुकेशन और उसके दुष्प्रभाव, ब्रिटेन में बच्चों की स्थिति और बढ़ रहे अपराध, भारतीय विद्यार्थियों के साथ सौतेला व्यवहार, भारत से इम्पोर्ट की गई पत्नियों की दुर्दशा, बैंक, टैक्स, बी.बी.सी., भारत में हो रहे बलात्कार, हिन्दू-मुस्लिम विवाद, जनसंख्या वृद्धि में मुसलमान, लंदन बन रही दिल्ली, भारतीय और विदेशी पति और दामाद-बहू में समानता-असमानता, स्वार्थी राजनेता, मायावती द्वारा बनाया गया हैलीपैड और मूर्तियाँ, दंगे-फ़साद, कर्फ़्यू, हड़तालें, शिक्षा का अवमूल्यन, वैश्विक राजनीति, सरकारी नीतियाँ, साहित्य और फ़िल्में- कई तरह की बहसें हैं। सनराइज़ रेडियो, चुटकुले शेयरो-शायरी, गीत- ग़ज़लें हैं- ‘जहाँ रहेगा, वहाँ रोशनी लुटाएगा, किसी चिराग का अपना मकाँ नहीं होता।‘ 

इस पार्टी का सबसे बड़ा आकर्षण और मेज़बान के लिए सम्मानीय तथ्य भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों का आना है। जिन्हें इंश्योरेंस कंपनी का मालिक, मल्टी मिलेनियर रंजीत लेकर आता है। भारतीयों की पार्टी में अगर कोई अंग्रेज़ आ जाए तो मेज़बान का क़द ऊँचा हो जाता है। रंजीत के यहाँ तो माली, हाउस कीपर सब गोरे ही हैं। मेहमानों की ख़ातिरदारी उनके वर्ग के हिसाब से होती है। शमीम के साथ दामाद रिचर्ड और सरूर के साथ उसकी लिव-इन पार्टनर जूली का आना इसीलिए मीता को बहुत भाता है। दुगुने पैसे ख़र्च कर इसीलिए पोलिश मेड लूसी रखी जाती है। गोरी चमड़ी से चाकरी करवाने से आख़िरकार इज़्ज़त तो बढ़ती ही है। ननद वर्षा और नंदोई जुगल की लॉस एंजेल्स से सर्प्राइज़ आईटम संगीत और नृत्य जा चुके मेहमानों को वापिस लाने और मीता की पार्टी को चार- चाँद लगाने के लिए काफ़ी हैं। 

