मजबूरी के हाइवे

01-08-2020

मजबूरी के हाइवे

डॉ. वेदित कुमार धीरज (अंक: 161, अगस्त प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

बातें कुछ और भी हैं ग़ौर करने के लिए
सिर्फ़ वही नहीं जो राजनैतिक हों
किसीकी भक्त बन तारीफ़ हो 
या किसीकी व्यक्तिगत नफ़रत भरी आलोचना हो
या चर्चा जिनके सिर्फ़ इकॉनमी से ही ताल्लुक़ात हों
और भी हैं बातें 
जिन पर ग़ौर करना चाहिए
सिर्फ़ चीन की बात पर हम ना रुकेंगे
या कोरोना के डर से चुप हो कुछ ना कहें
संवेदनाओं का जो मंज़र देखा अभी था
सैकड़ों मासूम के छाले अभी जो पाँवों के
और जो हमने बैलों के साथ खींची थीं गाड़ियाँ
या उस माँ ने प्रसव की पीड़ा सही थी धूप में
जो भविष्य देश का सूनी सड़क पर ही जना था
वो कड़ी जब ज्येष्ठ तप कर पूछती थी
कहाँ हैं वो मसीहे जिन्होंने ग़रीबी निवारण के वादे किए थे?
साथ देंगे, हाथ देंगे, हर विपत्ति बाँट लेंगे
जो सभाओं में तुम्हारे नाम का गर्जन किये थे
आज फिर लौट आया है भारत अपने-अपने गाँवों में
इंडिया से वक़्त पूछेगा कि तेरे हालात क्या हैं?
हमें सिर्फ़ चीन की बातों में नहीं भरामाओ
ए हुक्मरान!
और भी  प्रश्न हैं जिनके जबाब चाहिएँ हमें
तुम जब वर्चुअल दुनिया में व्यस्त थे
हमने नापा था नंगे पाँव पूरा हिन्दुस्तान
अब बात भी होगी और जबाव भी माँगेंगे
क्योंकि आपके छद्म वादों की जो भक्ति थी 
पसीने के साथ बह गई उसी हाईवे पर
अब बात होगी चीन से भी
और बेरोज़गारी पर भी
पर्यावरणीय आधारित विकास पर
और जियो के नशे में चूर
साज़िश के शिकार इन युवाओं पर भी
क्या ये नया हिन्दुस्तान होगा?
जो ज़िंदा रहे तो प्रश्न पूछेगा
ये युवा, जो मज़दूर भी है 
जिन्होंने खोया है बहुत कुछ
जो भर नहीं पाएगा
सिर्फ़ पैसों के अनुदान से
ये कम्पनी राज नहीं,
हम सिर्फ़ मज़दूर नहीं
है आज़ाद हिन्दुस्तान है
बात करेगा, भूलेगा नहीं

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