बेकारी, महँगाई और कमीनगी की हद तक कंजूसी जगह-जगह मिलती है। इंग्लैंड की इकॉनोमी का बुरा हाल है। हज़ारों लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। घनश्याम रणजीत के आगे किसी छोटे-मोटे काम के लिए गिड़गिड़ाता है। मनीषा को काम चाहिए- जीने के लिए, आवास और खानपान के लिए। पर काम कहाँ है? इसीलिए वह न चाहते हुये भी रंजीत के लिए अपने को परोसने के किए विवश है। मीता मिडल क्लास मेहमानों के लिए थोक में समोसे और चाइनीज़ स्प्रिंग रोल लाती है। ड्राइ फ्रूट की ट्रे पर नज़र रखती है। शराब की बोतल खुलते ही उस के दिमाग़ में उसका रेट खलबली मचाने लगता है, हालाँकि यह बोतलें उसने डिप्लोमेट मूल्य पर ख़रीदी हैं। फोटोग्राफर तक नहीं बुलाती और अपने कैमरे को भी अनचाहे मेहमानों की फ़ोटोज़ से ओवरलोड नहीं करती। डी.जे. न बुला वह पैसे भी बचा लेती है। कार्पेट पर कुछ गिरने पर वह परेशान हो उठती है। क्रॉकरी की प्लेटों की सलामती के लिए विशेष सतर्क है। लंच शाम तक ही वितरित हो पाता है। मेहमानों के सेल में जुटाये उपहार या एक तिहाई दामों पर ख़रीदे गुलदस्ते उसे क़तई पसंद नही। उसे तो बोन चाइना और क्रिस्टल के उपहारों की उम्मीद थी। डिब्बों को देख कर ही उसे (कमीज़, साड़ी, कंबल, शराब, शिल्प कृतियाँ आदि) अंदर के उपहारों और उनकी टुच्ची क़ीमत का अनुमान हो जाता है और वह सोच लेती है कि कौन से भारत जाने पर और कौन से पड़ोसियों के यहाँ निपटाए जा सकते हैं। अंग्रेज़ या ख़ास मेहमान ख़ाली हाथ भी आ जाये, तो कोई बात नहीं, लेकिन गिरगिट जैसों का ख़ाली हाथ आना उसे बहुत बुरा लगता है। उच्च और मध्यवर्ग के मेहमानों के लिए टिशू पेपर भी उसी हिसाब से रखती है। स्नैक्स और मेन कोर्स पहले किसे देना है तथा बचा-खुचा किसे- यह उसे स्पष्ट है। आपा मोहिनी और गिरगिट की भरी हुई प्लेटें देख उसकी भूख ही मर जाती है। सोचती है, ”कितना खाएँगे ये लोग।“ रिचर्ड को आम खिलाने के लिए वह उसे रसोई में ही ले आती है, कि कहीं कोई और आम माँगने न लग जाये। हैल्थ शो में मुफ़्त में मिले ‘नो स्मोकिंग’ के नामपट्ट जगह-जगह चिपका देती है। प्रिया और लूसी को निर्धारित से एक पैसा भी अधिक नहीं देगी। 

मेहमानों का अपना पक्ष है। कुलदीप, अमृता, रिचर्ड, मंसूर टूटे-फूटे समोसे या स्प्रिंग रोल लेने से तो खाने का मेन कोरस लेने को ही प्राथमिकता देते हैं। आयशा कहती है कि फ़िश टिक्का और फ़िश करी होते तो मैन्यू को चार चाँद लग जाते। घनश्याम की सलाह थी कि खाना दुर्गा केटर्स से ही बनवाया जाये, इस खाने में तो घी ही बहुत ज़्यादा था। आपा को खान-पकवान वालों का खाना पसंद है। कहती है, ”अकेला सांभर क्या भाड़ फोड़ेगा? नान खँखड़ हो गए हैं। ---- चावल तो हम सिर्फ़ दोपहर को ही खाते हैं, अब तो रात होने को आई।“ ( पृष्ठ 171) 

इस शुभ अवसर को त्रासद बनाने वाली और भी अनेक त्रासद दुर्घटनाएँ घटती हैं, घनश्याम प्रिया के रेप की कोशिश करता है। मीता डंडे से उसकी पिटाई करती है और इला के सुझाव पर पुलिस को बुला उसे जेल भेजना पड़ता है। दूसरी ओर फ़ायर अलार्म सुनकर शायद पुलिस ही दमकल विभाग को सूचित करती है और फ़ायर ब्रिगेड आने से मेहमानों में खलबली मच जाती है। पार्टी में ही जिया की मृत्यु सबसे बड़ी त्रासदी है। 

भ्रष्टाचार वहाँ भी उतना ही है। उच्चायोग के अधिकारी न कभी फोन उठाते हैं और न ईमेल का प्रत्युत्तर देते हैं, न लोगों के धरना देने पर उनके कान पर जूँ तक रेंगती है। एजेन्टों को पाँच सौ पाउंड देकर ही काम करवा सकते हैं। फ़ायर ब्रिगेड को रिश्वत में शराब की छह बोतले देकर राजीव स्थिति सँभालता है। पूरी दुनिया में किलोमीटर और किलोग्राम चल रहे हैं जबकि इंग्लैंड पाउंड्स और मील पर ही अटका है। उपन्यास का पात्र सुमीत लेबर पार्टी का सक्रिय सदस्य है। नाजायज़ हथियार, हिंसा और जेबकतरे वहाँ रोज़मर्रा के जीवन का अंग हैं। काउंसिल के घरों में रहने वाले भारतीयों को देश लौटने के लिए बीस हज़ार पाउंड का ऑफ़र देने की कूटनीति है। भारतीय भी मोहन मोहिनी की तरह झूठी बीमारियाँ बता कर सरकारी भत्ते ले रहे हैं। 

गे, होमोसेक्सुयल, हैट्रोसेक्सुअल, लैस्बियंस, बाइसेक्सुअल, होमोस जैसे लफड़ों की भी चर्चा है। जैसे आगा साहब अपने गे बेटे के लिए मुरादाबाद से जो दुल्हन लाये थे, वह तीन महीने भी नहीं टिकी। टी.वी. और फ़िल्मों में ऐसे चरित्र आम बात हैं, जबकि कुछ अफ़्रीकी देशों में तो गे लोगों को फाँसी तक दे दी जाती है। 

ब्रिटेन के वृद्ध-वृद्धाओं की जीवन शैली भी थोड़ी भिन्न है। सोमा ने अपने पिता को ओल्ड एज होम भरती करवा रखा है। उज्जी की पत्नी ने सास को आते ही ओवर फ़िफ़्टी क्लब में सदस्यता ले दी थी और उसने पचपन की उम्र में शादी कर ली थी। पुष्पा की हरी शानदार मैक्सी में जिया को उसका चेहरा इतना सुंदर दिखता है, मानो वह जिम से आई हो। बार-बार पूजा पाठ की दुहाई देने वाली जिया स्कूल के सहपाठी रग्घू को देख चंचल युवती की तरह शर्माती-इठलाती, गाती-नाचती है, जबकि बुढ़ापे का यही नृत्य उसकी मृत्यु को आमन्त्रित कर लेता है। ‘ठुल्ला किलब’ यहाँ विशेष चर्चा का विषय है। वृद्धों के मनोरंजन के लिए, अत्याधुनिक बोध के लिए, पारिवारिक जनों की उपेक्षा से बचने और अपने लिए कुछ पल सँजोने के लिए, चुगली-चकारी के लिए, और बुलबुल जैसे युवाओं, वृद्धों के बेटे बहुओं को एडवेंचर और कमाई के लिए। क्योंकि वृद्धावस्था एक राष्ट्रीय समस्या है, इसलिए ठुल्ला क्लब को सरकारी अनुदान और नव-प्रवर्तन-पुरस्कार आसानी से मिल सकता है। 

यहाँ अपने ही तरह का इंडो-इंग्लिश कल्चर है। कुछ पुरुष ‘भैंचो’ ‘साली’ और स्त्रियाँ ‘मरे’ तकिया-कलाम के बिना एक वाक्य भी नहीं बोल पा रहे। शायद दिव्या माथुर ने वहाँ के भारतियों के जीवन में गहरे पैठ कर यह निष्कर्ष निकाले हों। प्रश्न यह है कि धारदार व्यंग्य, साफ़गोई, कुंठाओं, अश्लील यौनिक जुमलों के कारण क्या यहाँ कृष्णा सोबती के ‘यारों के यार’ सी सौद्देश्य बेबाकी मिल पाती है? सोलह शृंगार का विवरण देखिए- “ क्या कॉम्बिनेशन है! काली मिर्च सी गोल-गोल छोटी आँखें, महीन हरी मिर्च सी भवें, गालों पर चुकंदर के रंग की रूज़, होंठों पर काकी गाजर के रंग की लिपस्टिक, पलकों पर फिरोजी मसकारा और फिरोजी आई शैडो. . . चार फुटे कद को बढ़ाने के लिए सिर की टॉप पर किया जूड़ा।. . उसके शिखर पर झंडे सा लहरा रहा आर्टिफ़िशियल फूल।“ ( पृष्ठ 86) “मर्दों की लपलपाती नज़रें सायरा को बेशर्मी से चाट रही थीं और औरतें जल-भुन कर राख़ हो रही थीं।( पृष्ठ 51) मर्द शराब के पेग पर पेग चढ़ा रहे थे, लेकिन खुमार फलों का रस पी रही महिलाओं पर हो रहा था। (पृष्ठ 69)

यहाँ नाट्य शैली सा हर दृश्य चित्रात्मक है, निबंध सी वर्णनात्मकता है, एक चटपटापन- जो पाठकीय औत्सुक्य का पोषण करता है। भाषा में व्यंग्य और लय है- (बेताली तालियाँ)। दिव्या माथुर के प्रयोग अद्भुत होते हैं। कभी मुहावरों में कहानी गूँथ देती हैं और कभी सूत्रों में उपन्यास। जैसे-

  1. परछाइयों से पीछा छुड़ाना चाहती हो तो अपना चेहरा हमेशा सूर्य की ओर रखो। ’52 

  2. हीरा धूल में भी गिर जाये तो हीरा ही रहता है, किन्तु धूल आकाश पर चढ़ने के बाद भी धूल ही रहती है। -54

  3. जब तक था दम, न दबे आसमान से हम, जब दम निकल गया तो ज़मीं ने दबा लिया। 78 

  4. सॉमरसेट मॉम का कहना है कि जब आप अपने मित्रों का चयन करें तो चरित्र के स्थान पर व्यक्तित्व को न चुने। 74 

  5. परेशानियाँ आदमी को गूँगा बना देती हैं। 109 

  6. संपन्नता धन के संग्रह में नहीं, बल्कि उसके उपयोग में होती है, बैंक अथवा मटके में रखे धन का क्या फ़ायदा। 119 

  7. अपने देश से दूर, ये लोग अब तक उसी सदी में जी रहे हैं, जिस सदी में वे यहाँ आए थे। 145

  8. तीन चीज़ें अधिक समय तक छुपी नहीं रह सकतीं- सूरज, चन्द्रमा और सच। 145 

  9. क्रोध एक ऐसा तेज़ाब है, जिसका अधिकतम नुक़सान उस पात्र को पहुँचता है, जिसमें वह रखा होता है। 150 

  10. विवाह एक ऐसा पिंजरा है जिसमें खुले आसमान में उड़ते हुए परिन्दे अंदर आकार क़ैद हो जाना चाहते हैं और क़ैदी पक्षी बाहर निकालने के लिए बेताब रहते हैं। 173

  11. औरत के सिकुड़े हुए दिल में बस उसका पति रहता है, किन्तु पति के दरिया दिल में प्रेमिका, साली, भाई की साली, काम वाली, दोस्त की प्रेमिका, बीबी की सहेली, सामनेवाली, बाजूवाली, ऊपरवाली, नीचेवाली, सब्ज़ीवाली, कपड़ेवाली और थोड़ी बहुत पत्नी के लिए भी जगह बची रहती है। 174 

लगता है मानों सभी पात्र, घटनायें लेखकीय मानस में गहरे धँसी हैं अन्यथा उनकी दो कहानियों ‘ठुल्ला किलब’ और ‘शाम भर बातें’ के प्रसंग और पात्र यहाँ पालथी मार कर न बैठे होते। पता नहीं यह पार्टी है या कोई डिबेट- जो मेहमानों में लगातार चल रही है। हर कोई दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में है, बातें काट रहा है। यह एक महासमर है, जिसमें माँ, बेटी, सास, बहू, रिश्तेदार, पड़ोसिनें, मित्र सब अपना हुनर दिखा रहे हैं, तिया-पाँचा कर रहे हैं, एक दूसरे की ऐसी तैसी कर रहे हैं। सब नहले पर दहला हैं। फिर भी एक अपनापन है, जो जिया की मृत्यु पर उभर कर आता है। उपन्यास में कोई कहानी नहीं, सिर्फ़ बातें हैं, जबकि इन बातों में ही असंख्य कहानियाँ उभर रही हैं। 

डॉ. मधु संधु,पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, 
हिन्दी विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर, पंजाब।
 
madhu_sd19@yahoo.co.in

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